‘लाल आतंक’ पर वार : खूंखार नक्सली कमांडर मंडा रूबेन का आत्मसमर्पण, जगदलपुर जेल से फरार होने का था सूत्रधार

रायपुर। ‘लाल आतंक’ के विरुद्ध लगातार चलाए जा रहे अभियानों के बीच, इस उग्रवादी विचारधारा को एक और करारा झटका लगा है। बस्तर क्षेत्र के एक प्रमुख नक्सली कमांडर मंडा रूबेन उर्फ सुरेश ने पड़ोसी राज्य तेलंगाना में वारंगल के पुलिस कमिश्नर सुनप्रीत सिंह के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है।
शीर्ष कमांडर ने डाला हथियार
मंडा रूबेन नक्सलियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZC) का सदस्य था। समर्पण करने से पहले, वह दक्षिण बस्तर डिविजनल कमिटी का सचिव भी था। लगभग 67 वर्ष का रूबेन, पिछले 44 सालों से नक्सली संगठन में सक्रिय था। यह बड़ा कदम उसने तेलंगाना में उठाया है।
खौफनाक वारदातों का सरगना
रूबेन 1981 से बस्तर, कोंटा और अबूझमाड़ के घने क्षेत्रों में अपनी गतिविधियाँ संचालित कर रहा था। उसके रिकॉर्ड में कई बड़ी और हिंसक वारदातें दर्ज हैं:
वह 1988 के गोल्लापल्ली–मराईगुड़ा हमले में शामिल था, जिसमें 20 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे।
इसके अलावा, 1990 में तुर्लापाडु थाना हमले और कई ग्रामीणों तथा सरपंचों की हत्याओं के मामलों में भी उसकी भागीदारी सामने आई थी।
जगदलपुर जेल ब्रेक का मास्टरमाइंड
रूबेन का नाम 1991 के बहुचर्चित जगदलपुर जेल ब्रेक कांड के मास्टरमाइंड के रूप में भी जाना जाता है। पुलिस ने उसे 1991 में गिरफ्तार कर जगदलपुर जेल भेजा था। वहाँ करीब एक साल बिताने के बाद, उसने अपने चार अन्य साथियों के साथ भागने की विस्तृत योजना बनाई। उसने जेल की छत को काटा और तौलियों से रस्सी बनाकर जेल से फरार होने में सफल रहा।
विचारधारा का अंत: शांति की चाहत
लगभग चार दशक तक भूमिगत जीवन व्यतीत करने के बाद, रूबेन ने बढ़ती उम्र और गंभीर बीमारी को देखते हुए हथियार छोड़ने का निर्णय लिया। इस खूंखार नक्सली कमांडर पर पुलिस द्वारा 8 लाख रुपये का इनाम घोषित था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, रूबेन ने बताया कि अब माओवादी विचारधारा का समय समाप्त हो चुका है और वह अपने परिवार के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है।