छत्तीसगढ़

परसराम साहू की पद्यानुवादित पुस्तक ’श्री सीता चरितम’ का विमोचन

रायपुर। परसराम साहू से.नि. उप महाप्रबंधक भारत संचार निगम लिमिटेड (बी.एस.एन.एल.) द्वारा पद्यानुवाद की पुस्तक ’’श्री सीता चरितम’’ पुस्तक का विमोचन 29 जनवरी को वृंदावन हॉल सिविल लाईन रायपुर में दुधाधारी मठ के महंत राजे डॉ. रामसुन्दर दास के मुख्य आतिथ्य, विजय कुमार छबलानी (आई.टी.एस.) मुख्य महाप्रबंधक, बी.एस.एन.एल छ.ग., मेजर डॉ जीके श्रीवास्तव, प्राफेसर एवं डीन इंदिरा गांधी कृषी महाविद्यालय के विशिष्ट आतिथ्य में एवं डॉ. राजेश दुबे, प्राचार्य शहीद राजीव पाण्डेय शास. महाविद्यालय रायपुर की अध्यक्षता में किया गया।

परसराम साहू ने बताया कि अमेरिकन महिला डेना मरियम जो स्वमी योगानन्द की शिष्या है वर्ष 2015-16 में सांस्कृतिक यात्रा में भारत की धार्मिक नगरी अयोध्या आई और वहां से हरिद्वार के  ऋषिकेश  पहुची। ऋषिकेश में पवित्र गंगा नदी के तट पर ध्यान में बैठी तब उन्हे प्रभु श्रीराम और सीता के दर्शन हुए एवं ध्यान के दौरान माता सीता से उनका सीधा संवाद हुआ। मां सीता से हुए सीधे संवाद केा उन्होने आत्मसात किया और इस आध्यात्मिक अलौकिक अनुभूति कोे उन्होने अंग्रेजी भाषा में ’’द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ सीता’’ पुस्तक में लिखा, जिसे बाद में दिल्ली की श्रीमती कविता गुप्ता ने हिन्दी भाषा में रुपांतरित कर ’’सीतायन’’ नाम से प्रकाशन करवाया। वर्ष 2021 में जब साहू कोरोना महामारी के शिकार हुए एवं 14 दिन के क्वारांईटाईन अवधि में थे तब ब्रम्हर्षि पितामह सुभाष पत्री जी के संस्था पिरामिड स्प्रिच्युअल सोसायटी मूवमेन्ट से ऑनलाईन माध्यम से जुड़े एवं एक दिन संस्था के सांयकालीन ध्यान सत्र में ’’सीतायन’’ पुस्तक पर चर्चा चल रही थी तब ईश्वरीय चेतना से प्रेरित होकर ’’सीतायन’’ के पद्यानुवाद का विचार साहू के मन में आया और उन्होने सीतायन का पद्यानुवाद ’’श्री सीता चरितम’’ पुस्तक में किया।

इस पुस्तक में माता सीता जो जगत जननी है नारायणी है के धरती से प्रकट होने व उसके पश्चात मिथिला नरेश महराज जनक व माता सुनयना के लालन पोषण में बड़े होने, बाल्यावस्था के दौरान अपने पिता के साथ राजदरबार में जाने, मिथिला के समीप निवासरत ऋषि मुनियों के समूहों के समीप जाने, धर्म चर्चा करने, ध्यान लगाने, उनकी सेवा करने, और प्रभु राम से विवाह व विवाह उपरांत जो संस्कार व शिक्षा मिथिला नगरी में अपने पिता व माता से प्राप्त की उसका पालन अयोध्या में राजा दशरथ के यहां करना व व उस संस्कार एवं शिक्षा को अयोध्या में भी फैलाना, प्रभु श्रीराम के साथ वनगमन, रावण द्वारा सीता हरण, वन में राम-हनुमान मिलन व हनुमान जी का लंका प्रवेश, अशोक वाटिका में हनुमान की रक्षा करना, राम रावण युद्व के दौरान लक्ष्मण के मूर्छित होने की जानकारी मां सीता को ध्यान से ही जानकारी प्राप्त होना व ध्यान में ही उनका यमराज से संवाद, यु़द्ध में राम को विजय की प्राप्ति, राम-सीता का लक्ष्मण जी व हनुमान के साथ वनवास के बाद अयोध्या वापस आना, अग्निपरीक्षा, गर्भावस्था में माता सीता का वाल्मिकी आश्रम में रहना और बाद में पुनः धरती पर विलय हो जाना इस प्रकार पूरे जीवनकाल में उनके समर्पण, प्रेम, करुणा, दिव्य शक्ति, आंतरिक उर्जा, त्याग, सेवा एवं समाजवाद को जीवन उन्होनें जिया उसका वर्णन किया गया है।

साहू ने कहा कि आज जो समाज व परिवार बिखर रहा है ऐसे समय में पुनः सीता जैसी नारी की आवश्यकता है। सतयुग की मां सीता के जीवन को पढ़कर और आत्मसात कर आज की नारी शक्ति इस कलयुग में भी अपने परिवार के साथ-साथ दूसरेे कुल और परिवार को भी तार सकती है। और यह केवल नारी से ही संभव नही होगा इसके लिये प्रत्येक पुरुष को भी स्वयं भगवन राम को पढ़कर प्रेरणा लेकर मर्यादित जीवन जीना होगा तभी समाज में पुनः संस्कारवान व सुव्यवस्थि परिवार स्थापित होगा। और अच्छे परिवार से गांव, गांव से शहर, शहर से राज्य और राज्य से अच्छे राष्ट्र निर्माण का सपना पूरा होगा और हमारा भारत पुनः विश्व गुरु बन पायेगा। इस पुस्तक के माध्यम से वे स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता सीता ने जिस अलौकिक प्रेम व आदर्श राम राज्य की नींव रखे थे, उस प्रेममयी सुनहरी सृष्टि का आह्वान करते है।

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