वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक, कुर्सीनामा भाग 06
मित्रोओऊऊऊऊ का राग सुनते ही बच्चे कहने लगे है लो आ गए आपके गप्पू भाई अब सुनो उनके मन की बात हम तो चले अपने मन की बात बताने मम्मी के पास । आज बच्चो का डायलाग कम कटाक्ष ज्यादा को सुन मन मे विचार जरूर आया आजकल लोग सिर्फ अपने मन की सुनाए पड़े है सामने वाले के मन की बात कोई सुन ही नही रहा ना सुनना चाह रहा । बच्चे अपने मन की बात माँ बाप से नही कर पा रहे , कार्यकर्ता की संगठन नही सुन रहा , जनता की नेता नही सुन रहे बस सब सुनाने में मस्त है इसीलिए बागेश्वर बाबा और पंडित प्रदीप मिश्रा जी के यंहा भीड़ है । मोदी के मन की बात की 100 वी कड़ी के बीच प्रदेश के कद्दावर भाजपा नेता नन्दकुमार साय अपने मन की भड़ास निकाल पार्टी से इस्तीफा दे छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल ला दिये है । पार्टी में उनकी उपेक्षा ने मोदी की ताजपोशी के बाद बने हालात से एक बात जरूर याद आती हैं कि जब चेला गुरु को मार्गदर्शक मंडल के किले में कैद कर दे गुरु की सलाह तक लेना बन्द हो जाय और उसको सिर्फ आशीर्वादी रोबोट के रूप में रखे रहे तो इज्जत तो कम होनी ही है । एक ही दल में रहते हुये जननेता की जब इज्जत कम होती जाती है उपेक्षाएं बढ़ती जाती है तो इस्तीफा और हृदय परिवर्तन ही विकल्प बचता है ।
नंदकुमार साय का भाजपा छोड़ना ,संगठन चला रहे लोगो के लिए एक बड़ा झटका है । दलबदल हमारी शानदार राजनीतिक परपंरा का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है और अब इससे परहेज कैसा , यह तो विचारों के तालमेल का मामला है बस ।
राजनीति में किसी नेता का पार्टी से त्याग पत्र देना और किसी अन्य दल में जाना आम बात है अमूमन जनता इसे हल्के में लेने भी लगी है । राजनीतक दल भी ऐसा दिखाने की कोशिशों में लगे रहते है कि इन घटनाओ को कोई फर्क नही पड़ता । फर्क तो पड़ता है दादा और कभी कभी फर्क इतना पड़ जाता है कि हाथ आती सत्त्ता की कुर्सी हाथ से फिसल भी जाती है । ऐसे अनेक उदाहरण कई राज्यों में देखने को मिले भी है उस पर चर्चा फिर कभी ।
विद्याचरण शुक्ल के कांग्रेस से निकलने के बाद कांग्रेस को सत्ता सुख से 15 साल दूर रहना पड़ा था । विद्याचरण के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय का इस्तीफा छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ी घटना है जो भाजपाई खेमे की चूलें हिलाने वाली भी हो सकती है। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के ठीक 100 दिन पहले साय का इस्तीफा और अपने ही पार्टी में कार्यकर्ताओं की नाराजगी झेलती एंटी इन्कंबेसी से जूझ रही भाजपा के लिए यह शुभ संकेत नही है । इस्तीफा देने के बाद सोशल मिडिया के माध्यम से जिस प्रकार नंदकुमार साय ने 15 वर्षो में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और आदिवासी नेताओं की उपेक्षा कर हाशिये पे लेजाने की जो बाते कही गई वह कटु सत्य है । जिसे पार्टी का अदना सा कार्यकर्ता भी गाहे बगाहे स्वीकारता है समझता भी है , बड़े नेता अपनी मुखर आवाज से पुष्ट भी करते रहते है , हांलाकि यह पार्टी का अंदरूनी मामला है किन्तु इस बात में कही दो राय नही कि भाजपा कार्यकर्ता पहले अपने ही सत्ताधारी नेताओं के व्यवहार और उपेक्षा से दुखी थे अब संगठन में मनमर्जी चलाने वाले ठेकेदारों से ।
चुनाव के ठीक पहले सामान्य दिख रहे माहौल के बीच साय का इस्तीफा पार्टी के अंदर संगठन में बैठे आकाओं और तुर्रमखां बने फिर रहे नेताओ के लिए बड़ा सबक है क्योंकि भाजपा में ऐसे असंतुष्ट आदिवासी नेताओं की लम्बी फेहरिस्त है जो प्रदेश में भाजपा के राजनीतक पटल से लंबे अर्से से गायब दिखाई पड़ रहे है । हांलाकि उनका असन्तोष सार्वजनिक तो नही हुआ किन्तु राजनीतक जानकारों के अनुसार आफ द रिकार्ड सभी बड़े नेताओं ने संगठन के क्रिया कलापों से नाराजगी व्यक्त करने में कभी कोताही नही बरती है । राजनैतिक गलियारों की चर्चाओं की माने तो रामविचार नेताम , रामसेवक पैकरा , ननकी राम कंवर ,विष्णुदेव साय जैसे आदिवासी समाज से आने वाले भाजपा के बड़े आदिवासी चेहरे पार्टी के वर्तमान लीडर शिप से ज्यादा संतुष्ट नही है अपनी उपेक्षा से नाराज है किंतु पार्टी के अनुशासन के चलते मन की बात कह नही पा रहे ।
नाम न लिखने के शर्त पर भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता कहते है कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और संगठन में आये प्रदूषण के लिए संगठन महामंत्री से लगभग नेता उतने ही नाराज है जितना सत्ता में रहे व बड़े बड़े पदों पर बैठे नेताओं से नाराज थे । कार्यकर्ताओं का मानना है भाजपा संगठन के अंदर कार्यकताओं को बांधे रखना संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी होती है भाजपा के संगठनात्मक ढाचे में संगठन महामंत्री की भूमिका अध्यक्ष के बाद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती जिस पर हांलाकि वर्तमान में आदिवासी नेता ही काबिज है । राजनीतिक गलियारों की चर्चाओं और कार्यकर्ताओं के मन की पीड़ा की माने तो संगठन महामंत्री सत्ता के चकाचौंध से कुछ इस कदर प्रभावित हुए कि उन्हें कार्यकर्ताओं की उपेक्षा नजर ही नहीं आ पा रही ना ही वे ऊपर अपने आकाओं तक छत्तीसगढ़ की राजनैतिक हालात की सही जानकारी पहुंचा पा रहे है कार्यकर्ताओ की नाराजगी को लेकर संगठन में अनिर्णय की स्थिति और अक्षमता के साथ साथ राष्ट्रीय संगठन को सत्य बता न पाने की विवशता या जानबूझ कर अनजान बने रहने की कमजोरी भाजपा को कमजोर कर रही । कार्यकर्ताओ के प्रति उदासीन रवैया और सत्ता का प्रभाव कतिपय नेताओ पर इस कदर हावी हुआ कि कार्यकर्ता तो कार्यकर्ता कद्दावर नेताओ की कद्र करना ही भूल गए । जिसका खामियाजा आने वाले दिनों में झेलना पड़ सकता है ।
खैर हम तो वही कहते है जो दीखता है और दिख यही रहा है नंदकुमार साय जैसे बड़े पुराने धीर गम्भीर , जोगी को सत्ता से दूर करने में अपनी महती भूमिका निभाने वाले नेता अपनी उपेक्षा नही झेल पा रहे है तो यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है यदि राष्ट्रिय नेतृत्व व संगठन इस इस्तीफे को हल्के में लेता है तो आने वाले दिनों में चुनावी समर से पहले भाजपा को और भी ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा ।दलबदल और दिलबदल के चलते दौर में कार्यकर्ता शंका के दायरे में खड़ा है कि शायद कल एक नया दिल लगे, एक नया दलबदल हो और फिर कोई नया अनुमान सत्ता पर काबिज होता दिखे । सियासी खिलाड़ियों के खेल में आम कार्यकर्ता तमाशबीन बना बदलाव की इन कहानियों को नित बदलता देखता रहेगा बस इस आशा में कि शायद उनकी किस्मत भी कभी तो बदलेगी ।
और अंत में :-
हमें बदनाम करते फिर रहे हो अपनी महफ़िल में ,
अगर हम सच बताने पर उतर आए तो क्या होगा ।
#जय_हो 1 मई 2023 कवर्धा (छत्तीसगढ़)