छत्तीसगढ़

मुख्यमंत्री की चिट्ठी से प्रमाणित हो गया कि धान का पैसा मोदी सरकार देती है : ओपी चौधरी

रायपुर। भाजपा प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चुनौती देते हुए कहा कि धान खरीदी पर वे जो झूठ की दुकान खोलकर बैठे हैं। उसकी सच्चाई यह है कि मोदी ने केंद्रीय पूल के चावल का कोटा इतना बढ़ा दिया है कि छत्तीसगढ़ के किसानों से प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदी संभव है। अब तक मुख्यमंत्री कह रहे थे कि सारी खरीदी वे ही करते हैं। अब राज्य के नुकसान की बात कर रहे हैं। सत्य यह है कि केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के किसानों की पूरी धान खरीदी के लिए कोटा बढ़ाया है। राज्य के बजट में तो धान खरीदी के लिए कोई विशेष व्यवस्था ही नहीं है। उन्होंने आंकड़े जारी करते हुए कहा कि हम भूपेश बघेल को गंगाजल भेजेंगे। वे मंदिर में खड़े होकर गंगाजल हाथ में लेकर कहें कि यह झूठ है।

भाजपा कार्यालय एकात्म परिसर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में चौधरी ने कहा कि भूपेश बघेल सरकार जेब में हाथ डाले बिना अरबों खरबों की सौदेबाजी करने में माहिर है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राज्य सरकार द्वारा धान खरीदी के बारे में झूठ बोलने का सबसे बड़ा प्रमाण तो राज्य का बजट है। अगर राज्य अपनी योजना से धान खरीदेगी तो उसके बजट में पैसे का प्रावधान करना पड़ेगा। धान खरीदी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग करता है, 2022-23 के लिए इस विभाग का कुल बजट  5158 करोड़ रुपए है, ऐसे में धान खरीदने के 21 हजार 828 करोड़ रुपए कहां से आयेंगे? यहां तक की तीन अनुपूरक बजट को मिलाकर भी इतनी बड़ी राशि नहीं होती।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिख कर 6000 करोड़ रुपए बकाया राशि देने की मांग की है। यह पैसा किस काम का बकाया है? इसका कोई उल्लेख चिट्ठी में नहीं है। प्रधानमंत्री को जब मुख्यमंत्री पत्र लिखे तो विषय स्पष्ट होना चाहिए, भूपेश बघेल के चार लाइन के पत्र में कुछ समझ नहीं आ रहा कि 6000 करोड़ रुपए प्रदेश को केंद्र से किस बात के लिए लेने है। ऐसा इसलिए है कि मुख्यमंत्री को विषय से कोई लेना देना नहीं है, उन्हें तो जनता को उलझाना है, मोदी सरकार को बदनाम करना है,  झूठे आरोप लगाना है।

इस पत्र में कुछ नहीं लिखते हुए भी बघेल ने अपने झूठ की पोल खोल दी है। कहते हैं न सत्यमेव जयते, ईश्वर सत्य के रूप में कैसे प्रकट होते हैं, इसका सुंदर उदाहरण मुख्यमंत्री की चिट्ठी है।

उन्होंने कहा कि इस पत्र में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लिखा है कि वर्तमान स्थिति में भारत सरकार/भारतीय खाद्य निगम के स्तर पर राज्य की एजेन्सियों की लम्बित देनदारियां लगभग 6,000 करोड़ रुपये की हो चुकी हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा है कि केंद्रीय पूल में राज्य सरकार की ओर से जमा चावल के बाद बचे शेष धान के निराकरण में भी राज्य सरकार को बड़ी हानि उठानी पड़ती है, जिसकी भरपाई भारत सरकार द्वारा नहीं की जाती है। इससे राज्य सरकार को अतिरिक्त आर्थिक भार वहन करना पड़ता है।

प्रदेश भाजपा महामंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री इस चिट्ठी में  खुद स्वीकार कर रहे हैं कि धान की खरीदी  की राशि की भरपाई भारत सरकार और उसकी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम करता है। जितना धान से चावल बनाकर एफसीआई सेंट्रल पूल से लेता है, उतने की भरपाई भारत सरकार करती है, पत्र के अनुसार उससे अधिक खरीदे गए धान पर राज्य सरकार को नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022-23 की बात करें तो इस साल छत्तीसगढ़ ने केंद्र को 58.65 लाख मीट्रिक टन चावल सेंट्रल पूल के लिए पूर्ति की है, इसे धान के हिसाब से देखें तो लगभग 90 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी राज्य ने की है, जिसका भुगतान केंद्र सरकार करती है। यही धान उपार्जन की व्यवस्था है। लेकिन भूपेश बघेल और उनके मंत्री तथा कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता लगातार कहते हैं कि राज्य सरकार अपने पैसे से धान खरीदती है। इस तरह शब्दों के भ्रमजाल फैलाना भूपेश सरकार और कांग्रेस पार्टी की आदत बन चुकी है।

चौधरी ने कहा कि भारतीय खाद्य निगम की वेबसाइट में जा कर देखेंगे तो धान उपार्जन की व्यवस्था और प्रक्रिया का विवरण है। स्पष्ट लिखा है कि भारतीय खाद्य निगम जो कि भारत सरकार की एजेंसी है, वह अन्य राज्य एजेंसियों के साथ मिलकर समर्थन मूल्य योजना के तहत गेंहू और धान का उपार्जन करता है। छत्तीसगढ़ में यह उपार्जन विकेंद्रीकृत प्रणाली से की जाती है। कांग्रेस सरकार इस बात को छुपाती है, जनता को ऊल जुलूल कुतर्क से भरमाने का प्रयास करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि धान खरीदने का पैसा केंद्र सरकार देती है। इसका मतलब राज्य में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य 2040 रुपए प्रति क्विंटल की दर से 107 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी में कुल 21828 करोड़ रुपए खर्च हुए, उसमें से केंद्रीय पूल के लिए 90 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी से चावल बनाने और एफसीआई के गोदाम तक पहुंचने का एक एक पैसा भारत सरकार देती है।

चौधरी ने कहा कि एक मजेदार बात यह भी है कि जो चावल केंद्र सेंट्रल पूल के जरिए लेती है, उसे पीडीएस के माध्यम से गरीबों को देती है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मोदी सरकार ने कोरोना काल से अब तक 5 किलो प्रति व्यक्ति अतिरिक्त चावल भिजवाए थे, जिसे इस भ्रष्ट सरकार ने गरीबों तक पहुंचने नहीं दिया। गरीबों का चावल खा गए।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता था, लेकिन धान पैदा करने वाले किसानों का जेब खाली होता था। जब राज्य बना उसके पहले 50 सालों तक कांग्रेस ने शासन किया, प्रदेश में खेती किसानी का क्या हाल था? प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री कहते थे, धान उत्पादन करने वाले गरीब होते हैं।

2003 में धान का उत्पादन मात्र 28.86 लाख मीट्रिक टन था, 2003 के अंत में भाजपा की सरकार बनी तो खेती किसानी पर जोर दिया गया। कल्याणकारी योजनाओं के जरिए 2008 में धान का उत्पादन 61.30 लाख मीट्रिक टन हो गया। इसके बाद धान की खरीदी में भाजपा ने एक- एक दाना धान खरीदना शुरू किया। 2003 में मात्र 14 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी, 2008-09 में यह बढ़ कर 37 लाख मीट्रिक टन को पार कर गया। 2011-12 के बाद तो धान का उत्पादन 100 लाख टन को पार  कर गया, इस उपलब्धि के लिए तीन बार छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार डॉ. मनमोहन सरकार के समय प्राप्त हुआ। 2016-17 में 70 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई। किसानों की उपज पर बोनस देना भी भाजपा ने शुरू किया था। 2007 में 50 रुपए प्रति क्विंटल से शुरू कर 2018 में 300 रुपए प्रति क्विंटल बोनस किसानों को दिया गया।

चौधरी ने कहा कि धान की खेती का यह विकास कोई सामान्य बात नहीं है, इसलिए भी कि भाजपा शासन में धान की खेती को बढ़ावा देने के साथ दलहन, तिलहन, उद्यानिकी की फसलों को भी बढ़ावा दिया। कृषि का संतुलित विकास किया। यह सोच भाजपा की  ही हो सकती है। इस दौरान पत्रकार वार्ता में सरगुजा संभाग प्रभारी संजय श्री वास्तव एवं प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी मौजूद थे।

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