दीपावली अब यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत, संस्कृति मंत्री अग्रवाल ने दी बधाई

रायपुर। प्रकाश का महापर्व, दीपावली, अब विश्व मंच पर भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित हो गया है। यूनेस्को की अंतरसरकारी समिति ने नई दिल्ली के लाल किला परिसर में चल रही अपनी बैठक के दौरान ‘दीपावली, द फेस्टिवल ऑफ लाइट्स’ को प्रतिनिधि सूची में शामिल करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इसके साथ ही, दीपावली भारत की 16वीं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत बन गई है।
भारत की आध्यात्मिक परंपरा को मिली वैश्विक स्वीकृति
इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर छत्तीसगढ़ के संस्कृति मंत्री राजेश अग्रवाल ने प्रदेश और देश के नागरिकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने इसे भारत की आध्यात्मिक परंपरा, सांस्कृतिक विविधता और सामूहिक उल्लास की भावना की वैश्विक स्वीकृति बताया। मंत्री अग्रवाल ने कहा कि अंधकार पर प्रकाश की और बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देने वाले इस त्योहार को वैश्विक मान्यता मिलना हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
छत्तीसगढ़: प्रभु राम का ननिहाल और ‘भांचा राम’ की परंपरा
संस्कृति मंत्री अग्रवाल ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि प्रभु श्री राम के वनवास का एक लंबा हिस्सा आज के छत्तीसगढ़ क्षेत्र के वनों और आश्रमों में बीता था, जिससे यह भूमि श्री राम के पवित्र चरणों से अभिमंडित है। ऐतिहासिक रूप से, छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल (मामा का घर) माना जाता है, क्योंकि माता कौशल्या की जन्मस्थली चंदखुरी में उनका प्राचीन मंदिर स्थित है। यह स्थल राम-कौशल्या के पवित्र रिश्ते का जीवंत प्रमाण है।
इसी भावनात्मक जुड़ाव के कारण, छत्तीसगढ़ की जनता भगवान श्री राम को स्नेहपूर्वक ‘भांचा राम’ (भानजा राम) कहकर पुकारती है। भांजे (बहन के बेटे) के प्रति विशेष आदर व्यक्त करने की यहां एक लोक-परंपरा भी है, जिसके तहत उनके चरण स्पर्श किए जाते हैं। यह अनूठी परंपरा छत्तीसगढ़ी समाज में भगवान राम के प्रति अपनत्व, भक्ति और पारिवारिक निकटता को दर्शाती है।
यूनेस्को सम्मान: एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव
मंत्री अग्रवाल ने कहा कि दीपावली का यूनेस्को की विरासत सूची में शामिल होना छत्तीसगढ़ के लिए भी गौरवशाली है, क्योंकि यह वही त्योहार है जिसे श्री राम के अयोध्या वापसी की स्मृति में यहां के गाँव-गाँव में विशेष उत्साह और पारिवारिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यह मान्यता दीपावली को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, पारिवारिक मिलन, लोककला, रंगोली, दीप सज्जा और पारंपरिक हस्तशिल्प के एक व्यापक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में स्वीकार करती है।
साझा जिम्मेदारी और सांस्कृतिक कूटनीति का विस्तार
अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि यूनेस्को की सूची में शामिल होने के बाद भारत और छत्तीसगढ़ की यह साझा जिम्मेदारी है कि दीपावली से जुड़ी लोक-परंपराओं, पर्यावरण-अनुकूल आचरण, शिल्पकला और सामूहिक उत्सव संस्कृति को अगली पीढ़ियों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाया जाए।
उन्होंने प्रदेशवासियों से भारतीय संस्कृति के मूल मंत्रों जैसे सद्भाव, सेवा, साझा आनंद और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाने का आह्वान किया। मंत्री ने विश्वास जताया कि श्री राम के आदर्शों और ‘भांचा राम’ के प्रति छत्तीसगढ़ की आत्मीय श्रद्धा से प्रेरित होकर, यह प्रदेश सामाजिक और आध्यात्मिक प्रगति के नए आयाम स्थापित करेगा।
संस्कृति मंत्री ने कामना की कि यह वर्ष सभी के जीवन में सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और नई ऊर्जा लाए। उन्होंने कहा कि यूनेस्को की यह मान्यता विश्व समुदाय में भारतीय त्योहारों के प्रति जिज्ञासा और सम्मान बढ़ाएगी, और छत्तीसगढ़ को श्री राम के वनगमन पथ व कौशल्या धाम के रूप में देखने आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में भी वृद्धि होगी।
















