ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग 

 हिन्दू पंचांग 

दिनांक – 11 जुलाई 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण (गुजरात, महाराष्ट्र में आषाढ़)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – नवमी शाम 06:04 तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र – अश्विनी शाम 07:04 तक तत्पश्चात भरणी
योग – सुकर्म सुबह 10:53 तक तत्पश्चात धृति
राहु काल – शाम 04:07 से 05:48 तक
सूर्योदय – 06:01
सूर्यास्त – 07:29
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:37 से 05:19 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:24 से 01:06 तक

व्रत पर्व विवरण –
विशेष – नवमी को लौकी खाना त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

आरती क्यों करते है ?

हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में संध्योपासना तथा किसी भी मांगलिक पूजन में आरती का एक विशेष स्थान है । शास्त्रों में आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ भी कहा गया है ।

पूज्य बापूजी वर्षों से न केवल आरती की महिमा, विधि, उसके वैज्ञानिक महत्त्व आदि के बारे में बताते रहे हैं बल्कि अपने सत्संग – समारोहों में सामूहिक आरती द्वारा उसके लाभों का प्रत्यक्ष अनुभव भी करवाते रहे हैं ।

पूज्य बापूजी के सत्संग – अमृत में आता है : “आरती एक प्रकार से वातावरण में शुद्धिकरण करने तथा अपने और दूसरे के आभामंडलों में सामंजस्य लाने की एक व्यवस्था है । हम आरती करते हैं तो उससे आभा, ऊर्जा मिलती है । हिन्दू धर्म के ऋषियों ने शुभ प्रसंगों पर एवं भगवान की, संतो की आरती करने की जो खोज की है वह हानिकारक जीवाणुओं को दूर रखती है, एक-दूसरे जे मनोभावों का समन्वय करती है और आध्यात्मिक उन्नति में बड़ा योगदान देती है ।

शुभ कर्म करने के पहले आरती होती है तो शुभ कर्म शीघ्रता से फल देता है । शुभ कर्म करने के बाद अगर आरती करते हैं तो शुभ कर्म में कोई कमी रह गयी हो तो वह पूर्ण हो जाती है । स्कन्द पुराण में आरती की महिमा का वर्णन है । भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :

मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्कृतं पूजनं मम |

सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने सुत ||

‘जो मन्त्रहीन एवं क्रियाहीन (आवश्यक विधि-विधानरहित) मेरा पूजन किया गया है, वह मेरी आरती कर देने पर सर्वथा परिपूर्ण हो जाता है |’ (स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड, मार्गशीर्ष माहात्म्य : ९:३७)

वर्षा ऋतु में उपयोगी कुछ बातें

(१) भोजन से पूर्व अदरक व नींबू के रस में कुछ बातें सेंधा नमक मिला के सेवन करने से वर्षाजन्य रोगों से सुरक्षा में बहुत मदद मिलती है ।

(२) १ गिलास गुनगुने पानी में १-२ नींबू का रस व २ चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट लें । यह प्रयोग सप्ताह में ३-४ दिन करें ।

(३) खाली पेट सुबह सूर्य की किरणें नाभि पर पड़ें इस प्रकार वज्रासन में बैठ जायें । श्वास बाहर निकालकर पेट को २५ बार अंदर-बाहर करते हुए “रं’ बीजमंत्र का जप करें । फिर श्वास ले लें । ऐसा ५ बार करें। इससे जठराग्नि तीव्र होगी ।

(४) भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी पियें ।

(५) सप्ताह में एक दिन उपवास रखें। इसमें निराहार रहें तो उत्तम अन्यथा दिन में एक बार अल्पाहार लें ।

(६) सूखा मेवा, मिठाई, तले हुए पदार्थ, नया अनाज, सेम, अरवी, मटर, राजमा, अरहर, मक्का, नदी का पानी आदि त्याज्य हैं ।

जामुन, पपीता, पुराने गेहूं व चावल, तिल या मूँगफली का तेल, सहजन, सूरन, परवल, पका पेठा, टिंडा, शलजम, कोमल मूली व बैंगन, भिंडी, मेथीदाना, धनिया, हींग, जीरा, लहसुन, सोंठ, अजवायन सेवन करने योग्य हैं ।

(७) श्रावण मास में पत्तेवाली हरी सब्जियाँ व दूध तथा भाद्रपद में दही व छाछ का सेवन न करें ।

(८) दिन में सोने से जठराग्नि मंद हो जाती हैव त्रिदोष प्रकुपित हो जाते हैं। अतः दिन में न सोयें। नदी में स्नान न करें। बारिश में न भीगें । रात को छत पर अथवा खुले आँगन में न सोयें ।

औषधीय प्रयोग

(१) १०० ग्राम हरड़ चूर्ण में १०-१५ ग्राम सेंधा नमक मिला के रख लें । रोज सुबह दो-ढाई ग्राम मिश्रण ताजे जल के साथ रसायन के रूप में लेना वर्षा ऋतु में हितकर है ।

(२) २-२ हरड़ रसायन गोली भोजन के बाद चूसकर सेवन करने वर्षाजन्य तकलीफों में लाभ है ।

(३) अदरक व तुलसी के रस में शहद मिलाकर लेने से व उपवास रखने से वर्षाजन्य सर्दी, खाँसी, जुकाम, बुखार आदि में आराम मिलता है । एंटीबायोटिक्स लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती ।

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