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रूसी तेल के बिना भी चल सकती हैं भारतीय रिफाइनरियां : रिलायंस की वैकल्पिक तैयारी शुरू

नई दिल्ली (एजेंसी)। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने शुक्रवार को घोषणा की कि उसने रूसी तेल निर्यातक कंपनियों रोजनेफ्ट और लुकोइल पर लगाए गए ताजा प्रतिबंधों के मद्देनजर अपने रिफाइनरी संचालन में बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि फिलहाल इन प्रतिबंधों का सीधा असर भारत में ईंधन उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि सरकारी तेल कंपनियां (जैसे इंडियनऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम) बढ़ी हुई लागत का बोझ कुछ समय तक खुद वहन कर सकती हैं।

अमेरिकी प्रतिबंधों की हो रही समीक्षा

टाइम्स ऑफ इंडिया के सूत्रों के मुताबिक, देश की तेल कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभावों का बारीकी से अध्ययन कर रही हैं, खासकर भुगतान प्रणालियों और अन्य नियामक अनुपालनों के संबंध में। साथ ही, वे अपनी रिफाइनरियों को 21 नवंबर की समय सीमा के बाद रूसी कच्चे तेल के बिना काम करने के लिए भी तैयार कर रही हैं। अमेरिकी प्रतिबंध 21 नवंबर से प्रभावी होंगे।

रिलायंस का आधिकारिक बयान

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, “रिलायंस अपने रिफाइनरी परिचालन को लागू प्रतिबंधों और नियामक आवश्यकताओं के अनुरूप ढाल रही है, जिसमें यूरोपीय संघ द्वारा परिष्कृत उत्पादों के आयात पर लगाए गए प्रतिबंध और किसी भी सरकारी दिशानिर्देश का पालन करना शामिल है।”

कंपनी ने आगे बताया कि, “उद्योग में सामान्य प्रथा के तहत, आपूर्ति अनुबंध समय-समय पर बदलते बाजार और नियामक स्थितियों को दर्शाने के लिए विकसित होते हैं। रिलायंस इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने आपूर्तिकर्ताओं के साथ संबंध बनाए रखेगी।” यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से रूसी तेल कंपनी रोजनेफ्ट के साथ कंपनी के लगभग 5 लाख बैरल प्रतिदिन के कच्चे तेल आपूर्ति अनुबंध की ओर इशारा करता है।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता और तेल कीमतों में उछाल

रोजनेफ्ट और लुकोइल जैसी कंपनियों द्वारा वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 30 से 40 लाख बैरल तेल का निर्यात किया जाता है। इनकी आपूर्ति बाधित होने की आशंका ने वैश्विक तेल बाजार में लगभग 3-4% की कमी की संभावना पैदा कर दी है, जिससे कीमतें फिर से बढ़ गई हैं। बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड शुक्रवार को $66 प्रति बैरल से ऊपर निकल गया, जिसने गुरुवार को 5% की तेजी दर्ज की थी।

भारत की निर्भरता और वैकल्पिक स्रोत

इस साल अब तक भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूस का हिस्सा लगभग 34% रहा है, जिसमें रोजनेफ्ट और लुकोइल का योगदान लगभग 60% है।

इंडियनऑयल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “रूस के बदले पश्चिम एशिया, अफ्रीका या अमेरिका से आपूर्ति प्राप्त करना संभव है। हालांकि, अन्य देश भी इन्हीं स्रोतों की ओर रुख करेंगे, जिससे तेल की कीमतों और प्रीमियम दोनों में बढ़ोतरी होगी।” उन्होंने आगे कहा कि यदि कच्चे तेल की कीमत $70 प्रति बैरल से ज्यादा नहीं जाती है, तो लाभ मार्जिन पर इसका असर सीमित रहेगा।

आयात बिल बढ़ने की आशंका

रेटिंग एजेंसी ICRA का अनुमान है कि बाजार दर पर वैकल्पिक आपूर्ति प्राप्त करने से भारत का तेल आयात बिल लगभग 2% तक बढ़ सकता है, जिसका असर व्यापक आर्थिक संकेतकों पर पड़ सकता है।

रूसी तेल के विकल्प की संभावनाएं

हालांकि यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों ने रूस के “शैडो फ्लीट” (गुप्त जहाज नेटवर्क) को प्रभावित किया है, विशेषज्ञों का मानना है कि मॉस्को अभी भी बड़ी मात्रा में तेल वैश्विक बाजार में भेजने में सक्षम रहेगा। रूस नए मध्यस्थों और ट्रांसशिपमेंट मार्गों के जरिए अपनी आपूर्ति को रोजनेफ्ट और लुकोइल से अलग दिखाकर बाजार में बनाए रख सकता है। फिर भी, इसका वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिकी ट्रेजरी विभाग इन प्रतिबंधों को कितनी सख्ती से लागू करता है।

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