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बिना संकल्प के कोई कार्य न करें – पंडित मेहता

रायपुर। जीवन में बिना संकल्प के कोई काम नहीं करना चाहिए, एक न एक संकल्प जरुर लेना चाहिए जिससे कि जीवन का रुपांतरण हो सकें। बिना संकल्प के कथा श्रवण करना नहीं चाहिए, संकल्प के साथ ही कथा श्रवण करने से जीवन का रुपांतरण होना निश्चित है। भगवान ने भी जो कार्य किए है वह संकल्प लेकर ही पूरे किए है। भगवान जब संकल्प लेते है तो उसे पूरा करते ही है। श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान की लीलाओं का वर्णन करते हुए संकल्प सूत्र पर पंडित विजय शंकर मेहता ने ये बातें बताई।

उन्होंने कहा कि जीवन में किसी न किसी अनुचित बातों को छोडऩे का संकल्प जरुर लेना चाहिए, यह संकल्प मनुष्य को अपनी आदतों के अनुरुप लेना चाहिए लेकिन संकल्प जरुर लें। यदि भगवान की पूजा करते है तो पूजा करने का एक निश्चित समय का संकल्प लें, अपनी मर्जी और सुविधा के अनुसार भगवान की पूजा न किया करें। उन्होंने कहा कि यदि भगवान के भक्त है तो कभी किसी से अनुचित और व्यर्थ बातें न करें, किसी को ऐसे शब्द न कहें जिससे कि उसे पीड़ा हो।

जीवन में कभी भी अभिनय न करें, दूसरों की बातों को ध्यानपूर्वक सुने और उसके बाद अपनी बातों और विचारों को उनके सामने रखें। पंडित मेहता जी ने कहा कि भगवान के जन्म के साथ ही लीलाएं शुरु हो गई थी और लोगों को जीवन कैसे जीना है यह सीख भी उनके जन्म से ही सीखने को मिलती है। माँ से बिछडऩा, माँ का दुख, पिता का कठौर निर्णय यह भगवान कृष्ण के देवकी और वसुदेव जी के चरित्र से सिखने को मिलता है। जब माँ पर दुख आ सकते है तो दूसरे लोगों पर दुख क्यों नहीं आ सकते है, दुख सभी के जीवन में आते है लेकिन उन दुखों से कैसे लडऩा चाहिए यह हमें इन लीलाओं से सीखने को मिलता है।

पंडित मेहता ने कहा कि भगवान कृष्ण और उनकी लीलाओं को समझने के लिए कई लोग व्यावहारिक दृष्टि और कुछ लोग अध्यात्मिक दृष्टि से देखते है। व्यावहारिक दृष्टि से जब उनकी लीलाओं पर सवाल पूछते है तो उसमें उसी व्यवहार के अनुरुप उन्हें जवाब मिलता है लेकिन अध्यात्मिक दृष्टि से उनकी लीलाओं का अध्ययन करें और देखें तो वह जीवन जीने की कला है। उनकी कोई भी लीला व्यर्थ नहीं है। मनुष्य के शरीर का अस्तित्व उसी समय तक है जब तक उसमें आत्मा है, यदि शरीर से आत्मा चली जाए तो वह शरीर किसी काम का नहीं रहता और कोई उसे रखने के लिए भी तैयार नहीं होता और न ही उसका कोई मोल है। शरीर में आत्मा तक पहुंचने के लिए साधना और योग करना पड़ता है और आत्मा से ही परमात्मा का मार्ग प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं संदेश देती है कि हमें प्रकृति पंचतत्व से प्रेम करना चाहिए। आकाश से वर्षा इंद्र नहीं कराते, वर्षा प्रकृति से होती है इंद्र उसकी व्यवस्था करते है लेकिन इंद्र ने अपनी पूजा शुरु करवा दी जो भगवान को कतई पसंद नहीं है। उन्होंने कहा कि इंद्र को यह गुमान होने लग गया था कि धरती पर वर्षा वे ही कराते है चाहे वह अतिवृष्टि हो या वर्षा न हो और इसीलिए लोग उन्हें पूजा करके पसंद करते है। वास्तविकता यह है कि हम पर्यावरण व प्रकृति का ही संरक्षण नहीं करते, पूजा प्रकृति और पर्यावरण की होनी चाहिए जिससे कि वर्षा होती है और जल प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का बृज से मथुरा जाना इस बात का संकेत देता है कि जीवन परिवर्तन का नाम है, एक चौराहे पर आकर परिवार के सदस्य भी अपना-अपना लक्ष्य हासिल कर लें, अलग-अलग दिशाओं में चले जाते है। बृज से मथुरा जाने पर यशोदा को कितनी पीड़ा हुई यह संतान का बिछोह हर किसी के लिए दुखदायी है।

मंगलवार की सुबह शहर के योग संस्थाओं एवं साधकों के लिए स्वयंप्रभा (शरीर से आत्मा की यात्रा) विषय पर व्याख्यान हुआ जिसमें लव फॉर ह्मयुमैनिटी नींव संस्था के योग साधक शिवनारायण मुंदड़ा ने कैसे आत्मा तक पहुंचना चाहिए, क्योंकि आत्मा तक पहुंचने का रास्ता ही बहुत कठिन है और आत्मा से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है यही जीवन का सत्य है। पंडित विजय शंकर मेहता जी ने कहा कि जीवन में रुपांतरण का होना अति आवश्यक है इस पर उन्होंने स्वयं के जीवन में हुए रुपांतरण के माध्यम से बताया कि पहले मैं बैंक कर्मी था, बाद में अखबार में संपादक हुआ लेकिन धीरे-धीरे मैंने संकल्प लिया और अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए उसका रुपांतरण किया। आज मैं कथा वाचक हूं, मेरे जीवन में यह रुपांतरण मेरे संकल्प के साथ हुआ। इस स्वयंप्रभा कार्यक्रम में 500 से अधिक योग साधक शामिल है।

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