आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग
दिनांक – 18 जुलाई 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – प्रतिपदा रात्रि 02:09 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र – पुष्य पूर्ण रात्रि तक
योग – हर्षण सुबह 09:37 तक तत्पश्चात वज्र
राहु काल – शाम 04:07 से 05:47 तक
सूर्योदय – 06:04
सूर्यास्त – 07:27
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:39 से 05:22 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:25 से 01:07 तक
व्रत पर्व विवरण – अधिक-श्रावण मास प्रारम्भ
विशेष – प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है ।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
घोर पातक से दिलाता मुक्ति अधिक – पुरुषोत्तम मास के व्रत
अधिक – पुरुषोत्तम मास 18 जुलाई से 16 अगस्त 2023
पूरा मास व्रत रखने का विधान भविष्योत्तर पुराण आदि शास्त्रों में आता है । पूरा मास यह व्रत न सकें तो कुछ दिन रखें और कुछ दिन भी नहीं तो एकाध दिन तो इस मास में व्रत करें । इनसे पापों की निवृत्ति और पुण्य की प्राप्ति बतायी गयी है । परंतु उपवास वही लोग करें जो बहुत कमजोर नहीं हैं ।
सुबह उठकर भगवन्नाम-जप तथा भगवान के किसी भी स्वरूप का चिंतन-सुमिरन करें, फिर संकल्प करें : ‘आज के दिन मैं व्रत-उपवास रखूँगा । हे सच्चिदानंद ! मैं तुम्हारे नजदीक रहूँ, विकार व पाप-ताप के नजदीक न रहूँ । भोग के नजदीक नहीं, योगेश्वर के नजदीक रहूँ इसलिए मैं उपवास करता हूँ ।’ फिर नहा–धोकर भगवान का पूजन करें । यथाशक्ति दान पुण्य करें और भगवन्नाम जप करें । सादा-सूदा फलाहार आदि करें ।
१० हजार वर्ष गंगा-स्नान करने से अथवा १२ वर्ष में आनेवाले सिंहस्थ कुम्भ में स्नान से जो पुण्य होता है वही पुण्य पुरुषोत्तम मास में प्रात:काल स्नान करने से हो जाता है ।
जो पुरषोत्तम मास का फायदा नहीं लेता उसका दुःख-दारिद्र्य और शोक नहीं मिटता । यह मास शारीरिक-मानसिक आरोग्य और बौद्धिक विश्रांति देने में सहायता करेगा । भजन-ध्यान अधिक करके पुरुषोत्तमस्वरूप परमात्मा को पाने में यह मास मददरूप है ।
पुरुषोत्तम मास में क्या करें, क्या न करें ?
अधिक मास में क्या करें
(१) आँवला और तिल के उबटन से स्नान पुण्यदायी और स्वास्थ्य व प्रसन्नता वर्धक है ।
(२) आँवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करना अधिक प्रसन्नता और स्वास्थ्य देता है ।
(३) भगवन्नाम-जप, कीर्तन, भगवद-स्मरण, ध्यान, दान, स्नान आदि तथा पुत्रजन्म के कृत्य, पितृमरण के श्राद्ध आदि एवं गर्भाधान, पुंसवन जैसे संस्कार किये जा सकते हैं ।
(४) दीपक-दान से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, दुख-शोकों का नाश होता है, वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है ।
(५) गीता के १५वें अध्याय का अर्थसहित प्रेमपूर्वक पाठ करना और गायों को घास व दाना दान करना चाहिए ।
(६) ‘देवी भागवत’ के अनुसार यदि दान आदि का सामर्थ्य न हो तो संतों-महापुरुषों की सेवा (उनके दैवीकार्य में सहभागी होना) सर्वोत्तम है । इससे तीर्थस्नान, तप आदि के समान फल प्राप्त होता है ।
(७) इस मास में किये गये निष्काम कर्म कई गुना विशेष फल देते हैं ।
(८) भक्तिपूर्वक सदगुरु से अध्यात्म विद्या का श्रवण करने से ब्रह्महत्या जनित भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं तथा दिन-प्रतिदिन अश्वमेधयज्ञ का फल प्राप्त होता है । निष्काम भाव से यदि श्रवण किया जाय तो जीव मुक्त हो जाता है ।
(९) भूमिपर (चटाई, कम्बल, चादर आदि बिछाकर) शयन, पलाश की पत्तल पर भोजन करने और ब्रह्मचर्य व्रत पालनेवाले की पापनाशिनी ऊर्जा बढ़ती है तथा व्यक्तित्त्व में निखार आता है ।
अधिक मास में क्या ना करें
(१) पुरुषोत्तम मास व चतुर्मास में नीच कर्मो का त्याग करना चाहिए ।
(२) इस मास में विवाह अथवा सकाम कर्म एवं सकाम व्रत वर्जित हैं । अत: कर्म संसारी कामनापूर्ति के लिए नहीं, ईश्वर के लिए करना ।
(३) मकान-दुकान नहीं बनाये जाते तथा पोखरे, बावड़ी, तालाब, कुएँ नहीं खुदवाये जाते हैं ।