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रक्षाबंधन 9 अगस्त पर : क्षमा करने और स्नेह बांटने का पर्व

न्यूज़ डेस्क (एजेंसी)। ” राखी ” अर्थात रक्षाबंधन का पर्व भाई – बहन के बीच स्नेह के प्रतीक का सबसे बड़ा पर्व है । छोटे से लेकर दाम्पत्य जीवन में प्रवेश कर चुके भाई – बहनों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है ।

यही वह पवित्र दिन है जब भाई – बहन अपने बीच पैदा हुए विवादों का पटाक्षेप कर रक्षाबंधन की डोरी को मजबूती दिया करते हैं । हिंदू धर्म में पौराणिक महत्व से परिपूर्ण रक्षाबंधन का पर्व सबसे बड़ा संदेश देने वाला पर्व कहा जा सकता है ।

इस पर्व में एक बहन अपने भाई के ललाट पर मंगल तिलक लगाकर ईश्वर से उसके कुशल क्षेम की प्रार्थना करती है , तो भाई अपनी बहन के द्वारा दिए जाने वाले आशीर्वाद के लिए लालायित दिखाई पड़ते हैं । वर्तमान में कलयुगी स्वार्थ के चलते भाई – बहनों के बीच मनभेद का होना सामान्य रूप से दिखाई पड़ रहा है । खून के रिश्तों में इस तरह की विचार भिन्नता ने कुछ दूरियां बढ़ाते हुए प्रेम और स्नेह के बीच दरारें पैदा की हैं ! रक्षाबंधन का पर्व ऐसी ही दूरियों को समाप्त करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है । किसी बात को लेकर एक – दूसरे के प्रति दुराव रखने वाले भाई – बहनों को संकल्पित होकर क्षमा जैसे गुण के वशीभूत उन काले बादलों से निकलने का प्रयास करना चाहिए , जिसने उनके प्रेम – स्नेह के ऊपर अपना आवरण ढंक दिया हो । यही इस पर्व का मुख्य मकसद है ।

यदि बहन बड़ी हो तो भाई की त्रुटियों को नासमझी मानकर हवन कुंड में भस्म कर दे और यदि भाई बड़ा हो तो छोटी बहन की भूलों को आइने में जमीं धूल समझकर झाड़ डाले।
” राखी ” महज एक धागा या सूत्र नहीं है , बल्कि यह एक बहन की भावनाओं , उसकी प्रार्थनाओं और भाई के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है । यही वह स्नेह बंधन है जो भाई – बहन के बीच रिश्तों की मजबूती और स्थायित्व को प्रकट करता है ।

यही वह त्योहार है जो भाई – बहन के रिश्ते की खूबसूरती और उसकी महत्ता को उजागर करता है । एक ओर जहां बहन रक्षा का सूत्र बांधकर अपने भाई से जीवन भर की सुरक्षा का वचन मांगती है तो दूसरी ओर भाई भी अपने इस कर्तव्य को निभाने की प्रतिबद्धता का पालन करने का विश्वास दिलाता है । यह पर्व पारिवारिक सदस्यों को एक साथ आने का अवसर भी प्रदान करता है ।

एक – दूसरे के प्रति कर्तव्यों के स्मरण बोध को भी रक्षा बंधन मजबूती प्रदान करता है । राखी का पर्व न केवल भाई – बहन के रिश्ते को बल प्रदान करता है वरन समाज में प्रेम एवं सदभाव को भी बढ़ाता है । वर्तमान की परिस्थितियों को देखकर बड़े दुःख के साथ कहना पड़ता है कि बदलती जीवनशैली ने हमें इतना ज्यादा व्यस्त कर दिया है कि इस दिन को छोड़कर पूरे वर्ष भर हमारे पास इतना वक्त नहीं कि बहन कैसी है ? भाई क्या कर रहा है ? जानने का प्रयास कर सकें ! ऐसे हालात कैसे बने ? इसका जिम्मेदार जैन है ? काफी सिर – फुटव्वल के बाद भी जवाब नकारात्मक ही है ! कभी ऐसा लगता है कि यह सब समय का प्रभाव है ! कभी लगता है सब अपने – अपने दायरों में कैद होकर रह गए हैं ! आज की आराम – तलब जिंदगी और प्रतिदिन के संघर्षों ने रिश्तों को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ा
है !

भागती – दौड़ती जिंदगी में पारिवारिक रिश्तों का स्वरूप तेजी के साथ बदलता जा रहा है । एक़ परिवार में रहने वाले भाई – बहनों के बीच तकरार और तनाव की लकीरें गाढ़ी होती जा रही हैं ! एक – दूसरे की तकलीफों को समझने की जरूरत महसूस नहीं की जा रही है ! भाई – बहन के रिश्ते आज की स्थिति में अपने प्रभुत्व और मान – सम्मान का प्रदर्शन करते ही दिखाई पड़ रहे हैं ! एक भाई को कब अपनी बहन की जरूरत है या एक बहन को कब भाई के सहारे की आवश्यकता है , इसे भी समझने में दोनों की हैसियत ( स्टेटस ) आड़े आ रही है ! ऐसी परिस्थिति में एक – दूसरे को संबल प्रदान करने की सोच ने तो लगभग दम ही तोड़ दिया है ! सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक जरूरतों के चलते आज भाई – बहन लंबे समय तक साथ नहीं रह पाते हैं ! ऐसे में रक्षाबंधन का पर्व ही उन्हें फिर से निकट लाने में बड़ी भूमिका का निर्वहन करता है । बावजूद इन सबके बढ़ती महंगाई , रिश्तों का खोखलापन और समय की कमी भाई को बहन के पास अथवा बहन को भाई के पास नहीं पहुंचने दे रहा है ! यह कहने में कोई संकोच नहीं कि सभी रिश्तों की तरह भाई – बहन का रिश्ता भी अब पहले की तरह नहीं रहा ! सारे उलाहनों और मन – मुटावो को त्यागकर एक – दूसरे की भावनाओं को सम्मान देते हुए राखी की महत्ता को पहचानना ही आज के समय की सबसे बड़ी मांग है ।

श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन का पर्व स्नेह , कर्तव्य और विश्वास का प्रतीक है । राखी मात्र रंगीन धागा नहीं बल्कि संवेदनात्मक संकल्प है । यही वह सूत्र है जिसके द्वारा बहन , भाई के दीर्घायु की कामना करती है । इस पर्व की महत्ता इस लोक में ही नहीं देवलोक में भी होने का प्रमाण हमारे धर्म शास्त्रों में मिलता है । देवराज इंद्र से लेकर राजा बलि तक अनेक पौराणिक कथाएं राखी के मंगलसूत्र से भरी पड़ी हैं । इतना ही नहीं मुगलकालीन शासकों ने भी रक्षाबंधन के पर्व को सम्मान प्रदान करते हुए उसे अपनी कलाइयों में धारण किया । रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक ऐसा त्यौहार है जो यह बताता है कि रिश्तों की बुनियाद खून से ज्यादा भावनाओं और विश्वास पर टिकी होती है । यह पर्व जहां भाई – बहन के रिश्ते को मजबूती देता है , वहीं समाज में सुरक्षा, कर्तव्य और सामंजस्य की भावना को भी प्रगाढ़ करता है ।

रक्षाबंधन का पर्व वास्तव में देखा जाए तो एक पवित्र अनुष्ठान है , जो प्रत्येक भाई – बहन को कर्तव्यों का स्मरण कराता है । सार्वभौमिक भाईचारे का यह पर्व असीमित दृष्टिकोण एवं शांति की स्थापना करता है । यह एक ऐसा पर्व है जो जाति, पंथ, आयु , लिंग , धर्म, सामाजिक – आर्थिक स्थिति , रंग और व्यक्तित्व के लक्षणों की सभी बाधाओं को तोड़ता है । रक्षा के पवित्र धागे ” राखी ” से बंधे होते हैं । इसमें शांति , प्रेम ,पवित्रता , ज्ञान, दया के मूल स्वभाव का संकल्प समाया होता है । रक्षाबंधन पर्व के दिन भाई – बहन एक – दूसरे से दूर रहने की स्थिति में साथ बिताए पलों को याद कर भावुकता एवं बचपन की हंसी – ठिठोली , लड़ाई – झगड़े , प्यार – स्नेह और हर तरह की उछल – कूद वाली मस्ती भरी तस्वीरों में रंग भरने लगते हैं । यही इस पर्व का उल्लास कहा जा सकता है ।

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