भारतीय रुपये में ऐतिहासिक गिरावट : 91 के पार पहुंचा डॉलर, आम आदमी और अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?

नई दिल्ली (एजेंसी)। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए दिसंबर 2025 एक चुनौतीपूर्ण मोड़ लेकर आया है। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिरकर 91 रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। इस गिरावट ने न केवल निवेशकों की नींद उड़ा दी है, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी महंगाई की चिंता बढ़ा दी है।
गिरावट के मुख्य कारण: क्यों टूट रहा है रुपया?
रुपये की इस कमजोरी के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारक जिम्मेदार हैं:
विदेशी पूंजी की निकासी: इस साल विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने भारतीय बाजारों से लगभग 18 अरब डॉलर से अधिक की पूंजी निकाली है। जब विदेशी निवेशक अपना पैसा निकालते हैं, तो वे रुपये बेचकर डॉलर खरीदते हैं, जिससे डॉलर की मांग बढ़ जाती है और रुपया कमजोर होता है।
अमेरिकी व्यापार नीतियां: अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ (सीमा शुल्क) लगाने से निर्यात प्रभावित हुआ है। व्यापार समझौते को लेकर बनी अनिश्चितता ने निवेशकों के भरोसे को कम किया है।
कच्चा तेल और व्यापार घाटा: भारत अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतें भारत के आयात बिल को बढ़ा रही हैं, जिससे व्यापार घाटा (Trade Deficit) गहरा रहा है।
वैश्विक डॉलर की मजबूती: अमेरिका में ऊंची ब्याज दरों के कारण दुनिया भर के निवेशक डॉलर को एक सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं, जिससे अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है।
आपके जीवन पर क्या होगा प्रभाव?
रुपये के मूल्य में कमी का सीधा असर आपकी जेब पर पड़ता है:
महंगा होगा आयात: इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य विदेशी मशीनरी की कीमतें बढ़ सकती हैं।
ईंधन की कीमतों में उछाल: चूंकि तेल का भुगतान डॉलर में होता है, रुपया कमजोर होने से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ सकते हैं, जिससे माल ढुलाई महंगी होगी और अंततः खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ेंगे।
विदेश यात्रा और शिक्षा: अगर आप विदेश घूमने या वहां पढ़ाई करने की योजना बना रहे हैं, तो अब आपको पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे।
बचाव के रास्ते: गिरावट को कैसे रोका जा सकता है?
विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं के अनुसार, स्थिति को संभालने के लिए निम्नलिखित कदम प्रभावी हो सकते हैं:
RBI का हस्तक्षेप: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर बाजार में रुपये की तरलता को संतुलित कर सकता है।
निर्यात को प्रोत्साहन: आईटी, फार्मा और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाकर देश में डॉलर की आवक (Inflow) बढ़ाई जा सकती है।
निवेश नीतियों में सुधार: मैन्युफैक्चरिंग और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करना रुपये को लंबी अवधि में स्थिरता प्रदान करेगा।
व्यापार समझौते: अमेरिका और अन्य प्रमुख देशों के साथ व्यापारिक गतिरोध दूर करने से बाजार में सकारात्मक संदेश जाएगा।
निष्कर्ष: रुपये की वर्तमान स्थिति चिंताजनक जरूर है, लेकिन ठोस नीतिगत सुधारों और विदेशी निवेश में बढ़ोतरी से इसे दोबारा पटरी पर लाया जा सकता है। फिलहाल, बाजार की नजरें आरबीआई के अगले कदमों और वैश्विक व्यापारिक घटनाक्रमों पर टिकी हैं।
















