आज का हिन्दू पंचांग
हिन्दू पंचांग
दिनांक – 11 अक्टूबर 2023
दिन – बुधवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – द्वादशी शाम 05:37 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
नक्षत्र – मघा सुबह 08:45 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
योग – शुभ सुबह 08:42 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहु काल – दोपहर 12:26 से 01:54 तक
सूर्योदय – 06:35
सूर्यास्त – 06:18
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:56 से 05:46 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:02 से 12:51 तक
व्रत पर्व विवरण – द्वादशी का श्राद्ध, सन्यासी-यति-वैष्णवों का श्राद्ध, प्रदोष व्रत
विशेष – द्वादशी को पूतिका (पोई) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
श्राद्ध के अधिकारी कौन है ?
पिता का श्राद्ध करने का अधिकार मुख्यरूप से पुत्र को ही है । कई पुत्र होने पर अन्त्येष्टि से लेकर एकादशाह तथा द्वादशाह तक की सभी क्रियाएँ ज्येष्ठ पुत्र को करनी चाहिये । विशेष परिस्थिति में बड़े भाई की आज्ञा से छोटा भाई भी कर सकता है । यदि सभी भाइयों का संयुक्त परिवार हो तो वार्षिक श्राद्ध भी ज्येष्ठ पुत्र के द्वारा एक ही जगह सम्पन्न हो सकता है। यदि पुत्र अलग-अलग हों तो उन्हें वार्षिक आदि श्राद्ध अलग-अलग करना चाहिये ।”
विष्णु पुराण के वचन के अनुसार पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, भाई, भतीजा अथवा अपनी सपिण्ड संतति में उत्पन्न हुआ पुरुष ही श्राद्धादि क्रिया करने का अधिकारी होता है ।
यदि इन सबका अभाव हो तो समानोदक की संतति अथवा मातृपक्ष के सपिण्ड अथवा समानोदक को इसका अधिकार है । मातृकुल और पितृकुल दोनोंके नष्ट हो जाने पर स्त्री ही इस क्रिया को करे अथवा (यदि स्त्री भी न हो तो) साथियों में से ही कोई करे या बान्धवहीन मृतक के धन से राजा ही उसके सम्पूर्ण प्रेतकर्म कराये ।
मार्कण्डेय पुराण ने बताया है कि चूँकि राजा सभी वर्णों का बन्धु होता है । अतः सभी श्राद्धाधिकारी जनों के अभाव होने पर राजा उस मृत व्यक्ति के धन से उसके जाति के बान्धवों द्वारा भली भाँति दाह आदि सभी और्ध्वदैहिक क्रिया कराये ।
श्राद्ध में ग्राह्य पुष्प
श्राद्ध में मुख्यरूप से सफेद पुष्प ग्राह्य हैं । सफेद में सुगन्धित पुष्प की विशेष महिमा है । मालती, जूही, चम्पा – प्रायः सभी सुगन्धित श्वेत पुष्प, कमल तथा तुलसी और भृंगराज आदि पुष्प प्रशस्त हैं ।
स्मृतिसार के अनुसार अगस्त्यपुष्प, भृंगराज, तुलसी, शतपत्रिका, चम्पा, तिलपुष्प – ये छः पितरों को प्रिय होते हैं ।
श्राद्धयोग्य स्थान
गया, पुष्कर, प्रयाग, कुशावर्त (हरिद्वार) आदि तीर्थों में श्राद्ध की विशेष महिमा है । सामान्यतः घर में गोशाला में, देवालय, गंगा, यमुना, नर्मदा आदि पवित्र नदियों के तटपर श्राद्ध करने का अत्यधिक महत्त्व है । श्राद्ध-स्थान को गोबर-मिट्टी से लेपन कर शुद्ध कर लेना चाहिये । दक्षिण दिशा की ओर ढालवाली श्राद्ध भूमि प्रशस्त मानी गयी है ।
श्राद्ध में प्रशस्त अन्न फलादि
ब्रह्माजी ने पशुओं की सृष्टि करते समय सबसे पहले गौओं;को रचा है; अतः श्राद्धमें उन्हींका दूध, दही और घी काम में लेना चाहिये । जौ, धान, तिल, गेहूँ, मूँग, साँवाँ, सरसों का तेल, तिन्नी का चावल, कँगनी आदि से पितरों को तृप्त करना चाहिये ।
आम, अमड़ा, बेल, अनार, बिजौरा, पुराना आँवला, खीर, नारियल, फालसा, नारंगी, खजूर, अंगूर, नीलकैथ, परवल, चिरौंजी, बेर आदि श्राद्धमें यत्नपूर्वक लेना चाहिये ।”
जौ, कँगनी, मूँग, गेहूँ, धान, तिल, मटर, कचनार और सरसों-इनका श्राद्ध में होना अच्छा है ।
नींद किस-किसको नहीं आती ?
‘महाभारत’ में उद्योग पर्व के अन्तर्गत प्रजागर पर्व में आता है कि धृतराष्ट्र को रात्रि में नींद नहीं आती थी । विदुर उन्हें समझाते हैं कि नींद किस-किसको नहीं आती है :
अभियुक्तं बलवता दुर्बलं हीनसाधनम् ।
हृतस्वं कामिनं चोरमाविशन्ति प्रजागराः ॥
‘राजन् ! जिसका बलवान के साथ विरोध हो गया है, जो दुर्बल है, जो साधनहीन है, जिसका सब कुछ हर लिया गया है, जो कामी है अथवा जो चोर है उसको रात में नींद नहीं आती ।’ (उद्योग पर्व : ३३.१३)