ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

आज का हिन्दू पंचांग
दिनांक – 18 अगस्त 2023
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वितीया रात्रि 08:01 तक तत्पश्चात तृतीया
नक्षत्र – पूर्वाफाल्गुनी रात्रि 10:57 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी
योग – शिव रात्रि 08:28 तक तत्पश्चात सिद्ध
राहु काल – सुबह 11:07 से 12:43 तक
सूर्योदय – 06:17
सूर्यास्त – 07:10
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:48 से 05:33 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:21 से 01:06 तक

व्रत पर्व विवरण –
विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

मघा नक्षत्र के बारिश जल की महिमा

वर्षा ऋतु में सूर्य का मघा नक्षत्र में भ्रमण बहुत ही लाभदायक है । मघा नक्षत्र के बारे में कहा जाता है कि “मघा के बरसे, माता के परसे”
अर्थात, जैसे बालक का पेट माता द्वारा भोजन कराने से ही भरता है, वैसे ही मघा नक्षत्र की वर्षा ही धरती माता की प्यास बुझाती है जिससे फसल भी अच्छी होती है ।

मघा नक्षत्र में वर्षा हो तो उस वर्षा का जल गुणों में ‘सोने के समान व पवित्रता में गंगाजल के समान’ माना जाता है ।

इस जल को किसी बर्तन में भर कर पूरे वर्ष रखे जाने पर भी यह किसी प्रकार से खराब नहीं होता, इसमें कीड़े नही पड़ते ।
खंभात (गुजरात) में हर घर में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए बड़े-बड़े टैंक थे और आज भी ये टैंक कुछ घरों में पाए जाते हैं जहाँ खंभातवासी वर्षा का जल एकत्र कर उसका उपयोग करते हैं ।
इस जल का उपयोग किसलिए किया जा सकता है ?

परमात्मा के दिव्य-अभिषेक के लिए उत्तम जल ।

आँखों के किसी भी रोग में दो-दो बूंद आँखों में डाल सकते हैं ।

किसी भी प्रकार के पेट दर्द में इस जल का सेवन बहुत फायदेमंद है ।

यह जल बच्चों को पिलाने से, उनके पेट में कृमि हो तो निकल जाती है ।

यदि आप कोई आयुर्वेदिक दवा ले रहे हैं तो इस जल के साथ लेने से उसके लाभ बढ़ जाते हैं ।

इस जल में भोजन बनाना भी बहुत स्वादवर्धक और स्वास्थकारक है ।

‘महत्वपूर्ण सूचना’ :- इस वर्ष सूर्य की कक्षा मघा नक्षत्र में 17/08/2023 से 31/08/2023 तक रहेगी ।

इन दिनों में जब भी बारिश हो, जितना हो सके बारिश का पानी इकट्ठा कर लें । इन दिनों में खुले मैदान में ताँबा, पीतल, काँसा या स्टील के पात्र इस प्रकार रखें कि वर्षा का जल सीधे आपके द्वारा रखे गए पात्रों में भर जाए ।

कैसे भी खतरनाक रोग में… 

कैसा भी खतरनाक रोग हो- कैंसर, रक्तचाप, हृदय के वाल्व का रोग, मस्तिष्क के भयंकर रोग, जिनमें डॉक्टर, हकीम लोगों ने हार मान ली हो, ऐसे रोगों से ग्रस्त रोगी को सोचना चाहिए कि ‘जो बीमार होता है वह मैं नहीं हूँ । बीमार यह देह है । मैं तो चैतन्य हूँ । मैं तो अमर आत्मा हूँ । मैं व्यापक परमात्मा से भिन्न नहीं हूँ । हरि ॐ… हरि ॐ… हरि ॐ…’ इस प्रकार हरि ॐ के उच्चारण के साथ आत्मविचार करना चाहिए । इसके अतिरिक्त रोगी को निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए ।

पहला प्रयोग : प्रातःकाल, मध्याह्नकाल और सायंकाल एक बंद कमरे में सीटी बजाकर ३० मिनट तक हँसना चाहिए। हँसी न आये तो भी झूठमूठ हँसे ।

दूसरा प्रयोग : तुलसी के पत्तों का १० ग्राम रस और १० ग्राम शुद्ध शहद अथवा तुलसी के पत्तों का १० ग्राम रस और ४०-५० ग्राम ताजा दही (जो खट्टा न हो । हो सके तो गाय के दूध का दही) सुबह, दोपहर और शाम को लेना चाहिए ।

तीसरा प्रयोग : तुलसी के ताजे पत्तों की माला बनाकर गले में पहननी चाहिए और २४ घण्टे के बाद रोज प्रातः काल माला बदलनी चाहिए ।

ये तीनों उपाय करने से कैसे भी रोग में, चाहे डॉक्टरों ने हार मान ली हो, अवश्य चमत्कारिक लाभ होता है ।

निराशा के क्षणों में… 

अपने मन में हिम्मत और दृढ़ता का संचार करते हुए अपने आपसे कहो कि “मेरा जन्म परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने के लिए हुआ है, पराजित होने के लिए नहीं । मैं इश्वर का, चैतन्य का सनातन अंश हूँ । जीवन में सदैव सफलता व प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए ही मेरा जन्म हुआ है, असफलता या पराजय के लिए नहीं । मैं अपने मन में दीनता हीनता और पलायनवादिता के विचार कभी नहीं आने दूँगा । किसी भी कीमत पर मैं निराशा के हाथों अपनी शक्तियों का नाश नहीं होने दूँगा ।”

दु:खाकार वृत्ति से दु:ख बनता है । वृत्ति बदलने की कला का उपयोग करके दु:खाकार वृत्ति को काट देना चाहिए ।

आज से ही निश्चय कर लो कि “आत्म साक्षात्कार के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ता रहूँगा । नकारात्मक या फरियादात्मक विचार करके दु:ख को बढ़ाऊँगा नहीं, अपितु सुख दु:ख से परे आनंदस्वरुप आत्मा का चिन्तन करुँगा ।”

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button