आज का हिन्दू पंचांग
हिन्दू पंचांग
दिनांक – 20 जून 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – उत्तरायण
ऋतु – ग्रीष्म
मास – आषाढ़
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वितीया दोपहर 01:07 तक तत्पश्चात तृतीया
नक्षत्र – पुनर्वसु रात्रि 10:37 तक तत्पश्चात पुष्य
योग – ध्रुव रात्रि 01:48 तक तत्पश्चात व्याघात
राहु काल – शाम 04:04 से 05:46 तक
सूर्योदय – 05:55
सूर्यास्त – 07:28
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:31 से 05:13 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:20 से 01:02 तक
व्रत पर्व विवरण – भगवान श्री जगन्नाथ रथयात्रा
विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
वर्षा ऋतु : 21 जून से 23 अगस्त तक
वर्षा ऋतुचर्या
वर्षा ऋतु में वायु का विशेष प्रकोप तथा पित्त का संचय होता है । वर्षा ऋतु में वातावरण के प्रभाव के कारण स्वाभाविक ही जठाराग्नि मंद रहती है, जिसके कारण पाचनशक्ति कम हो जाने से अजीर्ण, बुखार, वायुदोष का प्रकोप, सर्दी, खाँसी, पेट के रोग, कब्जियत, अतिसार, प्रवाहिका, आमवात, संधिवात आदि रोग होने की संभावना रहती है ।
इन रोगों से बचने के लिए तथा पेट की पाचक अग्नि को सँभालने के लिए आयुर्वेद के अनुसार उपवास तथा लघु भोजन हितकर हैं । इसलिए हमारे आर्षदृष्टा ऋषि-मुनियों ने इस ऋतु में अधिक-से-अधिक उपवास का संकेत कर धर्म के द्वारा शरीर के स्वास्थ्य का ध्यान रखा है ।
इस ऋतु में जल की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें । जल द्वारा उत्पन्न होनेवाले उदर-विकार, अतिसार, प्रवाहिका एवं हैजा जैसी बीमारियों से बचने के लिए पानी को उबालें, आधा जल जाने पर उतार कर ठंडा होने दें, तत्पश्चात् हिलाये बिना ही ऊपर का पानी दूसरे बर्तन में भर दें एवं उसी पानी का सेवन करें । जल को उबालकर ठंडा करके पीना सर्वश्रेष्ठ उपाय है । पीने के लिए और स्नान के लिए गंदे पानी का प्रयोग बिल्कुल न करें क्योंकि गंदे पानी के सेवन से उदर व त्वचा-सम्बन्धी व्याधियाँ पैदा हो जाती हैं ।
500 ग्राम हरड़ और 50 ग्राम सेंधा नमक का मिश्रण बनाकर प्रतिदिन 5-6 ग्राम लेना चाहिए ।
पथ्य आहार : इस ऋतु में वात की वृद्धि होने के कारण उसे शांत करने के लिए मधुर, अम्ल व लवण रसयुक्त, हलके व शीघ्र पचनेवाले तथा वात का शमन करनेवाले पदार्थों एवं व्यंजनों से युक्त आहार लेना चाहिए । सब्जियों में मेथी, सहिजन, परवल, लौकी, सरगवा, बथुआ, पालक एवं सूरन हितकर हैं । सेवफल, मूँग, गरम दूध, लहसुन, अदरक, सोंठ, अजवायन, साठी के चावल, पुराना अनाज, गेहूँ, चावल, जौ, खट्टे एवं खारे पदार्थ, दलिया, शहद, प्याज, गाय का घी, तिल एवं सरसों का तेल, महुए का अरिष्ट, अनार, द्राक्ष का सेवन लाभदायी है ।
पूरी, पकोड़े तथा अन्य तले हुए एवं गरम तासीरवाले खाद्य पदार्थों का सेवन अत्यंत कम कर दें ।
अपथ्य आहार : गरिष्ठ भोजन, उड़द, अरहर आदि दालें, नदी, तालाब एवं कुएँ का बिना उबाला हुआ पानी, मैदे की चीजें, ठंडे पेय, आइसक्रीम, मिठाई, केला, मठ्ठा, अंकुरित अनाज, पत्तियोंवाली सब्जियाँ नहीं खाना चाहिए तथा देवशयनी एकादशी के बाद आम नहीं खाना चाहिए ।
पथ्य विहार : अंगमर्दन, उबटन, स्वच्छ हलके वस्त्र पहनना योग्य है ।
अपथ्य विहार : अति व्यायाम, स्त्रीसंग, दिन में सोना, रात्रि जागरण, बारिश में भीगना, नदी में तैरना, धूप में बैठना, खुले बदन घूमना त्याज्य है ।
इस ऋतु में वातावरण में नमी रहने के कारण शरीर की त्वचा ठीक से नहीं सूखती । अतः त्वचा स्वच्छ, सूखी व स्निग्ध बनी रहे इसका उपाय करें ताकि त्वचा के रोग पैदा न हों । इस ऋतु में घरों के आस-पास गंदा पानी इकट्ठा न होने दें, जिससे मच्छरों से बचाव हो सके ।
इस ऋतु में त्वचा के रोग, मलेरिया, टायफाइड व पेट के रोग अधिक होते हैं । अतः खाने-पीने की सभी वस्तुओं को मक्खियाँ एवं कीटाणुओं से बचायें व उन्हें साफ करके ही प्रयोग में लें । बाजारू दही व लस्सी का सेवन न करें ।
चातुर्मास में आँवले और तिल के मिश्रण को पानी में डालकर स्नान करने से दोष निवृत्त होते हैं ।
जानिये दीपक जलाने की सही विधि, पाईए शुभ लाभ
दीपक की बत्ती या लौ पूर्व दिशा की ओर रखने से आयुवृद्धि, पश्चिम की ओर दुःखवृद्धि, दक्षिण की ओर हानि और उत्तर की ओर रखने से धन-लाभ होता है । लौ दीपक के मध्य में रखना शुभ फलदायी है ।
इसी प्रकार दीपक के चारों ओर लौ प्रज्वलित करना भी शुभ है किंतु यदि लौ की संख्या सम ( २,४,६… ) हो तो ऊर्जा-वहन की क्रिया रुक जाती है । लौ की संख्या विषम (१,३,५… ) रखना लाभदायक है ।