चारधाम यात्रा : बढ़ती भीड़ और हिमालय के संवेदनशील पर्यावरण पर खतरा

अल्मोड़ा (एजेंसी)। उत्तराखंड के प्रसिद्ध चारधाम – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री – में तीर्थयात्रियों की संख्या अब वहाँ की वहन क्षमता से अधिक हो रही है, जो हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन सकती है।
वैज्ञानिकों ने 23 वर्षों (2000 से 2023) के आंकड़ों का गहन अध्ययन करके पहली बार इन धामों के लिए प्रतिदिन की अधिकतम तीर्थयात्री संख्या निर्धारित की है। यह शोध रिपोर्ट हिमालय पर स्थित इन आस्था स्थलों के संवेदनशील वातावरण के प्रति एक बड़ी चेतावनी जारी करती है।
शोध और क्षमता का निर्धारण
यह महत्वपूर्ण संयुक्त शोध रिपोर्ट जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान, अल्मोड़ा और उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विवि के वानिकी महाविद्यालय, भरसार द्वारा तैयार की गई है। यह हाल ही में प्रतिष्ठित नेचर पोर्टफोलियो के जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई है।
इस अध्ययन में चारों तीर्थस्थलों के क्षेत्रफल, भौगोलिक स्थिति, मौसम, और मौजूदा बुनियादी ढांचे का व्यापक मूल्यांकन किया गया, जिसके आधार पर प्रतिदिन की वहन क्षमता (Carrying Capacity) तय की गई है:
बद्रीनाथ: अधिकतम 15,778 तीर्थयात्री
केदारनाथ: अधिकतम 13,111 तीर्थयात्री
गंगोत्री: अधिकतम 8,178 तीर्थयात्री
यमुनोत्री: अधिकतम 6,160 तीर्थयात्री
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यात्रा के लिए तुरंत कोई वैज्ञानिक और सुनियोजित योजना नहीं बनाई गई, तो अगले दशक में हिमालय का नाजुक पारिस्थितिक संतुलन गंभीर खतरे में पड़ सकता है।
यात्रियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि
पिछले कुछ दशकों में चारधाम आने वाले पर्यटकों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है:
वर्ष 2000 के दशक में: चारधाम में लगभग 10 लाख श्रद्धालु प्रतिवर्ष आते थे।
वर्तमान में: यह संख्या बढ़कर 50 लाख प्रतिवर्ष से अधिक हो चुकी है।
2023 में: सैलानियों की संख्या 56 लाख पार कर गई थी।
2024 में: लगभग 47 लाख पर्यटक चारधाम पहुँचे।
अत्यधिक भीड़ का संभावित नकारात्मक असर
क्षमता से अधिक भीड़ का संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र पर कई तरह से बुरा प्रभाव पड़ रहा है:
प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव: पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव और जल संकट।
प्रदूषण और कचरा: कचरे और प्रदूषण में भारी वृद्धि, जिससे प्रबंधन की बड़ी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
पर्यावरण को क्षति: वनस्पतियों (फ्लोरा) को नुकसान पहुँचना और भूमि का कटाव (soil erosion) बढ़ना।
प्राकृतिक आपदा जोखिम: भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में यात्रियों के लिए जोखिम का बढ़ना।
वैज्ञानिकों के सुझाव
वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं:
संख्या नियंत्रण: निर्धारित वहन क्षमता के अनुसार तीर्थयात्रियों की संख्या को सख्ती से नियंत्रित किया जाए।
वैकल्पिक पर्यटन का विकास: चारधाम के आस-पास नए पर्यटन क्षेत्रों और वैकल्पिक स्थलों को विकसित किया जाए। इससे मुख्य धामों पर भीड़ का दबाव कम होगा और पर्यटक उन नए क्षेत्रों में भी बँट जाएँगे।
वैज्ञानिक योजना: यात्रा प्रबंधन के लिए एक दीर्घकालिक और वैज्ञानिक योजना लागू की जाए।















