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सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल,,,,,,,, बघेल और सिंहदेव अब होंगे एक सिंहदेव नहीं बनेंगे ‘सचिन’ या ‘सिंधिया’

0 जवाहर नागदेव,     
सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल

कांग्रेस में अंदरूनी स्थिति छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कमोबेश एक सी है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजस्थान में सचिन पायलट और छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव। ये तीनों नाम अपनी ही पार्टी में एक ही श्रेणी में आते हैं यानि असंतुष्टों की श्रेणी। सिंधिया की बात पुरानी हो गयी। अंजाम भी सामने आ गये। उन्होने कांग्रेस का मध्यप्रदेश में भट्टा बिठा दिया और भाजपा की सरकार बनवा दी।
राजस्थान के असंतुष्ट कांग्रेसी नेता सचिन पायलट से भी ऐसा ही कुछ करने की उम्मीद थी। पर या तो उन्हें कांग्रेस में भविष्य उज्जवल नजर आया या फिर भाजपा से कुछ बात नहीं बनी। जो भी है उन्होंने अपना असंतोष कभी छिपाया नहीं। खुलेआम मंचों पर से अपनी ही सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं। पार्टी को नहीं छोड़ा है मगर नाराजगी बदस्तूर कायम है। पिछले दिनों ही ऐसा दिखाया गया कि कांग्रेस हाईकमान से मिलकर दोनों नेता एक हो गये हैं।

सिंहदेव के रिश्तेदार भाजपाई

ईधर बात छत्तीसगढ़ की करें तो साफ तौर पर साफ-साफ बोलने वाले नेकदिल टीएस सिंहदेव अपनी महात्वाकांक्षा दर्शाते रहे। एक पक्ष का कहना है कि सिंहदेव की मांग जायज भी थी। ढाई साल भूपेश बघेल के मुख्यमंत्रित्व काल के बाद सिंहदेव मुख्यमंत्री बनने चाहिये थे। लेकिन काफी उठापटक के बाद भी ये हो न सका। कई बार अलग-अलग अंदाज में उन्होंने साफ तौर पर ये जता दिया कि वे कांग्रेस को चुनाव मे कोई मदद नहीं करने वाले। सिंहदेव ने अपने समधि के भाजपा सांसद होने की जानकारी देते हुए कहा कि अगर उनका बेटा अपने ससुर के कहने से भाजपा में प्रवेश ले ले तो वे उसे रोक नहीं सकते। तर्क में दम है।
साफ बात थी कि वे पार्टी को चेता रहे थे कि उनकी ताकत अब बेटे के माध्यम से भाजपा के साथ खड़ी होगी। कमोबेश सारे राजनैतिक पण्डित यही कयास लगाते रहे हैं कि सिंहदेव एक्टिव नहीं होेंगे और पर्दे के पीछे से भाजपा को सपोर्ट करंेगे। ये आशंका बलवती बनी रही।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को
मजबूत कर चुके भूपेश

लेकिन ऐसे में सामने आ गये कर्नाटक के चुनाव। इन चुनावों में कांग्रेस की जीत तो बताई जा रही थी लेकिन इतनी शानदार जीत कि भाजपा की किरकिरी हो जाए इसकी उम्मीद नहीं थी। लिहाजा अब जब कांग्रेस ने वहां पर अपना परचम लहरा कर वाहवाही लूटी है और लुढ़कती-पड़ती कांग्रेस में नयी जान आ गयी है।
इसके अलावा प्रदेश में हर नये दिन भूपेश बघेल कुछ न कुछ नया ऐलान कर रहे हैं। जनता के हित के लिये नयी घोषणाएं कर रहे हैं। भगवान राम का मुद्दा तो अब बघेल ने भी मजबूती से थाम लिया है। जिसके अस्तित्व पर सवाल उठाते थे उसके अस्तित्व के सहारे सत्ता का रास्ता बना रहे हैं। ऐसे में सिंहदेव ये अंदाजा लगा रहे होंगे कि कांग्रेस से जुड़ाव में ही फायदा है। साथ ही संभव है कि कांग्रेस हाईकमान ने उनके गम को सहलाया हो। उनके तनाव को दूर करने का प्रयास किया हो। बहरहाल ये वो समझ गये कि फिलहाल कांग्रेस समाप्त नहीं है। खासतौर पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस फिर रिपीट हो सकती है। ऐसी सोच किसी के भी मन में उत्पन्न हो सकती है। तो अब बदलते वातावरण में टीएस सिंहदेव पार्टी के खिलाफ कुछ करेंगे इसकी आशंका कम है।
इसके अलावा संभव है कि भाजपा में उन्हें वो मुकाम नजर नहीं आ रहा हो जो वे चाहते रहे हैं। भाजपा में समर्पित और निष्ठावान वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की लाईन लगी है जो बरसों से पद के लिये खड़े हैं ऐसे में वरीयता पहले उन्हें ही मिलेगी। ऐसे में शायद सिंहदेव को दूसरी लाईन में खड़े होना पड़े।
सिंहदेव न सिंधिया की तरह बागी बनेंगे हांलांकि ये उन्होंने पहले ही बोल दिया था और न ही वे सचिन की तरह ‘चमकाने’ का काम करेंगे। क्योंकि पहले भी वे सरकार को चमकाने का काम कर चुके हैं। जिसका कोई असर सरकार पर, न हाईकमान पर पड़ा था। अब कदाचित वे चुपचाप पार्टी की बागडोर थाम कर वफादारी के साथ काम करें और मुख्यमंत्री बनने की महात्वाकांक्षा को गहरे दफना दें फिलहाल के लिये….  हां हाल बदलेगा कभी तो महात्वाकांक्षा फिर सर उठाएगी, इसे नकारा नहीं जा सकता। कहा भी जाता है कि वक्त बदलते देर नहीं लगती।

अच्छी बात है कि
धर्म के नाम से जमा हो जाते हैं हम

धर्म यानि धारण करने योग्य। हम लोग बेहद मतभिन्नता के बावजूद धरम के नाम पर एक हो जाते हैं। इस धरम मे छिपे होते हैं हमारे संस्कार।
हमारी आस्था। हमारे संस्कार। हम चाहकर भी एक नहीं हो पा रहे थे। सबकी सोच अलग,सबके स्वार्थ अलग यानि हर तरीके से मतभिन्नता। इसके बावजूद जब संकटमोचन के रूप में बाबा बाघेश्वर धाम के पण्डित धीरेन्द्र शास्त्री सामने आए तो देश ने उन्हें सर आंखो पर बिठाया।
जैसे ही शास्त्री जी फ्रंट पर आए हनुमान भक्तों का हुजूम उनके पीछे चल पड़ा। बस यहीं  पर हिंदु विरोधियों के हाथ-पांव फूल गये। उन्हें अहसास हो गया कि तत्काल कुछ किया नहीं गया तो न सिर्फ हिंदु ही एक हो जाएंगे बल्कि देश की हिंदुओं की सबसे बड़ी खैरख्वाह भाजपा के पीछे चल पड़ेंगे।
और ऐसा होने का सीधा सा अर्थ है कि अभी जो सत्ता दूर दिख रही है वो और दूर दिखने लगेगी। बौखलाए भाजपा विरोधियों ने तुरंत पण्डित शास्त्री जी का विरोध शुरू कर दिया। सबसे पहले महाराष्ट्र में उनके विरूद्ध एफआईआर दर्ज कराई गयी। फिर रायपुर छत्तीसगढ़ मे उनका कार्यक्रम था। रायपुर मे लाखो की भीड़ ने उनमें आस्था जताई और महाराष्ट्र मंे हुए दुव्र्यवहार की अच्छी तरह कसर निकाल दी गयी।

बाबा के खिलाफ लालू पुत्रों की घनघोर घोषणा

हाल में उनका प्रवास बिहार में हुआ। यहां पर तो लालू पुत्रों ने घनघोर घोषणा की कि शास्त्री अगर बिहार आए तो उन्हें अंदर कर दिया जाएगा। वे अपनी सरकार होने का दम्भ दिखाने लगे। कुछ सत्तासीन लोग आडवानी जी का उदाहरण देने लगे कि रथयात्रा के समय कैसे लालू ने उन्हें अरेस्ट करवा दिया था। लेकिन ये सारी दम्भोक्तियां पिचके हुए गुब्बारे की तरह फुस्स हो गयीं। और बाबा ने अपना हिंदुराष्ट्र का उद्घोष जारी रखा और साफ कहा कि हम हिंदु मुसलमान की बात नहीं करते। हम तो केवल हिंदु-हिंदु की बात करेंगे। इसमें कोई वैमनस्य फैलाने की बात नहीं है। बहरहाल सारा बिहार एक प्रकार से दीवाना हो गया और बिहार सरकार की दहाड़ धरी की धरी रह गयी। कहा जा सकता है कि मोदी विरोधियों को नया बड़ा नुकसान हो गया।

जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
उव 9522170700
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‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’

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