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जानें आज के व्रत व त्यौहार : आज है शीतला सप्तमी
न्युज डेस्क (एजेंसी)। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि है। इन तिथियों पर शीतला माता को ठंडे यानी बासी खाने का भोग लगाया जाता है और ठंडा खाना खाया जाता है। कुछ लोग सप्तमी और कुछ लोग अष्टमी तिथि पर ये व्रत करते हैं।
शीतला माता शब्द का अर्थ यह है कि जो माता शीतलता देते हैं। शीतलता यानी ठंडक। इस व्रत में देवी को शीतल यानी ठंडे खाना खाने का भोग लगाने की परंपरा है। भक्त भी ठंडा खाना ही खाते हैं।
शीतला माता का स्वरूप अन्य देवियों से एकदम अलग है। देवी मां गधे की सवारी करती हैं। शीतला माता के हाथों में कलश, झाड़ू, सूप यानी सूपड़ा रहता है।
मां शीतला नीम के पत्तों से बनी माला धारण करती हैं। कलश, झाड़ू, सूप और नीम ये सभी चीजें साफ-सफाई से संबंधित हैं। देवी शीतला का स्वरूप संदेश देता है कि हमें हमेशा साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए। जो लोग साफ-सफाई से नहीं रहते हैं, गंदगी में रहते हैं, उन्हें मौसमी बीमारियां बहुत जल्दी होने की संभावनाएं रहती हैं।
देवी मां की नीम की माला संदेश देती है कि नीम हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। नीम के सेवन सेहत को कई लाभ मिलते हैं। ध्यान रखें नीम का सेवन किसी डॉक्टर से सलाह लेकर ही करना चाहिए।
शीतला माता का ये व्रत दो ऋतुओं के संधिकाल में किया जाता है। अभी शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है, इस समय को संधिकाल कहा जाता है। इस समय में स्वास्थ्य संबंधित सावधानी न रखी जाए तो मौसमी बीमारियां होने की संभावनाएं बनी रहती हैं।
इन दो दिनों में शीतला माता को भक्त बासी यानी ठंडा खाने का भोग लगाते हैं और खुद ठंडा खाना ही खाते हैं। मान्यता है कि इस समय में ठंडा खाना खाने से भक्तों को ऋतु परिवर्तन से होनी वाली मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-कफ, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित और त्वचा संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।
शीतला माता के इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार पुराने समय में एक दिन किसी गांव के लोगों ने देवी मां को गर्म खाने का भोग लगा दिया था, जिससे देवी मां का मुंह जल गया और वह क्रोधित हो गई थीं।
शीतला माता के क्रोध की वजह से उस गांव में आग लग गई थी। पूरा गांव जल गया, लेकिन उस गांव में रहने वाली एक बूढ़ी औरत का घर बच गया था।
गांव के लोगों ने बूढ़ी महिला से बात की तो उसने बताया कि मैंने शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाया था। शायद इस वजह से मेरा घर आग से बच गया।
बुढ़िया की बात मानकर गांव के लोगों ने शीतला माता को ठंडा खाना अर्पित करना शुरू कर दिया। तभी से शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई है।