आज का हिन्दू पंचांग
हिन्दू पंचांग
दिनांक – 13 अक्टूबर 2023
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – चतुर्दशी रात्रि 09:50 तक तत्पश्चात अमावस्या
नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी दोपहर 02:11 तक तत्पश्चात हस्त
योग – ब्रह्म सुबह 10:06 तक तत्पश्चात इन्द्र
राहु काल – सुबह 10:58 से दोपहर 12:26 तक
सूर्योदय – 06:35
सूर्यास्त – 06:16
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:57 से 05:46 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:01 से 12:51 तक
व्रत पर्व विवरण – चतुर्दशी का श्राद्ध, आग-दुर्घटना-अस्त्र-शस्त्र-अपमुत्यु से मृतक का श्राद्ध
विशेष – चतुर्दशी के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
श्राद्ध विशेष
चतुर्दशी का श्राद्ध जवान मृतकों के लिए किया जाता है तथा जो हथियारों द्वारा मारे गये हों उनके लिए भी चतुर्दशी को श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध में निषिद्ध अन्न
जिस में बाल और कीड़े पड़ गये हों, जिसे कुत्तों ने देख लिया हो, जो वासी एवं दुर्गन्धित हो – ऐसी वस्तु का श्राद्ध में उपयोग न करे । मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कुलथी, कैथ, महुआ, अलसी, चना- ये सब वस्तुएँ श्राद्ध में वर्जित हैं ।
श्राद्ध से जगत की तृप्ति
मनुष्य को पितृगण की सन्तुष्टि तथा अपने कल्याण के लिये श्राद्ध अवश्य करना चाहिये । श्राद्धकर्ता केवल अपने पितरों को ही तृप्त नहीं करता, बल्कि वह सम्पूर्ण जगत को सन्तुष्ट करता है ।जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह साक्षात् ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यन्त समस्त प्राणियों को तृप्त करता है ।
विष्णुपुराण में कहा है – श्रद्धायुक्त होकर श्राद्धकर्म करने से केवल पितृगण ही तृप्त नहीं होते बल्कि ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र, दोनों अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, आठों वसु, वायु, विश्वेदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य, पशु, सरीसृप और ऋषिगण आदि तथा अन्य समस्त भूतप्राणी तृप्त होते हैं ।
धन-लाभ के साथ पायें पुण्यलाभ व आरोग्य
व्यवसाय में लाभ नहीं हो रहा हो तो शुक्रवार के दिन शाम की संध्या के समय तुलसी के पौधे के पास देशी गाय के घी या तिल के तेल का दीपक जलायें । परब्रह्म-प्रकाशस्वरूपा दीपज्योति को नमस्कार करें और निम्न मंत्रों का उच्चारण करें :
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखसम्पदाम् । शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥
इससे धन-लाभ होता है, साथ ही पापों का नाश होता है । शत्रु का विनाश होकर शत्रुओं की वृद्धि रुकती है तथा आयु-आरोग्य की प्राप्ति होती है ।
पित्त -शांतिकर एवं भूखवर्धक प्रयोग
सोंठ-मिश्री और काली मिर्च, काला नमक मिलाय ।
नींबू – रस में चूसिये, पित्त शांत हो जाय ।।
सोंठ, मिश्री या शक्कर, काली मिर्च तथा काले नमक को सम्भाग लेकर पीस के रखें । इस मिश्रण को आधे काटे हुए नींबू पर बुरककर नींबू का रस एवं यह मिश्रण चूसने से पित्त शांत हो जाता है । इस प्रयोग से पाचनक्रिया सुधरती है । यकृत की क्रिया को बल प्राप्त होता है । अम्लपित्त की समस्या दूर होती है ।भूख खूब खुलकर लगने लगती है अपच नहीं रहता । मिचली तथा बार-बार पानी-पीने पर भी प्यास न बुझने की समस्या दूर हो जाती है ।