आज का हिन्दू पंचांग
हिन्दू पंचांग
दिनांक – 18 अक्टूबर 2023
दिन – बुधवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – चतुर्थी रात्रि 01:12 तक तत्पश्चात पंचमी
नक्षत्र – अनुराधा रात्रि 09:01 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा
⛅योग – आयुष्मान सुबह 08:19 तक तत्पश्चात सौभाग्य
राहु काल – दोपहर 12:25 से 01:51 तक
सूर्योदय – 06:37
सूर्यास्त – 06:12
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:58 से 05:48 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:00 से 12:50 तक
व्रत पर्व विवरण – तुला संक्रांति ( पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर 12-25 तक)
विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
तुला संक्रांति – 18 अक्टूबर 2023
पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर 12-25 तक
इसमें किया गया जप, ध्यान, दान व पुण्यकर्म अक्षय होता है ।
नवरात्रि विशेष
नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप कुष्मांडा की पूजा की जाती है । इस दिन माता को मालपुआ का नैवेद्य अर्पण करना चाहिए और उसे जरूरतमंद को दान कर देना चाहिए । ऐसा करने से मनोबल बढ़ता है ।
तिलकः बुद्धिबल एवं सत्त्वबलवर्धक
ललाट पर दोनों भौहों के बीच विचारशक्ति का केन्द्र है । योगी इसे आज्ञाचक्र कहते हैं । इसे शिवनेत्र अर्थात् कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है ।
यहाँ किया गया चन्दन अथवा सिन्दूर आदि का तिलक विचारशक्ति एवं आज्ञाशक्ति को विकसित करता है । इसलिए हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करते समय ललाट पर तिलक किया जाता है ।
चन्दन का तिलक लगाकर सत्संग करते हुए लाखों-करोड़ों लोगों ने देखा है । वे लोगों को भी तिलक करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
भाव प्रधान, श्रद्धाप्रधान केन्द्रों में जीने वाली महिलाओं की समझ बढ़ाने के उद्देश्य से ऋषियों ने तिलक की परम्परा शुरू की । अधिकांश स्त्रियों का मन स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर केन्द्र में ही रहता है । इन केन्द्रों में भय, भाव और कल्पना की अधिकता होती है। वे भावना एवं कल्पनाओं में बह न जायें, उनका शिवनेत्र, विचारशक्ति का केन्द्र विकसित होता हो इस उद्देश्य से ऋषियों ने स्त्रियों के लिए बिन्दी लगाने का विधान रखा है ।
स्वास्थ्य पर विचारों का प्रभावः
विचारों की उत्पत्ति में हमारी दिनचर्या, वातावरण, सामाजिक स्थिति आदि विभिन्न तथ्यों का असर पड़ता है । अतः दैनिक जीवन में विचारों का बड़ा ही महत्त्व होता है । कई बार हम केवल अपने दुर्बल विचारों के कारण रोगग्रस्त हो जाते हैं और कई बार साधारण से रोग की स्थिति, भयंकर रोग की कल्पना से अधिक बिगड़ जाती है और कई बार डॉक्टर भी डरा देते हैं । यदि हमारे विचार अच्छे हैं, दृढ़ हैं तो हम स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करेंगे और साधारण रोग होने पर योग्य विचारों से ही हम उससे मुक्ति पाने में समर्थ हो जायेंगे ।
सात्त्विक विचारों की उत्पत्ति में सात्त्विक आहार, सत्शास्त्रों का पठन, महात्माओं के जीवन-चरित्रों का अध्ययन, ईश्वरचिंतन, भगवन्नाम-स्मरण, योगासन और ब्रह्मचर्य पालन बड़ी सहायता करते हैं ।