जमीन पर बैठने, सोने और चलने से बड़ा सुख जीवन में कोई नहीं : साध्वी शुभंकरा

रायपुर। एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में शुक्रवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि आज हम सब अत्याधुनिक दौर में है। हमारे पास जीवन में सभी काम के लिए कोई ना कोई मशीन या सामान है, जो हमारे सभी कामों को बहुत ही आसान बना देता है। आप एक बटन दबाते हो और टीवी चालू हो जाता है आप एक बटन दबाते हो ऐसी चालू हो जाता है आप एक बटन को जरा सा घुमाते हो आपका वाशिंग मशीन चालू हो जाता है घर में बर्तन मांजने के लिए भी आजकल लोग मशीन लगाने लगे हैं। आपके पास आज इतनी सारी सुख सुविधाएं हैं जितनी कि आज से 400 साल पहले तक किसी राजा के पास भी नहीं थी।
इतिहास उठाकर देख लीजिए भारत में जितने भी राजाओं ने अपना शासन चलाया है उनके पास अपार धन-संपत्ति थी लेकिन उन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य जाने में कई दिन लग जाते थे। आज आप अपने देश में कहीं पर भी केवल कुछ मिनटों में ही पहुंच सकते हैं और कुछ घंटों के अंदर तो आप दुनिया के किसी भी कोने में पहुंच सकते हैं। राजा महाराजा भी बहुत दूर की बात हो चुके हैं आप अपने पूर्वजों को ही देख लीजिए उनके पास ना गाड़ी घोड़े थे ना टीवी रेडियो हुआ करते थे उन्होंने फिर भी अपना जीवन बहुत ही सुख में बिताया। उनके पास कोई गद्देदार बिस्तर नहीं था आलीशान सोफा नहीं था और गाड़ियां भी नहीं थी। फिर भी वह आराम से जमीन पर सोते, जमीन पर बैठकर ही खाना खाते थे और पैदल ही नगर मैं घूम कर अपना सारा काम कर लेते थे। यह भी एक बहुत बड़ा कारण था, किसी को कोई टेंशन नहीं थी। आज तो मोबाइल सबके पास है, जो क्षण-क्षण में आपको एक नया टेंशन देता है, आप अपनी दिनचर्या में मोबाइल से दूर रहकर गद्देदार बिस्तर और सोफे से दूर रहकर, जमीन पर सो कर, जमीन पर बैठकर और पैदल घूम कर देखिए आपको अलग ही अनुभूति होगी, अलग ही सुख आपको मिलेगा।
‘जीवन कैसे जिए’ विषय पर साध्वी जी कहती है कि आपको शरीर में ईंधन की पूर्ति के स्वरूप भोजन ग्रहण करना चाहिए। आपने अपने बच्चों को भी बिगाड़ कर रखा है, बचपन से आपने उन्हें उनक पसंदीदा खाना खिलाया है और अब वह जिद पर अड़ जाते हैं और आपको उनकी जिद माननी पड़ती है। इसका खामियाजा भी आप ही को भुगतना पड़ता है क्योंकि आपको ही रसोई में दो से तीन अलग-अलग प्रकार की सब्जियां बनानी पड़ती है उसके बाद आप चावल भी बनाते हैं और रोटी भी बनाते हैं, काम आपका ही बढ़ रहा है। बच्चों को सामाजिक माहौल देना भी हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है। घर में ही बच्चा दो कौर दादा के साथ, दो कौर चाचा के साथ, दो कौर चाची के साथ, दादी के साथ, मां के साथ, पिता के साथ भी अगर खा ले तो उसका पेट भर जाता है और इस प्रेम से भोजन करने पर वह देखता नहीं है कि कौन मुझे क्या खिला रहा है। वह सब कुछ खा लेता है और यह उसकी आदत भी बन जाती है। आज तो बच्चे यह नहीं खाना है वह नहीं खाना है करके अलग-अलग डिश की डिमांड करते हैं। संडे को तो दाल, चावल, रोटी भूल ही जाओ, उन्हें स्पेशल डिश चाहिए। यह डिश आपके शरीर को डिसमिस कर सकता है। आप छत्तीसगढ़ में निवास करते हो, आपको यहां का पारंपरिक भोजन करना चाहिए, दाल-चावल, रोटी और थोड़ी सी कड़ी खा ली और हो गया आपका भोजन। हमें शरीर को केवल ऊर्जा देने मात्र के लिए भोजन करना चाहिए।
शादी-पार्टी, भंडारे में खाली टिफिन लेकर न जाएं
आजकल तो लोग शादी-पार्टी और भंडारे में भी टिफिन का डिब्बा लेकर पहुंचते हैं। सुख हो या दुख हो, वह यह नहीं देखते और एक डिब्बा लेकर बस पहुंच जाते हैं। क्या कभी आप किसी के घर डिब्बे में भरकर अपने घर में बने व्यंजन लेकर गए हैं, कभी नहीं। ऐसा सिर्फ त्योहारों में देखने को मिलता है और वह भी इसीलिए क्योंकि आप अपने हाथ का स्वाद दूसरों को चखाना चाहते हैं और अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं। आप शादी पार्टी और भंडारे में डिब्बा लेकर जा भी रहे हैं तो इतना बड़ा लेकर जाइए कि आप वहां से भोजन लाकर सबको खिला सकें। हो सके तो ऐसे मौकों पर आप अपने घर से कुछ व्यंजन बनाकर, डिब्बे में भरकर उसे ले जाएं और सबको खिलाए, फिर देखना आपको कैसी अनुभूति होती है। आपने केवल लेना सीखा है, देना नहीं। देने का सुख अलग ही है, कभी किसी को कुछ देकर देखिए…
मनोहरमय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष सुशील कोचर और महासचिव नवीन भंसाली ने बताया कि मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन 2023 ललित विस्त्रा ग्रंथ पर आधारित है। नवकार जपेश्वरी परम पूज्य शुभंकरा श्रीजी आदि ठाणा 4 के मुखारविंद से सकल संघ को जिनवाणी श्रवण का लाभ दादाबाड़ी में मिल रहा है। साथ ही उन्होंने नगरवासियों से साध्वीजी के मुखारविंद से जिनवाणी का श्रवण करने का आग्रह किया है।