Science
रोगाणुओं के अध्ययन की उच्च-सुरक्षा प्रयोगशालाओं में वृद्धि
न्युज डेस्क (एजेंसी)। पिछले कुछ वर्षों में घातक रोगाणुओं का अध्ययन करने वाली प्रयोगशालाओं की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। ऐसे में इबोला और निपाह जैसे जानलेवा रोगाणुओं के लैब से लीक होने या दुरूपयोग का जोखिम बढ़ गया है।
ग्लोबल बायोलैब्स प्रोजेक्ट की संस्थापक किंग्स कॉलेज लंदन की जैव सुरक्षा विशेषज्ञ फिलिपा लेंटज़ोस ने बढ़ते जोखिम पर चिंता व्यक्त की है। सबसे अधिक जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाएं अकेले युरोप में हैं जिनमें से तीन-चैथाई तो शहरी क्षेत्रों में हैं।
ग्लोबल बायोलैब्स रिपोर्ट 2023 के अनुसार विश्व स्तर पर 27 देशों में 51 बीएसएल-4 प्रयोगशालाएं हैं। इन सभी प्रयोगशालाओं में उच्च स्तरीय सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता है। एक दशक पूर्व इन प्रयोगशालाओं की संख्या लगभग आधी थी। बीएसएल-4 प्रयोगशालाएं 2001 में एंथ्रेक्स और 2003 में सार्स के प्रकोप के बाद स्थापित की गई थीं।
तीन-चौथाई बीएसएल-4 प्रयोगशालाओं का शहरी क्षेत्रों में होने का मतलब है कि ये एक बड़ी आबादी के लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं। निकट भविष्य में 18 नई बीएसएल-4 प्रयोगशालाएं शुरू होने की संभावना है जो अधिकांशत: भारत, फिलीपींस वगैरह अधिकांश एशियाई देशों में होंगी। इस रिपोर्ट में 57 बीएसएल-3 प्लस अन्य प्रयोगशालाओं का भी ज़िक्र है जिनमें बीएसएल-3 से अधिक सुरक्षा उपायों का पालन किया जाता है। इनमें से अधिकांश युरोप में हैं जहां एच5एन1 इन्फ्लुएंज़ा जैसे रोगाणुओं का अध्ययन किया जा रहा है।
एशिया में भी कई ऐसी प्रयोगशालाएं हैं जहां खतरनाक रोगाणुओं का अध्ययन किया जा रहा है। हालिया सार्स-कोव-2 के बाद से तो बीएसएल-4 प्रयोगशालाओं में काफी तेज़ी से वृद्धि हुई है और ऐसी संभावना है कि जल्द ही यह संख्या दुगनी हो जाएगी। ऐसे में वायरस के प्रयोगशाला से लीक होने की आशंका बनी रहती है।
गौरतलब है कि कई देशों में बीएसएल-4 प्रयोगशालाओं की निगरानी के लिए पर्याप्त नीतियों और तरीकों का हमेशा से अभाव रहा है। केवल कनाडा ही एक ऐसा देश है जहां रोगाणुओं पर होने वाले गैर-सरकारी अनुसंधान की निगरानी के लिए भी कानून बनाए गए हैं।
इनमें विशेष रूप से उन प्रयोगों को शामिल किया गया है जिनके दोहरे उपयोग की संभावना हो सकती है। उक्त रिपोर्ट में आग्रह किया गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सशक्त मार्गदर्शन और बाहरी विशेषज्ञों द्वारा ऑडिट के लिए सभी देशों की सहमति बनवाने की ज़रूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रयोगशालाएं अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करती हैं।
चैत्र नवरात्रि का महानवमी आज, मां सिद्धिदात्री की होती है पूजा, जानें विधि व महत्तव
न्युज डेस्क (एजेंसी)। आज चैत्र नवरात्रि का आखिरी दिन है. आज मां सिद्धिदात्री की पूजा होगी. माता सिद्धिदात्री नवदुर्गा का नौवां स्वरूप है. इनकी पूजा-उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. और अगर नवमी के दिन केवल माता सिद्धिदात्री का पूजन किया जाए तो व्यक्ति को संपूर्ण देवियों की पूजा का फल मिलता है. इस दिन कमल के फूल पर बैठी हुई देवी का ध्यान करें. माता सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व नामक आठ सिद्धियां मौजूद है. आइए जानते हैं माता सिद्धिदात्री की पूजन विधि और उपाय.
माता सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं और मां की चार भुजाएं हैं जिसमें उन्होंने शंख, गदा, कमल, और चक्र लिया हुआ है. पुराणों के अनुसार बताया जाता है कि भगवान शिव ने कठिन तपस्या करके मां सिद्धिदात्री से ही आठ सिद्धियां प्राप्त की थी. इसके अलावा मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी का हो गया था और तब को अपने इस स्वरूप में अर्धनारीश्वर कहलाए थे. मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है. उन्हें रोग, शोक, और भय से मुक्ति मिलती है.
मां सिद्धिदात्री को मां दुर्गा का प्रचंड रूप माना जाता है. कहते हैं जिस किसी भी भक्तों की पूजा से मां प्रसन्न हो जाए ऐसे व्यक्तियों के शत्रु उनके इर्द-गिर्द भी नहीं टिक पाते हैं.
माता सिद्धिदात्री की पूजन विधि
नवमी तिथि के दिन मां के लिए प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ तरह के फूल, फल, भोग आदि पूजा में अवश्य शामिल करें. पूजा शुरू करने से पहले सबसे पहले देवी का ध्यान करें और उनसे संबंधित मंत्रों का जप करें. मां को फल, भोग, मिष्ठान, पांचों मेवा, नारियल आदि अर्पित करें. इसके बाद माता को रोली लगाएं.
मां का ध्यान करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. अंत में मां की आरती करें. कन्या भोजन कराएं. मां से अपनी मनोकामना करें और पूजा में शामिल सभी लोगों में प्रसाद अवश्य वितरित करें. पूजा करते समय इस खास मंत्र का उच्चारण जरूर करें “ॐ ह्रीं दुर्गाय नमः” .
ग्रहों को शांत करने का उपाय
मां के समक्ष घी का चौमुखी दीपक जलाएं. संभव हो तो उन्हें कमल का फूल अर्पित करें अन्यथा लाल पुष्प अर्पित करें. उन्हें क्रम से मिसरी, गुड़, हरी सौंफ, केला, दही, देसी घी और पान का पत्ता अर्पित करें. मां से ग्रहों के शांत होने की प्रार्थना करें.
महामाया मंदिर में दौ दिनों तक नवरात्र पर्व की रहेगी धूम, 25000 ज्योति कलश प्रज्वलित
बिलासपुर। बिलासपुर जिले के रतनपुर स्थित महामाया देवी की पूजा देश के 51वीं शक्तिपीठ के रूप में होती है। यहां पूरे नौ दिनों तक नवरात्र पर्व की धूम रहेगी।इस बार देवी मंदिर में 25 हजार ज्योति कलश प्रज्वलित की गई है। वहीं, लखनी देवी मंदिर में जवारा कलश का विशेष महत्व है। यहां इनकी पूजा मां अन्नपूर्णा के रूप में की जाती है। यही वजह है कि 28 साल से मंदिर में ज्वारा कलश स्थापित किए जा रहे हैं।
चैत्र नवरात्रि पर्व पर इस बार रतनपुर स्थित प्रसिद्ध महामाया देवी मंदिर में पूरे नौ दिनों तक यहां शतचंडी यज्ञ के साथ ही जसगीत का आयोजन भी होगा। वहीं, सप्तमी पर्व की रात पदयात्री हजारों की संख्या में देवी दर्शन करने पहुंचेंगे। यहां नौ दिनों तक श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहेगी। यहां 31 हजार ज्योति कलश प्रज्वलित करने का विश्व रिकॉर्ड भी है। पूरे नौ दिनों तक मंदिर में श्रद्धालु सुबह पांच बजे से रात 12 बजे तक दर्शन कर सकेंगे।
मंदिर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष सतीश शर्मा ने बताया कि मंगलवार को महामाया मंदिर में नवरात्रि पर्व की तैयारी पूरी कर ली गई थी। शाम 4 बजे तक भक्तों ने माता के दर्शन किए। इसके बाद मंदिर का पट बंद कर दिया गया। शाम 4 से लेकर रात 10 बजे तक माता का शुद्धिकरण किया गया। गर्भ गृह का शुद्धिकरण मुख्य पुजारी शशि मिश्रा व उनके परिवार ने किया।
बुधवार की सुबह 5 बजे माता का नव श्रृंगार किया गया। उन्हें अभिषेक कराया गया। नए वस्त्र धारण कराए गए। स्वर्ण मुकुट व नथिया पहनाई गई। सुबह 7 बजे से घट स्थापना शुरू हुई। इसके बाद माता 9 दिन व रात पूजा की मुद्रा में रहेंगी। भक्त माता का दर्शन करेंगे। 9वें दिन माता का श्रृंगार होगा।
देवी आराधना के साथ ही नवसंवत्सर की भी शुरुआत हो गई है। शुक्ल और ब्रह्म योग में पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की गई। इसके साथ ही घट स्थापना कर मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की गई। दुर्गा सप्तशती के अनुसार बुधवार को नवरात्र होने से माता का आगमन नौका पर होगा, जो फसल, धन-धान्य और विकास के लिए लाभदायक रहेगा।
रतनपुर के महामाया मंदिर ट्रस्ट की ओर संचालित लखनी देवी (महालक्ष्मी) मंदिर में ज्योति कलश से ज्यादा महत्व जवारा का रहता है। मान्यता है कि यहां जवारा की पूजा मां अन्नपूर्णा के रूप में होती है। 28 साल से यहां कलश स्थापित किया जा रहा है।
गांव में लोगों की यह भी मान्यता है कि जवारा जितना अच्छा रहेगा, उतनी अच्छी फसल होगी। यहां दर्शन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। यही वजह है कि मंदिर में 101 ज्योति कलश और 721 ज्वारा कलश स्थापित किया गया है। लखनी देवी मंदिर में मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु जवारा कलश स्थापित करते हैं।
रतनपुर स्थित महामाया देवी सहित जिले के 12 प्रमुख देवी मंदिरों में इस बार 30 हजार 310 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित की गई है। चैत्र नवरात्र इस बार पूरे नौ दिनों के होंगे और इस दौरान 16 विशेष योग बन रहे हैं, जिनमें चार सर्वार्थ सिद्धि, चार रवि योग, दो अमृत सिद्धि योग, दो राजयोग और एक-एक द्विपुष्कर व गुरु पुष्य का संयोग बनेगा। आखिरी नवरात्र 30 मार्च के दिन महागौरी पूजन व रामनवमी पर गुरु पुष्य योग का दुर्लभ योग रहेगा।
कृत्रिम उपग्रहों की भीड़ और खगोल विज्ञान
न्युज डेस्क (एजेंसी)। तीन साल पहले जब स्पेसएक्स नामक कंपनी ने स्टारलिंक इंटरनेट-संचार उपग्रहों की पहली खेप लॉन्च की थी, तब खगोलविद रात के आकाश की तस्वीरों को लेकर चिंतित हो गए थे। तब से अब तक हज़ारों स्टारलिंक उपग्रह लॉन्च हो चुके हैं: वर्तमान में 2,300 से अधिक स्टारलिंक्स पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। कुल कार्यशील उपग्रहों में से आधे तो यही हैं।
उपग्रहों से उपजी समस्या को कम करने में वैज्ञानिकों ने कुछ प्रगति तो की है। जैसे, इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) उपग्रहों के जंजाल से अंधेरे और शांत आकाश के संरक्षण के लिए जल्द ही एक वेबसाइट शुरू करने जा रहा है। इस वेबसाइट में एक टूल होगा जो आकाश में उपग्रहों की स्थिति के बारे में जानकारी देगा, ताकि खगोलविद उपग्रहों से बचकर अपने अन्वेषण उपकरणों को अन्यत्र लक्ष्य कर सकें।
लेकिन साक्ष्य बताते हैं कि उपग्रहों का यह ‘महापुंज' विश्व भर की खगोलीय वेधशालाओं और आकाश निरीक्षकों के काम में कितना व्यवधान डालेगा। उपग्रह कंपनियों को इस व्यवधान को दूर करने का अब तक कोई सटीक उपाय नहीं मिला है हालांकि स्पेसएक्स ने उपग्रहों की चमक कम करने के लिए स्टारलिंक्स पर प्रकाश-रोधी शेड्स लगाने शुरू किए थे। लेकिन नेचर के मुताबिक कंपनी ने अब यह कोशिश बंद कर दी है।
अगले कुछ वर्षों में हज़ारों नए उपग्रह प्रक्षेपित किए जाने की योजना है। और इसका खामियाजा खगोल विज्ञान को भुगतना होगा।
हाल के एक अध्ययन में पता चला है कि भविष्य में उपग्रहों के ये पुंज गर्मियों की रातों में लगभग 50 डिग्री दक्षिणी और 50 डिग्री उत्तरी अक्षांशों पर सबसे अधिक दिखाई देंगे, जहां कई युरोपीय और कनाडाई खगोलीय उपकरण स्थित हैं। अध्ययन के अनुसार यदि स्पेसएक्स और अन्य कंपनियां अपने प्रस्तावित 65,000 उपग्रह प्रक्षेपित कर देती हैं तो ग्रीष्म अयनांत (जून में) आकाश में इन अक्षांशों पर रात भर चमकीले बिंदु घूमते दिखेंगे। और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नग्न आंखों से दिखाई देने वाले लगभग 14 में से एक तारा वास्तव में कृत्रिम उपग्रह होगा।
उपग्रहों से उपजी चकाचौंध से एक-एक खगोलीय पिंड पर केंद्रित अध्ययन करने वाली वेधशालाओं की बजाय विस्तृत आकाश का अध्ययन करने वाली वेधशालाएं अधिक प्रभावित होंगी। कैलिफोर्निया के पालोमर पर्वत पर स्थित ज़्विकी ट्रांज़िएंट फैसिलिटी (ZTF), जो 1.2 मीटर चौड़ी दूरबीन से व्यापक आकाश का सर्वेक्षण करती है, ने अगस्त 2021 में गोधूलि बेला के दौरान जो तस्वीरें ली थीं, उनमें से 18 प्रतिशत छवियों में उपग्रह लकीरें दिखाई दे रही थी। अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या बढ़ने के साथ यह प्रतिशत भी बढ़ा है। अप्रैल 2022 में किए गए प्रारंभिक विश्लेषण में पाया गया कि 20-25 प्रतिशत छवियों में उपग्रह की लकीरें थी।
वैसे अब तक, ZTF की अधिकांश माप उपग्रह की लकीरों से प्रभावित नहीं हुई हैं क्योंकि इसकी छवि-प्रसंस्करण विधियां उपग्रहों को पहचान सकती हैं और इन्हें छुपा सकती हैं। लेकिन अन्य वेधशालाओं को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है – खासकर 8.4 मीटर चौड़ी दूरबीन वाली वेरा सी. रुबिन वेधशाला को। यह हर तीन दिन में पूरे दृश्य आकाश की तस्वीर लेगी। खगोलविद इस क्षति को कम करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं। जैसे वे एक एल्गोरिदम पर काम कर रहे हैं जो डैटा में उपग्रहों को पहचाने और उन्हें डैटा से हटा दे। लेकिन इस तरह से डैटा को ठीक करना भी मेहनत और समय मांगता है, जिससे काम प्रभावित होता है।
उपग्रहों की बढ़ती संख्या से रेडियो खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष में मलबा बढ़ने का भी खतरा है। इनका असर जीवन पर भी पड़ता है। उपग्रहों की चमक पीछे के आकाश को धुंधला कर देती है जो आकाशीय पिंडों की स्थिति देखकर रास्ता तय करने वाले जीवों को भटका सकती है। उपग्रहों की चमक मानव ज्ञान प्रणालियों में भी हस्तक्षेप कर सकती हैं। जैसे इसका असर ऐसी देशज ज्ञान प्रणालियों पर होगा जो महत्वपूर्ण घटनाओं को चिन्हित करने के लिए आकाशीय पिंडों की स्थिति पर निर्भर हैं।
बढ़ते उपग्रहों से आकाश में प्रकाश प्रदूषण बढ़ रहा है। रात के आकाश में उपग्रह के अधिकतम चमकीलेपन को लेकर फिलहाल कोई कानून नहीं हैं। खगोलीय संगठन इस समस्या पर ध्यान दे रहे हैं। स्रोत फीचर्स
विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण घटनाएं
न्युज डेस्क (एजेंसी)। वर्ष 2022 विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उपलब्धियों भरा साल रहा। यहां साल 2022 के ऐसे ही समाचारों का संकलन किया गया है।
सूरज के वायुमंडल में पहुंचा अंतरिक्ष यान
अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि जब कोई यान सूरज के वायुमंडल में प्रवेश कर पाया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का पार्कर सोलर प्रोब सूरज के ऊपरी वायुमंडल में पहुंचा। यह यान सूरज की सतह से 79 लाख किलोमीटर की दूरी पर रहा। इसने सूरज से उत्सर्जित कणों और चुबंकीय क्षेत्र सम्बंधी महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाए।
डायनासौर के पदचिंह
वैज्ञानिकों ने डायनासौर के पदचिंह पोलैंड में खोजे। इन निशानों से 20 करोड़ साल पहले के पारिस्थितिक तंत्र के बारे में नई जानकारी प्राप्त होगी। यह खोज पोलैंड की राजधानी वार्सा से 130 किलोमीटर दक्षिण में स्थित बोर्कोबाइस इलाके के खुले मैदान में की गई है।
शार्क का रसायन लैब में बनाया
शार्क में पाए जाने वाले स्कवेलिन नामक रसायन के लिए हर साल करीब 12 लाख शार्क का शिकार किया जाता है (एक शार्क के लीवर में मात्र 150 मिलीलीटर स्क्वेलिन मिलता है)। इसी स्क्वेलिन को प्रयोगशाला में बनाने में सफलता पाई आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिक राकेश शर्मा ने। उन्होंने जंगली वनस्पतियों और राजस्थानी मिट्टी की प्रोसेसिंग से स्क्वेलिन तैयार किया है।
कृत्रिम बुद्धि राइफल तैयार
आधुनिक हथियारों के निर्माण की दिशा में इस्राइल द्वारा कृत्रिम बुद्धि (एआई) आधारित स्व-चालित राइफल बना ली गई है। इसे अरकास नाम दिया गया है। इसे इस्राइल की रक्षा उत्पाद बनाने वाली कंपनी इल्विट ने बनाया है।
अंतरिक्ष में सैलून
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने हाल ही में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अंतरिक्ष में हेयर कटिंग सैलून खोला है।
चीनी यान ने चांद पर खोजा पानी
चीनी यान चांग-ई-5 द्वारा अंतरिक्ष मिशन के अंतर्गत चंद्रमा पर पानी की खोज की गई। यह भी पता चला कि चंद्रमा पर यान के उतरने के स्थान पर मिट्टी में पानी की मात्रा 120 ग्राम प्रति टन से कम थी।
30 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टान
जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका बुलेटिन में प्रकाशित एक शोध पत्र में बताया गया है कि भू-गर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण लद्दाख में सिंधु नदी के उत्तर में श्योक व न्यूब्रा घाटी में 29.9 करोड़ वर्ष पुरानी चट्टान खोजी गई है। इस चट्टान में गोंडवाना के समय के बीजों के जीवाश्म मिले हैं। गौरतलब है कि गोंडवाना पृथ्वी के अतीत में कभी एक महाद्वीप हुआ करता था।
दुनिया का सबसे बड़ा रोबोट
चीन ने चार पैरों पर चलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा रोबोट याक बनाया है। यह 160 किलोग्राम तक वज़न उठा सकता है और 1 घंटे में 10 किलोमीटर तक चल सकता है।
प्लास्टिक से हल्का और स्टील से मज़बूत पदार्थ
मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी ने एक ऐसा पदार्थ विकसित किया है, जो प्लास्टिक से हल्का और स्टील से ज़्यादा मज़बूत है। यह बुलेटप्रुफ कांच की तुलना में 6 गुना शक्तिशाली है। इसका प्रयोग सुरक्षा तकनीकों में किया जाना है।
डार्क मैटर और न्यूट्रिनो के बीच समानता
आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष के डार्क मैटर (अदृश्य पदार्थ) और ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले कण न्यूट्रिनो के बीच समानता का पता लगाया है। इस खोज को फिज़िकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित किया गया है।
मछली की नई प्रजाति
कोच्चि के सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा आनुवंशिक विश्लेषण की मदद से मछली की एक नई प्रजाति की खोज की गई है। यह मछली क्वीन फिश समूह में है और इसे स्कोम्बेरॉइडस पेलेजिकस नाम दिया गया है। इसे स्थानीय भाषा में पोला वट्टा कहते हैं।
विश्व की सबसे पुरानी चट्टान
अमेरिका की राष्ट्रीय स्पेस एजेंसी ने विश्व की लगभग सबसे पुरानी चट्टान को खोजने का दावा किया है। एजेंसी के अनुसार इस चट्टान पर करीब 3.45 अरब साल पुराने जीवाश्म स्ट्रोमेटोलाइट्स और सायनोबैक्टीरिया की कालोनियां हुआ करती थीं।
टेरासौर का पुराना जीवाश्म
उड़ने वाले रीढ़धारी पुरातन सरिसृप जीव टेरासौर का 17 करोड़ साल पुराना जीवाश्म स्कॉटलैंड के एक द्वीप पर प्राप्त हुआ है। यह टेरासौर की नई प्रजाति है, जिसके बारे में पहले जानकारी नहीं हुआ करती थी।
सूर्य की सबसे करीबी तस्वीर
नासा और युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साझा सोलर ऑर्बाइटर ने सूर्य की अब तक की सबसे करीबी तस्वीर प्राप्त करने में सफलता पाई है। यह तस्वीर सूर्य से 7.40 करोड़ किलोमीटर की दूरी से ली गई है। इस तस्वीर के अध्ययन से अंतरिक्ष मौसम की भविष्यवाणी करने में मदद मिलने की संभावना है।
रेबीज़ का नया टीका
भारत की दवा कंपनी कैडिला फार्मास्युटिकल ने रेबीज़ के लिए तीन खुराक वाला टीका विकसित किया है। यह नैनोपार्टिकल आधारित प्रोटीन टीका है।
अंतरिक्ष में पहला निजी दल
अंतरिक्ष में शोध करने के लिए पहला निजी दल अप्रैल माह में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में पहुंचा। ह्यूस्टन की स्टार्टअप कंपनी एग्जि़ओम स्पेस इंक द्वारा 4 यात्रियों के इस दल को 21 घंटे में सफलतापूर्वक भेजा गया।
पहली 3डी फिंगर टिप
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने एक 3डी फिंगर टिप बनाने में सफलता पाई है जो इंसान की त्वचा जैसी संवेदनशील है। इससे त्वचा की जटिल आंतरिक संरचना और स्पर्श के एहसास को समझने में सहायता मिलेगी।
सबसे दूर के तारे की खोज
युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया है कि शक्तिशाली अंतरिक्ष दूरबीन हबल ने पृथ्वी से अब तक के सबसे दूर स्थित तारे को खोज लिया है। इस तारे के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 12.9 अरब वर्ष का समय लगता है। इसे एरेन्डेल नाम दिया गया है।
ध्वनि की दो चालें
नासा के वैज्ञानिकों ने बताया है कि पृथ्वी पर ध्वनि 340 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चलती है लेकिन मंगल ग्रह पर ध्वनि की गति 240 मीटर प्रति सेकंड ही होती है। इसका कारण है मंगल का अल्प तापमान (औसतन ऋण 60 डिग्री सेल्सियस)
संचार की नई तकनीक
नासा ने अंतरिक्ष संचार के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नासा के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष संचार के लिए होलोपोर्टेशन नामक एक नई तकनीक ईजाद की है। इस तकनीक द्वारा नासा के एक वैज्ञानिक ने धरती पर रहते हुए ही अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के लोगों से स्टेशन पर अपनी एक प्रतिकृति के माध्यम से बातचीत की।
पहला स्वदेशी पॉलीसेंट्रिक घुटना
आईआईटी, मद्रास के शोधकर्ताओं ने भारत का पहला स्वदेशी पॉलीसेंट्रिक घुटना ‘कदम’ नाम से लॉन्च किया है। यह घुटने के ऊपर विकलांग हुए लोगों के लिए बेहद उपयोगी है।
विमान उतारने की नई स्वदेशी तकनीक
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने मिलकर विमान को लैंड कराने की नई उन्नत स्वदेशी तकनीक विकसित की है है। ऐसा करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया है।
रूबिक्स क्यूब हल करने वाला रोबोट
हैदराबाद के 11 साल के कक्षा 6 में अध्ययन करने वाले छात्र एस.पी.शंकर ने एक ऐसा रोबोट बनाया है, जो रूबिक्स क्यूब को स्वयं हल कर देता है। यह सफलता बिना पेशेवर मार्गदर्शन के मिली है।
विटामिन डी का स्रोत बना टमाटर
नेचर प्लांट्स जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक इंग्लैंण्ड के जॉन एनेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने जीन संपादन टेक्नॉलॉजी की मदद से टमाटर के जीनोम में बदलाव कर उसे विटामिन डी के बढ़िया स्रोत में बदल दिया है।
चंद्रमा पर खोजे 13 नए स्थान
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अगस्त में बताया कि उसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के समीप 13 नए स्थानों की खोज कर ली है जहां अंतरिक्ष यानों को उतारा जा सकता है।
3-डी प्रिंटेड कॉर्निया बनाया
हैदराबाद स्थित एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (हैदराबाद), व सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्यूलर बॉयोलॉजी के शोधकर्ताओं ने 3-डी प्रिंटेड कॉर्निया बनाने में सफलता पाई है। पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित इस कॉर्निया में कोई भी सिंथेटिक घटक नहीं है।
लैब में सूर्य के समान ऊर्जा
दक्षिण कोरिया के भौतिक वैज्ञानिकों ने एक फ्यूज़न रिएक्टर में चुंबकीय क्षेत्र का प्रयोग कर सूर्य के समान ऊर्जा उत्सर्जित करने में सफलता पाई है। इस प्रयोग में 30 सेकंड तक करीब 10 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान विकसित करने में सफलता मिली।
पहला हिमस्खलन रडार केंद्र
भारतीय सेना और रक्षा भू-सूचना विज्ञान और अनुसंधान प्रतिष्ठान ने संयुक्त रूप से सितंबर माह में सिक्किम राज्य में देश का पहला हिमस्खलन रडार केंद्र स्थापित किया है। यह रडार 3 सेकंड के भीतर हिमस्खलन का पता लगा सकता है।
अमेज़न का सबसे ऊंचा पेड़
वैज्ञानिकों ने अमेज़न के जंगलों में सबसे ऊंचा पेड़ खोजा है। इसकी लंबाई 88.5 मीटर है। वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र करीब 600 वर्ष आंकी है।
प्राकृतिक आपदा और रोबोट चूहा
चीन के वैज्ञानिकों ने ऐसा रोबोटिक चूहा बनाया है जो असली चूहे की तरह खड़ा हो सकता है, मुड़ सकता है, बैठ सकता है। यह रोबोटिक चूहा अपने वज़न का 91 फीसदी भार लेकर चल भी सकता है। इसे प्राकृतिक आपदा या युद्ध क्षेत्र में मदद के लिए बनाया गया है।
3-डी प्रिंटेड कान बना
दुनिया में पहली बार 3-डी प्रिंटेड कान बनाकर एक महिला को लगाया गया है। माइक्रोटिया रोग से ग्रसित लोगों के लिए यह बेहद फायदेमंद है।
सबसे पुराना पेड़ मिला
दक्षिण चिली के एक पार्क में दुनिया का सबसे पुराना पेड़ मिला है। पेरिस स्थित क्लाइमेट एंड एनवायरमेंटल साइंसेज़ लेबोरेट्री के पारिस्थितिकीविद जोनाथन बैरीचिविच के अनुसार पेड़ की उम्र 5484 साल है।
शून्य कार्बन उत्सर्जन कार
नीदरलैंड के आइंडहोवन प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शून्य कार्बन उत्सर्जन करने वाली कार का प्रोटोटाइप बनाने में सफलता प्राप्त की है। इसके अधिकांश हिस्सों को 3-डी प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी की मदद से तैयार किया गया है।
माउंट एवरेस्ट से बड़ी चट्टान
वैज्ञानिकों ने भूपर्पटी और पृथ्वी के कोर के बीच (पश्चिमी अफ्रीका और प्रशांत महासागर के मध्य) चट्टान की एक गर्म मोटी परत खोजी है, जो माउंट एवरेस्ट से 100 गुना बड़ी है।
वैज्ञानिकों ने विकसित किया नया इलेक्ट्रोलाइट, बेहतर अमोनिया संश्लेषण में हो सकता है सहायक
नई दिल्ली (एजेंसी)। एक नया जलीय विद्युत अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) जो विद्युत-रासायनिक (इलेक्ट्रोकेमिकल) अमोनिया संश्लेषण को अधिक कुशल बनाने में सहायक बन सकता है, भविष्य के हरित ऊर्जा या हाइड्रोजन का उत्पादन करने वाले उद्योगों के लिए उपयोगी होगाI
विद्युत-रासायनिक अमोनिया संश्लेषण का जलीय विद्युत अपघट्य पर्यावरण के साथ-साथ प्रतिस्पर्धी हाइड्रोजन विकास प्रतिक्रिया में नाइट्रोजन (एन) की खराब घुलनशीलता से बहुत सीमा तक सीमित है। इसमें बाधा यह थी कि नाइट्रोजन का अपचयन (रिडक्शन) वास्तव में जलीय माध्यम में होता है। इन चुनौतियों से पार पाने के प्रयास में "परिवेश" स्थितियों की अधिकतर निगरानी की जाती है। शोधकर्ता ज्यादातर उत्प्रेरक विकास पर काम करते हैं, जबकि विद्युत अपघट्य की क्षमता में सुधार होना अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है। हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, नाइट्रोजन अपचयन क्रिया (नाइट्रोजन रिडक्शन रिएक्शन–एनआरआर) से संबंधित 90.7 % शोध कार्यों ने मात्र उपयुक्त उत्प्रेरक विकास पर ध्यान केंद्रित किया है, जबकि केवल 4.7% शोधकर्ता ही इलेक्ट्रोलाइट्स पर काम करने के लिए समर्पित हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) मोहाली के वैज्ञानिकों ने सोडियम टेट्रा फ्लोरोबोरेट (एनएबीएफ4 - NaBF4) नामक एक ऐसा नया विद्युत अपघट्य विकसित किया है, जो न केवल माध्यम में नाइट्रोजन वाहक के रूप में कार्य करता है बल्कि यह भी बिल्कुल परिवेशी प्रायोगिक स्थितियों में अमोनिया (एनएच3) की उच्च उपलब्धि देने के लिए सक्रिय सामग्री संक्रमण धातु-डोप्ड नैनोकार्बन-मैंगनीज नाइट्राइड (एमएनएन4) के साथ एक पूर्ण "सह-उत्प्रेरक" के रूप में काम करता है। अमोनिया की उच्च उत्पादन दर औद्योगिक पैमाने पर पहुंच गई और किसी अन्य इलेक्ट्रोलाइट माध्यम में यह लगभग सभी मानक उत्प्रेरकों को पार कर गई थी। अमोनिया के स्रोत का अच्छी तरह से अध्ययन किया गया था और मुख्य रूप से शुद्ध नाइट्रोजन गैस की विद्युत रासायनिक कमी से होने की पुष्टि की गई थी। [नाइट्रोजन (एन 2) को अमोनिया (एनएच3) में परिवर्तित करने के लिए इसे नाइट्रोजन संतृप्त विद्युत अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) बनाना पड़ता है]।
पत्रिका (जर्नल) पीएनएएस में प्रकाशित यह शोध जलीय माध्यम में नाइट्रोजन (एन 2) की घुलनशीलता के बारे में लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को हल करने और परिवेश की स्थिति में नाइट्रोजन अपचयन क्रिया (नाइट्रोजन रिडक्शन रिएक्शन–एनआरआर) द्वारा अमोनिया की औद्योगिक पैमाने पर उत्पादन दर प्राप्त करने के लिए एक नया दृष्टिकोण है।
विज्ञान और्प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत विज्ञान इंजीनियरिंग अनुसन्धान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा समर्थित यह कार्य एक उपयोगकर्ता के अनुकूल जलीय विद्युत अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) सोडियम टेट्रा फ्लोरोबोरेट (एनएबीएफ4-NaBF4) लाता है जो शोधकर्ताओं को विद्युतीय उत्प्रेरकों (इलेक्ट्रो कैटालिस्टस) के बेहतर एनआरआर प्रदर्शन की दिशा में जलीय इलेक्ट्रोलाइट डिजाइनिंग पर अधिक काम करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इस शोधकार्य के लिए एक पेटेंट का आवेदन किया गया है और वैज्ञानिक अब औद्योगिक स्तर पर अमोनिया उत्पादन की तीव्र दर के लिए विद्युत अपघटक (इलेक्ट्रोलाइजर) बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
विज्ञान के संचार की जिम्मेदारी लें वैज्ञानिक : प्रो. रंजना
नई दिल्ली (एजेंसी)। यदि वैज्ञानिक संवाद नहीं करते हैं, तो गैर- विशेषज्ञ संवाद करना शुरू कर देंगे और फिर भ्रामक सूचनाओं और असत्य जानकारियों के बादल उठेंगे, इसलिए हमारे वैज्ञानिकों को विज्ञान संचार के महत्वपूर्ण कार्य में शामिल करना आवश्यक है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद-राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च की निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से सीएसआईआर- एनआईएससीपीआर द्वारा आयोजित स्वास्थ्य संचार पर आयोजित संपर्क सत्र में अपने उद्घाटन भाषण के दौरान इन विचारों को साझा किया।
उन्होंने कहा कि हमने हाल के दिनों में कोविड -19 महामारी से बहुत कुछ सीखा और हमने देखा कि कैसे विज्ञान संचार ने अनिश्चितता के उन दिनों में अवैज्ञानिक बातों को मिटाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कार्यक्रम में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की विभिन्न प्रयोगशालाओं के 30 वैज्ञानिकों ने भाग लिया।
सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर में पहले तकनीकी सत्र में चार विशेषज्ञों ने चिंता के विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिया। आर.एस. जयसोमु, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने अनुसंधान संचार बनाम विज्ञान संचार: समय की आवश्यकता पर व्याख्यान दिया। डॉ. वाई माधवी, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के वार्ता का विषय था कोविड पश्चात काल में स्वास्थ्य संचार।
डॉ. मनीष मोहन गोरे, वैज्ञानिक, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने विभिन्न मीडिया प्रारूपों के लिए लोकप्रिय विज्ञान लेखन पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। अश्विनी ब्राह्मी, प्रधान तकनीकी अधिकारी, सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर ने आईसीएमआर के भाग लेने वाले वैज्ञानिकों के साथ विज्ञान संचार में उत्पादन और मुद्रण की जानकारी पर चर्चा की।
रिचर्स में खुलासा : भारत समेत दुनियाभर के पुरुषों में कम हो रहा स्पर्म काउंट, बढ़ रहा आयु कम होने और कैंसर का खतरा
नई दिल्ली (एजेंसी)। एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च ने दावा किया है कि दुनियाभर में पुरुषों के स्पर्म काउंट में जबरदस्त गिरावट दर्ज हुई है. स्पर्म काउंट से सिर्फ प्रजनन क्षमता नहीं घटती बल्कि कई तरह के कैंसर का खतरा बढ़ता है और साथ में आयु भी कम हो जाती है. पिछले 46 सालों का आंकड़ों के आधार पर स्पर्म में 50 फीसदी की कमी आई है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि इसमें भारत भी शामिल है. शुक्राणुओं की संख्या न केवल मानव प्रजनन के लिए घातक है बल्कि पुरुषों के स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक है. शोधकर्ताओं ने बताया कि बिगड़ती लाइफस्टाइल और आहार की वजह से ही इसमें गिरावट दर्ज हो रही है. ह्यूमैन रिप्रोडक्शन अपडेट में 53 देशों के आंकड़ों को दर्शाया गया है. इसमें सात सालों के आंकड़ों का ब्योरा दिया गया है. इसमें दक्षिण अफ्रीका,भारत, अमेरिका, एशिया को शामिल किया गया है.
हिब्रु यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भारत के प्रति चिंता जताई है, उन्होंने कहा कि भारत में पुरुषों के स्पर्म में ज्यादा गिरावट आई है. साथ ही इसके पीछे के कारण भी बताया कि जीवनशैली तथा पर्यावरण में रसायन भ्रूण का इसपर बुरा असर हो रहा है.
डीआरडीओ ने स्वदेश मिसाइल एमपीएटीजीएम का किया सफलतापूर्वक परीक्षण
नई दिल्ली (एजेंसी)। क्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने बुधवार को स्वदेश में विकसित कम वजन वाली फायर एंड फॉरगेट मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एमपीएटीजीएम) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। डीआरडीओ ने कहा कि आत्मानिर्भर भारत को बढ़ावा देने और भारतीय सेना को मजबूत करने की दिशा में संगठन ने मिसाइल का सफल परीक्षण किया है।
डीआरडीओ ने कहा कि मिसाइल को एकीकृत मानव-पोर्टेबल लॉन्चर से लॉन्च किया गया था। एक टैंक के प्रतिरूप को इसका लक्ष्य बनाया गया था। मिसाइल ने सीधा हमला करके लक्ष्य को भेद दिया और इसका निशाना पूरी तरह से सटीक रहा। लक्ष्य भी पूरी तरह से नष्ट हो गया। संगठन ने कहा कि इस परीक्षण में मिसाइल ने अपनी न्यूनतम सीमा को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है।
डीआरडीओ ने कहा कि परीक्षण के दौरान इस मिशन के सभी उद्देश्यों को पूरा कर लिया गया। इस मिसाइल का अधिकतम सीमा तक उड़ान का परीक्षण सफलतापूर्वक किया जा चुका है। मिसाइल को उन्नत एवियोनिक्स के साथ अत्याधुनिक लघु इन्फ्रारेड इमेजिंग तकनीक के साथ लैस किया गया है।
इसके साथ ही डीआरडीओ ने बताया कि सतह से हवा में वार करने वाली नई पीढ़ी की आकाश मिसाइल (आकाश-एनजी) का ओडिशा के तट पर इंटीग्रेडेट टेस्ट रेंज (आईटीआर) से सफल परीक्षण किया गया।
12वीं पास लड़के ने बनाया रिमोट से चलने वाला ट्रैक्टर
राजस्थान (एजेंसी)। जब बाकी दुनिया बिना ड्राइवर की कार बनाने की कोशिश कर रही है तब इंडिया में रिमोट से चलने वाले ट्रेक्टर खेती कर रहे हैं. वैसे तो सुनने में ये थोड़ा अजीब जरूर लगेगा लेकिन ये कारनामा एक 12वीं पास लड़के ने कर दिखाया है।
राजस्थान के बारां जिले में एक किसान परिवार में जन्मे योगेश नागर ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। योगेश ने अपनी पिता की परेशानी को देखते हुए ड्राइवरलेस ट्रैक्टर बना डाला. इस ड्राइवर लेस ट्रैक्टर को रिमोट से कंट्रोल कर पूरे खेत की हंकाई -जुताई की जा सकती है. इसकी खासियत ये है कि इसे 1 किलोमीटर दूर से भी कंट्रोल किया जा सकता है और जैसे ही ट्रैक्टर के सामने कोई आता है तो इसमें लगे सेंसर एक्टिव हो जाएंगे और ब्रेक लग जाएंगे। योगेश ने यह कारनामा बीएससी (मैथ्स) फर्स्ट ईयर में कर दिखाया. योगेश ने बताया कि उनके पिता रामबाबू नागर खेती करते हैं. और उनके पास 15 बीघा खेतों के लिए एक ट्रैक्टर है। ट्रैक्टर चलाने के दौरान पिता के पेट में दर्द होता था. डॉक्टरों को दिखाया तो उनका कहना था कि आंतों में खिंचाव है और वो कभी भी ट्रैक्टर नहीं चलाएं। पिता की परेशानी को देख योगेश गावं चले आए और 2 महीने तक टैक्टर चलाया. 2 महीने तक ट्रैक्टर चलाने के बाद योगेश के दिमाग में एक आइडिया आया और उन्होंने ट्रैक्टर को ड्राइवर लेस बनाने की सोची।