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भ्रष्ट लोकसेवकों की सजा पर रोक उचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी पाए गए लोकसेवकों की सजा पर रोक लगाने के चलन को लेकर सख्त रुख अपनाया है। जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि अदालतों को ऐसे मामलों में सजा पर रोक लगाने से बचना चाहिए। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी:

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा, “भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराधों में दोषसिद्ध लोकसेवकों की सजा पर रोक लगाना न्याय की प्रक्रिया के खिलाफ है। इससे सार्वजनिक विश्वास को ठेस पहुंचती है।” कोर्ट ने दोहराया कि पहले भी शीर्ष अदालत ने इस विषय में सख्त रुख अपनाया है।

क्या था मामला?

मामला एक लोकसेवक से जुड़ा है जिसे PC Act की धाराओं 7, 12, 13(1)(D) और 13(2) के तहत दोषी ठहराया गया था। निचली अदालत ने उसे दो मामलों में कुल 5 साल की कठोर सजा और जुर्माना सुनाया था। इसके खिलाफ लोकसेवक ने गुजरात हाई कोर्ट में अपील की, जहां कोर्ट ने सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया, लेकिन दोषसिद्धी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती और उसका नतीजा:

लोकसेवक ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है और यह पूरी तरह वैध है।

क्या है कानूनी संदेश?

इस फैसले से एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ है कि भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी लोकसेवकों के लिए अदालतों से राहत पाना आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक प्रणाली को यह संकेत दिया है कि ऐसे मामलों में नरमी न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगी।

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