ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग 

हिन्दू पंचांग
दिनांक – 22 अगस्त 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – षष्ठी 23 अगस्त प्रातः 03:05 तक तत्पश्चात सप्तमी
नक्षत्र – चित्रा सुबह 06:31 तक तत्पश्चात स्वाती
योग – शुक्ल रात्रि 10:18 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहु काल – शाम 03:55 से 05:31 तक
सूर्योदय – 06:18
सूर्यास्त – 07:07
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:49 से 05:34 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:20 से 01:05 तक

व्रत पर्व विवरण – कल्कि जयंती, मंगलागौरी पूजन
विशेष – षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है ।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

निरोगी व तेजस्वी आँखों के लिए

आँख हमारे शरीर के सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व कोमल अंगों में से एक है । वर्तमान समय में आँखों की समस्याओं से बहुत लोग ग्रस्त देखे जाते हैं, जिनमे विद्यार्थियों की भी बड़ी संख्या है । निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाय तो आँखों को जीवनभर स्वस्थ रख सकते हैं और चश्मे से भी छुटकारा पा सकते हैं ।

आँखों के लिए हानिकारक

कम प्रकाश में, लेटे –लेटे व चलते वाहन में पढ़ना आँखों के लिए बहुत हानिकारक हैं ।

मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर आदि की स्क्रीन को अधिक समय तक लगातार देखने व हेयरड्रायर के उपयोग से आँखों को बहुत नुकसान होता है ।

आँखों को चौंधिया देनेवाले अत्यधिक तीव्र प्रकाश में देखना, ग्रहण के समय सूर्य या चन्द्रमा को देखना आँखों को हानि पहुँचता है ।

सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँखों पर तनाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखों की रोशनी कम तथा वे रुखी व तीखी होने लगती है ।

तेज रफ्तार की सवारी के दौरान आँखों पर सीधी हवा लगने से तथा मल-मूत्र और अधोवायु के वेग को रोकने एवं ज्यादा देर तक रोने आदि से आँखें कमजोर होती है ।

सिर पर कभी भी गर्म पानी न डालें और न ही ज्यादा गर्म पानी से चेहरा धोया करें ।

खट्टे, नमकीन, तीखे, पित्तवर्धक पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए ।

नेत्र – रक्षा के उपाय

पढ़ते समय ध्यान रखें कि आँखों पर सामने से रोशनी नहीं आये, पीठ के पीछे से आये, आँख तथा पुस्तक के बीच की दूरी ३० से.मी. से अधिक हो । पुस्तक आँखों के सामने नहीं, नीचे की ओर हो । देर रात तक पढ़ने की अपेक्षा प्रात: जल्दी उठकर पढ़ें ।

तेज धूप में धूप के चश्मे या छाते का उपयोग करें । धूप में से आकर गर्म शरीर पर तुरंत ठंडा पानी न डालें ।

चन्द्रमा व हरियाली को देखना आँखों के लिए विश्रामदायक हैं ।

सुबह हरी घास पर १५ – २० मिनट तक नंगे पैर टहलने से आँखों को तरावट मिलती है । (ऋषिप्रसाद – अक्टूबर २०१४, पृष्ठ २७ पर दिये गये नेत्र-सुरक्षा के उपायों का भी लाभ लें।)

कुछ विशेष प्रयोग

अंजन : प्रतिदिन अथवा कम-से- सप्ताह में एक बार शुद्ध काले सुरमे (सौवीरांजन) से अंजन करना चाहिए । इससे नेत्ररोग विशेषत: मोतियाबिंद का भय नहीं रहता ।

जलनेति : विधिवत जलनेति करने से नेत्रज्योति बढती है । इससे विद्यार्थियों का चश्मा भी छूट सकता हैं । (विधि हेतु आश्रम की पुस्तक ‘योगासन’ का पृष्ठ ४३ देखें )

नेत्रों के लिए विशेष हितकर पदार्थ : आँवला, गाय का दूध व घी, शहद, सेंधा नमक, बादाम, सलाद, हरी सब्जियाँ – विशेषत: डोडी की सब्जी, पालक, पुनर्नवा, हरा धनिया, गाजर, अंगूर, केला, संतरा, मुलेठी, सौंफ, गुलाबजल, त्रिफला चूर्ण ।

सर्वांगासन नेत्र-विकारों को दूर करने और नेत्रज्योति बढ़ानेवाला सर्वोत्तम आसन है । (आश्रम की पुस्तक ‘योगासन’ का पृष्ठ १५ देखें ।)

महानता की ओर ले जानेवाले अनमोल मोती – (भाग-1)

१. विद्या किसको कहते हो ? विद्या का यह एल. एल. बी., एम.ए. अथवा डी. लिट. की बड़ी-बड़ी उपाधियाँ प्राप्त की जायें । वह विद्या किस काम की जो शर्म गँवाये । विद्या का अर्थ है जानकारी अथवा ज्ञान । वह प्रकाश, वह ज्ञान, जिसके जानने से हमें पता पड़े कि धर्म क्या है, अधर्म क्या है, हमारे कर्तव्य क्या हैं, जिन्हें पालने से सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है । विद्या पढ़कर उस पर आचरण न किया तो फिर वह विद्या किस काम की ?

२. प्रात: उठने एवं रात्रि को सोते समय प्रतिदिन भगवान से प्रार्थना करो की ‘प्रभु ! हमें अच्छी बुद्धि और शक्ति दें ताकि हम अच्छे काम करें, आपस में सहानुभूति, मिलाप तथा प्रेम से चलें ।’

३. सिनेमा चरित्र पर बुरा प्रभाव डालता है, इससे विचार और संकल्प खराब होते हैं । इसे बिल्कुल न देखा करो ।

४. कभी भी मन में अपवित्र विचार उत्पन्न होने न दो । ज्ञान के अंकुश से अशुभ विचारों को दबा दो ।

५. अभ्यास द्वारा मन को वश में करते रहो । अभ्यास अर्थात मन को कुमार्ग से निकालकर सुमार्ग पर चलाना । बार-बार उसे सुमार्ग पर चलाते जाओगे तो आखिर तुम्हारी विजय होगी ।

६. ‘सत्संग’ बुद्धि के लिए मानो भोजन है । सत्संग करने से बुद्धि का विकास होता है ।

७. जिन कार्यों को करने से हानि-ही-हानि हो ऐसे कार्यों को करते रहने से रुदन के अतिरिक्त अन्य कुछ हाथ नहीं लगता ।

-भगवत्पाद साँई श्री लीलाशाहजी महाराज

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