ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

 हिन्दू पंचांग
दिनांक – 12 अक्टूबर 2023
दिन – गुरुवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – त्रयोदशी रात्रि 07:53 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
नक्षत्र – मघा सुबह 08:45 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
योग – शुक्ल सुबह 09:30 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहु काल – दोपहर 01:54 से 03:22 तक
सूर्योदय – 06:35
सूर्यास्त – 06:17
दिशा शूल – दक्षिण दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:57 से 05:46 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:02 से 12:51 तक

व्रत पर्व विवरण – त्रयोदशी का श्राद्ध, मासिक शिवरात्रि
विशेष – त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

मासिक शिवरात्रि : 12 अक्टूबर 2023

जिस तिथि का जो स्वामी हो उस तिथि में उसकी आराधना-उपासना करना अतिशय उत्तम होता है । चतुर्दशी के स्वामी भगवान शिव है । अतः उनकी रात्रि में किया जानेवाला यह व्रत ‘शिवरात्रि’ कहलाता है । प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात्रि में गुरु से प्राप्त हुए मंत्र का जप करें । गुरुप्रदत्त मंत्र न हो तो पंचाक्षर (नमः शिवाय) मंत्र के जप से भगवान शिव को संतुष्ट करें ।

कर्ज मुक्ति हेतु –

हर मासिक शिवरात्रि को सूर्यास्त के समय घर में बैठकर अपने गुरुदेव का स्मरण करके शिवजी का स्मरण करते-करते ये 17 मंत्र बोलें ! जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो वो शिवजी के मंदिर में जाकर दिया जलाकर ये 17 मंत्र बोलें ! इससे कर्जे से मुक्ति मिलेगी…

1) ॐ शिवाय नमः
2) ॐ सर्वात्मने नमः
3) ॐ त्रिनेत्राय नमः
4) ॐ हराय नमः
5) ॐ इन्द्रमुखाय नमः
6) ॐ श्रीकंठाय नमः
7) ॐ सद्योजाताय नमः
8) ॐ वामदेवाय नमः
9) ॐ अघोरहृदयाय नम:
10) ॐ तत्पुरुषाय नमः
11) ॐ ईशानाय नमः
12) ॐ अनंतधर्माय नमः
13) ॐ ज्ञानभूताय नमः
14) ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नमः
15) ॐ प्रधानाय नमः
16) ॐ व्योमात्मने नमः
17) ॐ व्यूक्तकेशात्मरूपाय नम:

श्राद्ध में प्रशस्त ब्राह्मण

श्राद्ध में जिस किसीको भोजन कराने की विधि नहीं है । शील, शौच एवं प्रज्ञा से युक्त सदाचारी तथा सन्ध्या- वन्दन एवं गायत्री मन्त्र का जप करनेवाले श्रोत्रिय ब्राह्मण को श्राद्ध में निमन्त्रण देना चाहिये । तप, धर्म, दया, दान, सत्य, ज्ञान, वेदज्ञान, कारुण्य, विद्या, विनय तथा अस्तेय (अचौर्य) आदि गुणों से युक्त ब्राह्मण इसका अधिकारी है ।

प्रशस्त आसन

रेशमी, नेपाली कम्बल, ऊन, काष्ठ, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं । काष्ठासनों में भी शमी काश्मरी, शल्ल, कदम्ब, जामुन, आम, मौलसिरी एवं वरुणके आसन श्रेष्ठ हैं । इनमें भी लोहे की कील नहीं होनी चाहिये ।

श्राद्ध में भोजन के समय मौन आवश्यक

श्राद्ध में भोजन के समय मौन रहना चाहिये । माँगने या प्रतिषेध करने का संकेत हाथ से ही करना चाहिये । भोजन करते समय ब्राह्मण से अन्न कैसा है, यह नहीं पूछना चाहिये तथा भोजन कर्ता को भी श्राद्धान्न की प्रशंसा या निन्दा नहीं करनी चाहिये ।

पिण्ड की अष्टांगता

अन्न, तिल, जल, दूध, घी, मधु, धूप और दीप-ये पिण्डके आठ अंग हैं ।

श्राद्ध में पात्र

सोने, चाँदी, काँसे और ताँबेके पात्र पूर्व पूर्व उत्तमोत्तम हैं । इनके अभाव में पलाश आदि अन्य वृक्ष के पत्तल से काम लेना चाहिये, पर केले के पत्ते में श्राद्ध भोजन सर्वथा निषिद्ध है । साथ ही श्राद्ध में पितरों के भोजन के लिये मिट्टी-के पात्रका भी निषेध है ।

श्राद्ध में पाद-प्रक्षालन-विधि

श्राद्ध में ब्राह्मणों को बैठाकर पैर धोना चाहिये । खड़े होकर पैर धोने पर पितर निराश होकर चले जाते हैं । पत्नी को दाहिनी ओर खड़ा करना चाहिये । उसे बाँयें रहकर जल नहीं गिराना चाहिये । अन्यथा वह श्राद्ध आसुरी हो जाता है और पितरों को प्राप्त नहीं होता ।

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