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फसल विविधीकरण से बदली किस्मत: बेमेतरा के दिलीप सिन्हा ने खेती को बनाया मुनाफे का सौदा

बेमेतरा। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के अंतर्गत आने वाले ग्राम जेवरा के एक प्रगतिशील किसान, दिलीप सिन्हा, आज क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं। उन्होंने पारंपरिक रूप से की जाने वाली ग्रीष्मकालीन धान की खेती का त्याग कर दलहन और तिलहन फसलों को अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने 25 लाख रुपये का शुद्ध लाभ अर्जित किया है।

धान की जगह दलहन-तिलहन ही क्यों?

आमतौर पर रबी और ग्रीष्म ऋतु में किसान धान लगाने को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन इसमें लागत और संसाधनों की खपत अधिक होती है। दिलीप जी ने बदलाव की आवश्यकता को समझा क्योंकि:

जल संरक्षण: धान की तुलना में दलहन-तिलहन फसलों को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है।

लागत में कमी: इसमें उर्वरक, बिजली और कीटनाशकों पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है।

भूमि की सेहत: दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर उसकी उर्वरकता को प्राकृतिक रूप से सुधारती हैं।

सफलता के पीछे के मुख्य कारक

दिलीप सिन्हा की इस उपलब्धि में केवल फसल का चुनाव ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भी बड़ी भूमिका रही है। उन्होंने निम्नलिखित तकनीकों को अपनाया:

उन्नत किस्मों का उपयोग: कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर बेहतर पैदावार देने वाले बीजों का चयन।

सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली: पानी की हर बूंद का हिसाब रखने के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर (फव्वारा) पद्धति का प्रयोग।

एकीकृत प्रबंधन: बीजोपचार से लेकर फसल कटाई के बाद उचित भंडारण तक, हर कदम पर सावधानी बरती।

आर्थिक लाभ और सामाजिक संदेश

जहाँ धान की खेती में बढ़ती लागत के कारण मुनाफ़ा कम होता जा रहा था, वहीं मूंग, उड़द, सरसों और तिल जैसी फसलों ने दिलीप जी की आय को नई ऊंचाइयों पर पहुँचा दिया। उनकी इस सफलता ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि किसान बाजार की मांग और उपलब्ध संसाधनों के बीच सही संतुलन बनाना सीख लें, तो खेती वाकई एक लाभदायक व्यवसाय बन सकती है।

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