ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग 
दिनांक – 22 जुलाई 2023
दि – शनिवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – अधिक श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – चतुर्थी सुबह 09:26 तक तत्पश्चात पंचमी
नक्षत्र – पूर्वाफाल्गुनी शाम 04:58 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी
योग – वरियान दोपहर 01:25 तक तत्पश्चात परिघ
राहु काल – सुबह 09:26 से 11:06 तक
सूर्योदय – 06:06
सूर्यास्त – 07:26
दिशा शूल – पूर्व दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:41 से 05:23 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:25 से 01:08 तक

व्रत पर्व विवरण –
विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है । पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

शरीर-स्वास्थ्य (ओज)

‘शरीर की ऊर्जा व बल बढ़ानेवाले, प्राणों को धारण करनेवाले पदार्थ को ओज कहते हैं।” ओज यह रस आदि सप्तधातुओं का उत्कृष्ट सार भाग है । जिस प्रकार मधुमक्खियों द्वारा फूलों से एकत्रित किये रस से शहद का निर्माण होता है, उसी प्रकार रस रक्तादि धातुओं के निर्माण के समय उत्पन्न सारभूत भाग से ओज का निर्माण होता है ।

दूध में अदृश्य रूप में घी निहित रहता है, वैसे ही संपूर्ण शरीर में ओज व्याप्त रहता है । इसका मुख्य स्थान हृदय है । ओज के ही कारण मनुष्य सभी प्रकार के कार्य करने में समर्थ होता है । ओज कारण है व बल उसका कार्य है ।

जितना ओज अधिक उतना वर्ण और स्वर उत्तम रहता है तथा मन, बुद्धि व इन्द्रियाँ अपना कार्य करने में उत्तम रूप से प्रवृत्त होती हैं । ओजस्वी व्यक्ति धीर, वीर, बुद्धिमान, बलवान और हर क्षेत्र में यशस्वी होता है। व्याधि प्रतिकार की क्षमता ओज पर निर्भर होती है ।

ओज के गुण ओज सौम्य, स्निग्ध, शीत, मृदु, प्रसन्न आदि १० गुणों से युक्त है । मद्य के उष्ण, तीक्ष्ण, अम्लादि १० गुण ओज के १० गुणों से पूर्णतः विरुद्ध होने के कारण मद्यपान से ओज का शीघ्र नाश हो जाता है। गाय के घी के सभी गुण ओज के गुणों के समान हैं जिससे ओज की शीघ्र वृद्धि होती है ।

ओजक्षय के हेतु : अति मैथुन, अंति व्यायाम, अत्यधिक उपवास, अल्प व रुक्ष भोजन, भय, शोक, चिंता, जागरण, तीव्र वायु और धूप का सेवन, कफ, रक्त, शुक्र अथवा मल का अधिक मात्रा में बाहर निकल जाना, वृद्धावस्था, मद्यपान व भूतोपघात (रोगजनक जीवाणुओं का संक्रमण) से ओजक्षय होता है ।

ओजक्षय के लक्षण : ओजक्षय के कारण मनुष्य भयभीत व चिंतित रहता है । उसकी इन्द्रियों की कार्यक्षमता घट जाती है तथा वर्ण, स्वर बदल जाते हैं। वह निस्तेज, बलहीन व कृश हो जाता है । ओज का अधिक क्षय होने पर प्रलाप, मूर्च्छा व मृत्यु तक हो जाती है ।

ओजवर्धक पदार्थ

१. ओजवृद्धि का मुख्य कारण मन की प्रसन्नता व निर्द्वन्द्रता (समता) है । इसकी प्राप्ति तत्त्वज्ञान से होती है ।

२. मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य, हितकर व मनोनुकूल आहार तथा सुखशीलता ओजवर्धक है ।

३. आँवला, अश्वगंधा, यष्टिमधु जीवन्ती (डोडी), गाय का दूध व घी, अंगूर, तुलसी के बीज, सुवर्ण आदि रसायन द्रव्य उत्कृष्ट ओजवर्धक हैं ।

४. ब्रह्मचर्य परम ओजवर्धक है ।

शनिवार के दिन विशेष प्रयोग 

शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है । (ब्रह्म पुराण)

हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है । (पद्म पुराण)

आर्थिक कष्ट निवारण हेतु

एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है ।

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