रायपुर सेंट्रल जेल में कांग्रेस नेता की मौत : परिजनों ने लगाया गंभीर लापरवाही का आरोप

रायपुर। रायपुर सेंट्रल जेल में बंद कांग्रेस के जाने-माने नेता और सर्व आदिवासी समाज के पूर्व जिला अध्यक्ष जीवन ठाकुर के निधन के बाद इलाके में तनाव बढ़ गया है। वन अधिकार पट्टा घोटाले के एक मामले में सज़ा काट रहे ठाकुर, जो चारामा के पूर्व जनपद अध्यक्ष भी थे, ने गुरुवार सुबह मेकाहारा अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली।
जेल प्रशासन ने दावा किया कि ठाकुर की तबीयत अचानक बिगड़ी, जिसके बाद उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया। हालांकि, उनके परिवार और समर्थकों ने इस दावे को खारिज करते हुए इसे एक संदिग्ध मौत बताया है।
जेल स्थानांतरण और इलाज पर जानकारी छिपाने का आरोप
ठाकुर के परिवार का सबसे गंभीर आरोप यह है कि उन्हें कांकेर जिला जेल से रायपुर सेंट्रल जेल में 2 दिसंबर को बिना किसी पूर्व सूचना के स्थानांतरित किया गया, जबकि उनकी सेहत पहले से ही ठीक नहीं थी।
परिजनों का कहना है कि न तो जेल बदलने की जानकारी दी गई और न ही तबीयत खराब होने पर अस्पताल में भर्ती कराने की।
भर्ती: परिजनों के अनुसार, ठाकुर को 4 दिसंबर की सुबह 4:20 बजे डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया।
निधन: उसी सुबह 7:45 बजे उनका निधन हो गया।
सूचना: परिवार को मौत की जानकारी अगले कई घंटों बाद, शाम लगभग 5 बजे दी गई।
परिवार ने इसे जेल प्रशासन की घोर लापरवाही और अपनी जिम्मेदारी से बचने की सोची-समझी कोशिश बताया है।
आदिवासी समाज में भारी आक्रोश, जाँच की मांग
इस घटना से आदिवासी समाज में भारी गुस्सा है। आदिवासी प्रतिनिधियों और परिवारजनों ने मिलकर चारामा थाना प्रभारी को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें जेल प्रशासन पर लापरवाही, अत्याचार और हत्या का गंभीर आरोप लगाया गया है।
समाज के नेताओं ने सवाल उठाया है कि यदि जीवन ठाकुर की सेहत लगातार खराब हो रही थी, तो उन्हें समय रहते उचित और पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएँ क्यों नहीं दी गईं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज का बड़ा हमला
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने इस घटना को जेल प्रशासन की बड़ी लापरवाही करार दिया है और राज्य सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है।
बैज ने कहा कि जीवन ठाकुर को पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में वैध वन अधिकार पट्टा मिला था, जिसे मौजूदा सरकार ने बाद में ‘फर्जी’ घोषित कर उन पर केस दर्ज कर दिया।
उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि:
“जेल में न तो उन्हें समय पर भोजन दिया गया और न ही सही इलाज। यह केवल लापरवाही नहीं है, बल्कि जानबूझकर की गई क्रूरता है।”
दीपक बैज ने आदिवासी समाज में फैले तीखे आक्रोश का उल्लेख करते हुए पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। उन्होंने बताया कि वह अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए कांकेर जा रहे हैं और आगे की रणनीति पर आदिवासी नेताओं के साथ चर्चा करेंगे।
यह घटना रायपुर से लेकर कांकेर तक के राजनीतिक और सामाजिक माहौल को गर्मा रही है और मामले की उच्च-स्तरीय जांच की मांग तेज़ हो गई है।
















