विपत्ति में धैर्य नहीं खोना चाहिए, जो धैर्यवान है वही सुख पाता है : ओमानंद महाराज
रायपुर। राजधानी के संतोषी नगर में विगत 3 दिनों से रामकथा का आयोजन हो रहा है। कथाकार ओमानंद महाराज ने कथा के तीसरे दिन, गुरुवार को भगवान राम के अवतरण की कथा सुनाई। सर्वप्रथम प्रयागराज से कथावाचन के लिए पहुंचे ओमानंद महाराज का अभिनन्दन किया गया, व्यासगद्दी की पूजा अर्चना की गई। इसके बाद ओमानंद महाराज ने रामकथा का शुभारंभ किया।
कथा शुरू करते हुए उन्होंने कहा कि हमें प्रयत्न करने चाहिए की किसी भी प्रकार से हम भगवान के हो जाएं। अपना कल्याण तो सभी चाहते हैं, लेकिन जगकल्याण, समाज का कल्याण और पूरे विश्व का कल्याण करना परम धर्म है। कथा प्रारंभ करते हुए उन्होंने रामायण के बालकाण्ड का वर्णन शुरू किया। बुधवार को राजा दशरथ की उत्पत्ति का वर्णन किया गया था। आज उन्होंने आगे की कथा सुनाई। महाराज ने बताया कि दशरथ की कोई संतान नहीं थी। एक बार रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से कहा कि आप तो स्वर्ग जाते रहते हैं, वहां पारिजात का फूल मिलता है। कहते हैं कि उस फूल के रखने से कोई भी संकट हो, समाप्त हो जाता है। रानी कैकेयी से राजा दशरथ से उस फूल को लाना के आग्रह किया। राजा दशरथ स्वर्ग पहुंचे और उन्होंने पारिजात का फूल तोड़कर अपने पास रख लिया। देवताओं के राजा इंद्र को जब पता चला तो उन्होंने राजा दशरथ को आदरपूर्वक अपने सिंहासन पर बैठाया और उनसे वार्तालाप करने लगे। बातोंबातों में राजा दशरथ पारिजात का फूल सिंहासन में रखकर भूल गया। जब अयोध्या वापस पहुंचे तो कैकेयी ने फूल के बारे में पूछा, तो राजा दशरथ ने कहा कि वे तो स्वर्ग में ही भूल आए। जब वे इंद्र के दरबार पहुंचे तो उन्होंने देखा कि इंद्र के सिंहासन को वैदिक मंत्रोचार के साथ धोया जा रहा है। उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने एक सेवक से पूछा कि यह क्या हो रहा है, तो उसने कहा कि धरती से कोई राजा दशरथ इस सिंहासन पर बैठ गए थे। उनकी कोई संतान नहीं है, इसलिए आसन अपवित्र हो गया। यह सुनकर राजन बेहद दुःखी हुए। ऐसे ही एक बार जब राजा दशरथ अवध में सुबह सुबह टालने निकले तो उन्हें देखकर एक महिला ने कहा कि सुबह-सुबह किस निःसंतान का मुँह देखा लिया। राजा दशरथ घर पहुंचकर रोने लगे। रानियों जब पूछा तो उन्होंने पूरी बात बताई, और वे भी रोने लगीं।
ओमानंद महाराज ने कहा कि संसार अपूर्ण है और परमात्मा पूर्ण है। विपत्ति आये तो भगवन के पास जाएं, अथवा किसी विद्वान के पास जाएं, किसी और के पास नहीं। विपत्ति में धैर्य नहीं खोना चाहिए, जो धैर्यवान है वही सुख पाता है। अपनी समस्या लेकर दशरथ गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचे। गुरु वशिष्ठ ने कहा कि राजन आप धैर्य रखें, आपको पुत्र योग है, आप पुत्रयेष्ठ यज्ञ करें। लेकिन विद्वान् होते हुए भी गुरु वशिष्ठ ने पुत्रयेष्ठ यज्ञ के लिए श्रृंगी ऋषि को आमंत्रित किया, क्योंकि वे इस यज्ञ के जानकर थे। यज्ञ से अग्निदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने एक खीर का कटोरा प्रसाद के रूप में श्रृंगी ऋषि को दिया, जो श्रृंगी ऋषि ने गुरु वशिष्ठ को और गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ को दिया, जिन्होंने अपनी रानियों कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी को दिया।
ओमानंद महाराज ने कहा कि जितने बार भगवान विष्णु ने अवतार लिया है उनमे केवल दो अवतार पूर्णावतार हैं। एक राम अवतार और दूसरा कृष्ण अवतार। अवतरण के विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अवतरण शब्द अवतरणी से बने है, जिसके अर्थ है सीढ़ी। सीढ़ी से आप ऊपर या नीचे जा सकते हैं। जी ज्ञानी है, महात्मा हैं वे अवतरणी का उपयोग कर भगवान से मिल सकते हैं, लेकिन भक्त इस सीढ़ी पर चढ़ने से डरता है, तो भक्त से मिलने स्वयं भगवान नीचे आ जाते हैं। इसे अवतरण कहते हैं। उन्होंने कहा कि भगवान के प्राकट्य में मुहूर्त स्वयं बन जाता है। भगवान राम का जब अवतरण हुआ तो नवमी तिथि स्वयं शुभ हो गई।