वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ‘सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल’ काश छत्तीसगढ़ को भी योगी जैसा मुखिया मिलता
जो बोओेगे वो काटोगे
एक कहानी
एक बार एक चोर चोरी करने गया तो मालिक जाग गया तो उसने मालिक को धक्का दिया। मालिक गिर गया और मर गया। राजा ने सुनवाई की और चोर को फांसी की सजा सुना दी। फांसी पर चढ़ने से पहले चोर की अंतिम इच्छा पूछने पर उसने मां से मिलने की बात की। जब मां मिलने आई तो उस चोर ने गले लगने के बहाने मां का कान काट लिया।
राजा ने जब इसका कारण पूछा तो चोर बोला ‘महाराज जब मैं छोटा बच्चा था तो एक बार पड़ोस के बच्चे का खिलौना ले आया था। तब मेरी मां ने उसे चुपचाप छिपा कर रख दिया। इस तरह मैं और भी सामान लाने लगा और मां उन्हें छिपाकर अपने काम ले आती। धीरे-धीरे मैं शातिर चोर बन गया। और ‘और कुछ’ मैने सीखा ही नहीं। मुझे चोर बनाने वाली मेरी मां है’।
दूसरी कहानी
फिल्म नरसिम्हा की। विलेन अमरीश पुरी सारे शहर पर दादागिरी करता था अतीक अहमद की तरह… नाम था नरसिम्हा। कहां कौन धंधा करेगा और किस फैक्ट्री में कौन काम करेगा, ये नरसिम्हा ही तय करता था। जो जमीन पसंद आ गयी उसे हथिया लिया। थाने में रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। एक बार कोई रिपोर्ट लिख दी गयी तो सीधे जज को फोन कर दिया और घर बैठे जमानत हो गयी।
ऐसे में जब नरसिम्हा के ही आदमी हीरो सन्नी दयोल ने बगावत कर दी तो धीरे-धीरे विद्रोह होने लगा। एक समय ऐसा आया जब लोग खुलकर नरसिम्हा के खिलाफ बोलने लगे। ऐसे में एक व्यक्ति ने हीरो के सहयोग से थानेदार पर दबाव डालकर रिपोर्ट कर दी तो नरसिम्हा ने जमानत के लिये जज को फोन किया। तब बदलती हवा के चलते जज को भी अपनी गुलामी और अपमान की याद आ गयी तो उसने घर बैठे जमानत देने से इन्कार कर दिया।
अतीक पर लागू दोनों कहानियां
ये दोनो कहानियां अतीक अहमद पर सटीक बैठती हैं। अतीक के शूटर गुलाम की मां का कहना है कि हमने बचपन से कभी उसे चोरी के लिये प्रोत्साहित नहीं किया। उसने जो किया है गलत किया है। जब वो औरों को मारता फिरता था तो अब उसे मार दिया गया तो गिला कैसा ?
ईधर असद यानि अतीक के बेटे की बात करें तो साफ बात है कि उसकी मां इन सब अपराधों में सहभागी रही है तो उसके बेटे से संस्कार और मानवता की क्या उम्मीद की जा सकती है ? मजे की बात ये है कि असद की मां अतीक की पत्नी खुद फरार है। अतीक का भाई जेल में है, अतीक के दो बड़े बेटे जेल में और दो छोटे बेटे बाल सुधार गृह यानि बच्चों की जेल में हैं। और मंझला असद तो निकल लिया योगी जी की कृपा और उत्तरप्रदेश के सौभाग्य से। यानि पूरा खानदान ‘इंगेज्ड’। कोई भी इतना भी समर्थ नहीं है जो परिवार के सदस्य के मरने पर उसका अंतिम संस्कार तक कर सके।
काश छत्तीसगढ़़ को भी ऐसा मुखिया नसीब होता….
दूसरी कहानी में अपने हीरो योगी आदित्यनाथ ने विलेन के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और जो कहा वो किया यानि मिट्टी में मिला दिया। धन्य है योगीजी, धन्य है उत्तरप्रदेश की धरती। काश छत्तीसगढ़़ को भी ऐसा मुखिया नसीब होता….