ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग
दिनांक – 08 सितम्बर 2023
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – भाद्रपद (गुजरात महाराष्ट्र में श्रावण)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – नवमी शाम 05:30 तक तत्पश्चात दशमी
नक्षत्र – मृगशिरा दोपहर 12:19 तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग – सिद्धि रात्रि 10:07 तक तत्पश्चात व्यतिपात
राहु काल – सुबह 11:04 से दोपहर 12:37 तक
सूर्योदय – 06:24
सूर्यास्त – 06:51
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:52 से 05:38 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:14 से 01:01 तक

व्रत पर्व विवरण – नंद महोत्सव, गोगा नवमी
विशेष – नवमी को लौकी खाना त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

व्यतिपात योग

समय अवधि : 08 सितम्बर रात्रि 10:07 से 09 सितम्बर रात्रि 10:36 तक

व्यतिपात योग में किया हुआ जप, तप, मौन, दान व ध्यान का फल १ लाख गुना होता है । – वराह पुराण

 आचमन तीन बार क्यों ?

प्राय: प्रत्येक धर्मानुष्ठान के आरम्भ में और विशेषरूप से संध्योपासना में ३ बार आचमन करने का शास्त्रीय विधान है । धर्मग्रंथों में कहा गया है कि ३ बार जल का आचमन करने से तीनों वेद अर्थात ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं । मनु महाराज ने भी कहा है : त्रिराचमेद्प: पूर्वम । (मनुस्मृति :२.६०)

अर्थात सबसे पहले ३ बार जल से आचमन करना चाहिए । इससे जहाँ कायिक, मानसिक एवं वाचिक–त्रिविध पापों की निवृत्ति होती है वहीँ कंठशोष ( कंठ की शुष्कता) दूर होने और कफ-निवृत्ति होने से श्वास-प्रश्वास क्रिया में मंत्रादि के शुद्ध उच्चारण में भी मदद मिलती है । प्राणायाम करते समय प्राणनिरोध से स्वभावतः शरीर में ऊष्मा बढ़ जाती है, कभी-कभी तो ऋतू के तारतम्य से तालू सूख जाने से हिचकी तक आने लग जाती है । आचमन करते ही यह सब ठीक हो जाता है ।

बोधायन सूत्र के अनुसार आचमन-विधि :

(दायें) हाथ की हथेली को गाय के कान की तरह आकृति प्रदान कर उससे ३ बार जल पीना चाहिए ।

शास्त्र-रीति के अनुसार आचमन में चुल्लू जितना जल नहीं पिया जाता बल्कि उतने ही प्रमाण में जल ग्रहण करने की विधि है जितना कि कंठ व तालू को स्पर्श करता हुआ हृदयचक्र की सीमा तक ही समाप्त हो जाय ।

सत्संग-अमृत में आता है : संध्या में आचमन किया जाता है । इस आचमन से कफ-संबंधी दोषों का शमन होता है, नाड़ियों के शोधन में व ध्यान-भजन में कुछ मदद मिलती है ।

ध्यान-भजन में बैठे तो पहले तीन आचमन कर लेने चाहिए, नहीं तो सिर में वायु चढ़ जाती है, ध्यान नहीं लगता, आलस्य आता है, मनोराज चलता है, कल्पना चलती है । आचमन से प्राणवायु का संतुलन हो जाता है ।

आचमन से मिले शान्ति व पुण्याई

‘ॐ केशवाय नम: । ॐ नारायणाय नम: । ॐ माधवाय नम: ।’ कहकर जल के ३ आचमन लेते हैं तो जल में जो यह भगवदभाव, आदरभाव है इससे शांति, पुण्याई होती है ।

इससे भी हो जाती है शुद्धि

जप करने के लिए आसन पर बैठकर सबसे पहले शुद्धि की भावना के साथ हाथ धो के पानी के ३ आचमन ले लो । जप करते हुए छींक, जम्हाई या खाँसी आ जाय, अपानवायु छूटे तो यह अशुद्धि है । वह माला नियत संख्या में नहीं गिननी चाहिए । आचमन करके शुद्ध होने के बाद वह माला फिर से करनी चाहिए । आचमन के बदले ‘ॐ’ सम्पुट के साथ गुरुमंत्र ७ बार दुहरा दिया जाय तो भी शुद्धि हो जायेगी । जैसे, मन्त्र है ‘नम: शिवाय’ तो ७ बार ‘ॐ नम:शिवाय ॐ’ दुहरा देने से पड़ा हुआ विघ्न निवृत्त हो जायेगा ।

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