बालिका की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तिकरण नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य : मुख्य न्यायाधीश

रायपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने कहा है कि लड़कियों की सुरक्षा, सम्मान और सशक्तिकरण सुनिश्चित करना सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि हमारा नैतिक और संवैधानिक दायित्व भी है। उन्होंने बताया कि लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल केवल उन्हें अपराध से बचाना नहीं है, बल्कि यह सकारात्मक कदमों से शुरू होता है, जिसमें उन्हें अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, अपनी बात कहने की आजादी और समान अवसर मिले। सभी संस्थानों का लक्ष्य सिर्फ अन्याय को रोकना नहीं, बल्कि उन्हें सशक्त बनाना होना चाहिए।
लड़कियों के संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने यह बात ‘बालिका संरक्षण: भारत में उसके लिए एक सुरक्षित एवं सक्षम वातावरण की ओर’ विषय पर आयोजित एक राज्य स्तरीय कार्यक्रम में कही। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की विशेष पॉक्सो और किशोर न्याय समिति द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर के सहयोग से आयोजित किया गया था। इस मौके पर उन्होंने ‘यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के तहत विभिन्न हितधारकों की भूमिका’ नामक एक लीफलेट का भी विमोचन किया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि लड़कियों के संरक्षण के लिए सभी क्षेत्रों का सहयोग जरूरी है, जैसे:
- स्वास्थ्य विशेषज्ञ उपचार के लिए।
- पुलिस सुरक्षा के लिए।
- समुदाय पोषण के लिए।
- कानूनी संस्थान अधिकारों की रक्षा के लिए।
- सबसे बढ़कर, समाज को अपनी सोच बदलनी होगी।
हर बालिका को मिले न्याय और सम्मान
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर हम सब मिलकर यह दृष्टिकोण अपनाएं, तो हम न केवल एक सुरक्षित, बल्कि वास्तव में सशक्त माहौल बना सकते हैं, जहाँ भारत की हर लड़की बिना डर के सपने देख सके, आगे बढ़ सके और अपनी पूरी क्षमता हासिल कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के हर विभाग को बच्चों के अधिकारों का संरक्षक बनना चाहिए। हमारा यह कर्तव्य है कि हर पीड़ित को न्याय मिले। उन्होंने कहा कि “नन्हीं बालिका भारत की आत्मा है। हमें उसका हाथ थामकर उसे सम्मान के साथ भविष्य की ओर ले जाना है।” यह सोच हमें दान या दया से नहीं, बल्कि न्याय और कर्तव्य की भावना से प्रेरित करती है।
तकनीकी सत्रों में हुई महत्वपूर्ण चर्चा
कार्यक्रम के दौरान कई तकनीकी सत्रों में भी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई, जिनमें शामिल थे:
- राज्य, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर लड़कियों के खिलाफ हिंसा की समीक्षा।
- ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं की समीक्षा।
- स्कूलों में सुरक्षित माहौल बनाने के उपाय।
- जागरूकता फैलाने में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) की भूमिका।
- परिवार और समुदाय के सहयोग का महत्व।
- लैंगिक संवेदनशीलता और सुरक्षित घरेलू माहौल।
- बाल संरक्षण सेवाओं को लागू करने में आने वाली चुनौतियों की पहचान।
- हिंसा के लड़कियों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
- स्वास्थ्य जागरूकता।
- यूनिसेफ जैसे संस्थानों के सहयोग से बच्चों के लिए अनुकूल माहौल बनाना।
- किशोर न्याय बोर्ड और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की भूमिका।
कार्यक्रम को न्यायमूर्ति श्रीमती रजनी दुबे और संजय के. अग्रवाल ने भी संबोधित किया। इस मौके पर कई अन्य गणमान्य व्यक्ति, जैसे- न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी, पार्थ प्रतीम साहू, सचिन सिंह राजपूत, संजय कुमार जायसवाल, रविन्द्र कुमार अग्रवाल, अमितेन्द्र किशोर प्रसाद, विधि विभाग के प्रमुख सचिव, न्यायिक अकादमी के निदेशक, फास्ट ट्रैक कोर्ट और किशोर न्याय बोर्ड के न्यायाधीश, राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष, यूनिसेफ के प्रतिनिधि और विभिन्न विभागों के अधिकारी भी उपस्थित थे। अंत में न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु ने सभी का आभार व्यक्त किया।