छत्तीसगढ़

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव ला रहीं है समूह की दीदियां

रायपुर। छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएं अब स्व-सहायता समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर मजबूती से कदम बढ़ा रही हैं। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देशों के अनुरूप महिलाओं को स्व-रोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में जिला प्रशासन जशपुर ने उल्लेखनीय पहल की है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत जिले में 11,559 स्व-सहायता समूहों का गठन किया गया है, जिनसे 1,24,117 महिलाएं जुड़ी हुई हैं और विभिन्न आजीविका मूलक गतिविधियों में सक्रिय सहभागिता निभाने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव ला रही है।

इन महिला स्व-सहायता समूहों को 703 ग्राम संगठन एवं 32 संकुल संगठनों के माध्यम से संगठित कर कार्यशील बनाया गया है। समूहों की महिलाओं की आय में वृद्धि के लिए सतत प्रयास किए जा रहे हैं। कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, किराना व्यवसाय, ईंट निर्माण जैसे कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभा रही है।

स्व-सहायता समूह की महिलाएं अब परंपरागत कृषि को आधुनिक एवं प्राकृतिक पद्धतियों से जोड़ रही हैं। बीज उपचार, द्रव और घन जीवामृत, ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र जैसी जैविक विधियों के निर्माण और उपयोग हेतु उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है। इससे जहां खेती की लागत घटी है और उत्पादकता में भी सुधार हुआ है।

राज्य शासन की विभिन्न योजनाएं जैसे कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, रेशम विकास एवं मनरेगा के अंतर्गत स्व-सहायता समूहों को जोड़कर उनके लिए आय के नए स्रोत सृजित किए जा रहे हैं। सामुदायिक निधियों के माध्यम से ऋण उपलब्ध कराए जा रहे हैं, वहीं बैंक लिंकेज और मुद्रा लोन जैसी योजनाओं से दीदियों को आजीविका गतिविधियों को बढ़ाने में भरपूर सहायता मिल रही है। समूहों से जुड़ी कई महिलाएं आज दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। समूह की सहायता से कुछ महिलाएं अब खुद की दुकान चला रही हैं, तो कुछ दुग्ध उत्पादन और मछली पालन कर रही हैं। इससे न केवल उनके परिवार की आय में वृद्धि हुई है, बल्कि उनमें एक नया आत्मविश्वास जगा है।

स्व सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को संगठित कर उन्हें आर्थिक गतिविधियों से जोड़ना छत्तीसगढ़ सरकार के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की दूरदर्शिता और नेतृत्व में यह पहल जशपुर जिले के विकास को नई दिशा दे रही है। स्व-सहायता समूहों की दीदियों का यह प्रयास न केवल उनके जीवन को संवार रहा है, बल्कि एक समावेशी और आत्मनिर्भर भारत की ओर एक महत्वपूर्ण कदम भी सिद्ध हो रहा है।

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