ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग 

दिनांक – 29 जून 2023
दिन – गुरुवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – आषाढ़
पक्ष – शुक्ल
तिथि – एकादशी रात्रि 02:42 तक तत्पश्चात द्वादशी
नक्षत्र – स्वाती शाम 04:30 तक तत्पश्चात विशाखा
योग – सिद्ध 30 जून प्रातः 03:44 तक तत्पश्चात साध्य
राहु काल – दोपहर 02:25 से 04:06 तक
सूर्योदय – 05:57
सूर्यास्त – 07:29
दिशा शूल – दक्षिण दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:33 से 05:15 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:22 से 01:04 तक

व्रत पर्व विवरण – देवशयनी एकादशी, चतुर्मास प्रारम्भ
विशेष – एकादशी को शिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

देवशयनी एकादशी – 29 जून 2023

एकादशी विशेष

1. एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें । नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें । वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, अत: स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करें ।

2. स्नानादि कर के गीता पाठ करें, श्री विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें ।

3. हर एकादशी को श्री विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है ।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।

4. एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से श्री विष्णुसहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l

5. `ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जप करना चाहिए ।

6. चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करना चाहिए, यथा संभव मौन रहें ।

7. एकादशी के दिन भूल कर भी चावल नहीं खाना चाहिए न ही किसी को खिलाना चाहिए । इस दिन फलाहार अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा दूध या जल पर रहना लाभदायक है ।

29 जून 2023 गुरुवार से 23 नवम्बर 2023 गुरुवार तक चातुर्मास है ।

चातुर्मास मे निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए : 

१) जल में तिल और आँवले का मिश्रण अथवा बिल्वपत्र डालकर स्नान करने से अपने मे दोष का लेशमात्र नहीं रह जाता ।

२) जल में बिल्वपत्र डालकर ‘ॐ नम: शिवाय’ का ४-५ बार जप करके स्नान करने से विशेष लाभ तथा वायुप्रकोप दूर होता है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है ।

३) चतुर्मास में भगवान नारायण जल में शयन करते हैं, अत: जल में भगवान विष्णु के अंश व्याप्त रहता है । इसलिये उस तेज से युक्त जल का स्नान समस्त तीर्थों से भी अधिक फल देता है ।

४) ग्रहण के सिवाय के दिनों में सन्ध्याकाल में और रात को स्नान न करें । गर्म जल से भी स्नान नहीं करना चाहिए ।

५) चतुर्मास सब गुणों से युक्त उत्कृष्ट समय है । उसमें श्रद्धा पूर्वक धर्म का अनुष्ठान करान चाहिए ।

६) अगर मनुष्य चतुर्मास में भक्तिपूर्वक योग के अभ्यास मे तत्पर न हुआ तो नि:सन्देह उसके हाथ से अमृत का कलश गिर गया ।

७) बुद्धिमान मनुष्य को सदैव मन को संयम में रखकर आत्मज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए ।

८) चतुर्मास में भगवान विष्णु के आगे पुरुष सूक्त का पाठ करने वाले की बुद्धि का विकास होता है और सुबह या जब समय मिले भूमध्य में ओंकार का ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है ।

९) चतुर्मास मे जीवों पर दया तथा अन्न-जल व गौओं का दान, रोज वेदपाठ और हवन ये सब महान फल देनेवाले है । अन्न शत्रुओं को देना भी मना नहीं है और किसी भी समये दिया जाता है ।

१०) चतुर्मास में धर्म का पालन, सत्पुरुषों की सेवा, सन्तों के दर्शन, सत्सन्ग-श्रवण भगवान विष्णु का पूजन और दान में अनुराग होना – ये सब बातें चतुर्मास में अत्यंत कल्याणकारी बतायी गयी हैं ।

११) जो भगवान कि प्रीति के लिये श्रद्धा पूर्वक प्रिय वस्तु और भोग का त्याग करता है, वह अनन्त फल पाता है ।

१२) चतुर्मास में धातु के पात्रों का त्याग करके पलाश के पत्तों पर भोजन करने से ब्रह्मभाव प्राप्त होता है । तांबे के पात्रों भी त्याज्य है ।

१३) चतुर्मास में काला और नीला वस्त्र पहनना हानिकर है । इन दिनों में हजामत (केश संवारना) करना त्याग दें तो तीनों तापो से रहित हो जाता है ।

१४) इन चार महिनों मे भूमि पर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन (उत्तम व्रत-अनन्त फलदायी), पत्तल में भोजन, उपवास, मौन, जप, ध्यान, दान-पुण्य आदि विशेष लाभप्रद होते है ।

१५) चतुर्मास में परनिन्दा करना और सुनना दोनो का त्याग करें । परनिन्दा महापापं ।

१६) चतुर्मास में नित्य परिमित भोजन से पातकों का नाश और एक अन्न का भोजन करने वाला रोगी नहीं होता और एक समय भोजन करने से द्वादश यज्ञ फल मिलता है ।

१७) चतुर्मास में केवल दूध अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्त्र पाप नष्ट होते हैं और केवल जल पीकर रहता है, उसे रोज रोज अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।

१८) वैसे तो गृहस्थ को शुक्ल पक्ष की एकादशी रखनी चहिए किन्तु चतुर्मास की तो दोनों पक्षों की एकादशी रखनी चाहिए ।

१९) चतुर्मास में भगवान नारायण योग निद्रा में शयन करते हैं इसलिए चार मास शादी-विवाह और सकाम यज्ञ नहीं होते हैं । इस चार मास तपस्या करने के समय है ।

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