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आज का हिन्दू पंचांग
हिन्दू पंचांग
दिनांक - 16 मार्च 2023
दिन - गुरुवार
विक्रम संवत् - 2079
शक संवत् - 1944
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
तिथि - नवमी शाम 04:39 तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र - मूल सुबह 06:24 तक तत्पश्चात पूर्वाषाढा
योग - व्यतिपात दोपहर 12:53 तक तत्पश्चात वरियान
राहु काल - दोपहर 02:19 से 03:49 तक
सूर्योदय - 06:48
सूर्यास्त - 06:49
दिशा शूल - दक्षिण दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:12 से 06:00 तक
निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:24 से 01:12 तक
व्रत पर्व विवरण - व्यतिपात योग (सुबह 10:07 तक)
विशेष - नवमी को लौकी और दशमी को कलम्बी शाक खाना त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
रोजी – रोटी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी
जीवन को यदि तेजस्वी, सफल और उन्नत बनाना हो तो मनुष्य को त्रिकाल संध्या जरुर करनी चाहिए । हमारी आंतरिक अवस्था ऊँची करने में संध्या के समय आध्यात्मिकता का आश्रय बड़ी मदद करता है । इस समय की हुई भगवद-आराधना विशेष लाभ करती है । व्यक्ति का चित्त शीघ्र निर्दोष एवं पवित्र हो जाता है । ईश्वर- प्रसाद पचाने का सामर्थ्य आ जाता है ।
नित्य नियम से त्रिकाल संध्या करनेवाले के जीवन में किसीके सामने हाथ फैलाने का दिन नहीं आता । रोजी-रोटी की चिंता नहीं करनी पडती ।
औषधीय गुणों से भरपूर – हल्दी
प्राचीन काल से ही भोजन, घरेलू उपचार व आयुर्वेदिक औषधि के रूप में तथा मांगलिक कार्यो में हल्दी का उपयोग होता आ रहा है । हल्दी रक्तशुद्धिकर होने से शरीर के सभी अंगों पर कार्य करती है । यह यकृत को बलवान बनाती है । रस, रक्त, मेद व शुक्र धातुओं की शुद्धि का कार्य कर असंख्य रोगों से रक्षा करती है एवं शरीर का बल बढ़ाती है । हल्दी में कई प्रकार के जीवाणुओं को नष्ट करने तथा विष का नाश करने का सामर्थ्य पाया जाता है ।
चरक संहिता में इसे ‘बिषघ्नी’ व ‘कुष्ठघ्नी’ ( त्वचा-रोगनाशक) कहा गया है । यह उत्तम कांतिवर्धक है । उष्ण होने से कफ-वातनाशक और कडवी होने से पित्तशामक भी है । हल्दी का प्रयोग मुख्यत: रक्त व त्वचा विकार, मधुमेह आदि प्रमेह, कृमि, सूजन तथा कफजन्य रोग जैसे – जुकाम, खाँसी, दमा, गला बैठ जाना आदि में किया जाता है । यह रक्त की वृद्धि करती है तथा रक्तस्राव को शीघ्र रोकती है । आमदोष का पाचन करनेवाली होने से यह बुखार, दस्त, पेचिश व संग्रहणी में उपयोगी है । यह शीतपित्त में बहुत गुणकारी है । प्रसूति के पश्चात गर्भाशय की शुद्धि व उसे बल देने के लिए हल्दी का सेवन अवश्य करना चाहिए । इसमें माता का दूध भी शुद्ध हो जाता है ।
बाजारू मिलावटी हल्दी कि अपेक्षा घर कि पीसी हुई शुद्ध हल्दी का उपयोग करें । हल्दी के सूखे कंद पानी में उबालने से नर्म हो जाते है । फिर उन्हें सुखाकर ऊपर का छिलका उतार के पीस लिया जाता है ।
प्रमेय कि उत्तम औषधिप्रमेह
प्रमेह (२० प्रकार के मूत्र-संबंधी विकार, जैसे- मधुमेह, शुक्रमेह आदि) के लिए हल्दी श्रेष्ठ औषधि है ।
शुक्रमेह अर्थात मूत्र के साथ शुक्र धातु के जाने कि समस्या में १ ग्राम हल्दी का चूर्ण २० मि.ली. आँवले के रस में अथवा ३ से ५ ग्राम आँवला चूर्ण व १ चम्मच शहद में मिलाकर सेवन करें । इससे थोड़े ही दिनों में लाभ होता है ।
श्वेतप्रदर में हल्दी के काढ़े में १ चम्मच शहद मिलाकर पीने से राहत मिलती है तथा गर्भाशय की शुद्धि व पुष्टि भी होती है ।
कुछ औषधीय प्रयोग
१] बवासीर : हल्दी को देशी गाय के घी में घिसकर बवासीर पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है ।
२] आँख आना : एक भाग हल्दी को २० भाग पानी में उबाल के काढ़ा बना लें एवं छान के ठंडा कर लें । इसकी २ – २ बूँदे आँख में दिन में दो बार डालें । इस ठंडे काढ़े में भीगे हुए सूती कपड़े से आँखों को ढकें । इससे आँख कि वेदना कम होती है तथा कीचड़ आना भी कम होता है ।
३] सुजाक रोग में : इसमें पेशाब गाढ़ा, वेदनायुक्त, बार-बार और थोडा-थोडा होता है । २०० मि.ली. पानी में २ ग्राम हल्दी और ६ ग्राम आँवला चूर्ण मिलाकर धीमी आँच पर उबालें । पानी आधा शेष रहने पर छानकर गुनगुना पियें । इससे पेशाब की जलन कम होती है, पेशाब व मल साफ आने लगते हैं ।
४] चोट एवं मोच होने पर : गिरने अथवा किसी प्रकार से अंदरूनी चोट पहुँची हो तो १ – २ ग्राम हल्दी को गुड़ के साथ खाने से अथवा दूध में हल्दी डालकर उबाल के लेने से दर्द में राहत मिलती है । अंदरूनी चोट व मोच पर हल्दी का गर्म लेप करने से भी लाभ होता है । चोट लगकर रक्तस्त्राव हो रहा हो तो हल्दी का चूर्ण लगाने से बह तुरंत बंद हो जाता है, घाव जल्दी भर जाता है व विषाणुओं के संक्रमण से रक्षा भी होती है ।