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भारत-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता : द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में एक नया अध्याय

मुंबई (एजेंसी)। भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुए ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन ने खुशी जाहिर करते हुए इसे अपनी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि करार दिया है। प्रधानमंत्री मोदी और लक्सन के बीच हाल ही में हुई चर्चा के बाद इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया, जो दोनों देशों के रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।

समझौते की मुख्य विशेषताएं

यह समझौता भारत के आर्थिक इतिहास के सबसे तेजी से संपन्न होने वाले समझौतों में से एक है, जो मार्च 2025 में शुरू होकर मात्र नौ महीनों में पूरा हो गया। इसके मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं:

निर्यात शुल्क में बड़ी कटौती: न्यूजीलैंड अपने यहां आने वाले 95% भारतीय उत्पादों पर सीमा शुल्क को या तो समाप्त कर देगा या काफी कम कर देगा। लगभग 57% भारतीय सामान पहले दिन से ही शुल्क-मुक्त हो जाएंगे।

भारतीय उद्योगों को लाभ: भारत के कपड़ा, रत्न एवं आभूषण, चमड़ा उद्योग, समुद्री उत्पाद और इंजीनियरिंग क्षेत्र को न्यूजीलैंड के बाजार में सीधी और सस्ती पहुंच मिलेगी।

बड़ा निवेश: न्यूजीलैंड ने अगले 15 वर्षों के भीतर भारत में 20 अरब डॉलर के निवेश का भरोसा दिया है।

सेवा क्षेत्र और वीजा: भारतीय आईटी पेशेवरों, शिक्षकों और वित्तीय विशेषज्ञों के लिए न्यूजीलैंड के बाजार खुलेंगे। साथ ही, भारतीय पेशेवरों के लिए हर साल 5,000 विशेष अस्थायी रोजगार वीजा का प्रावधान किया गया है, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक होगी।

आर्थिक लक्ष्य और भविष्य की रूपरेखा

वर्तमान में दोनों देशों के बीच व्यापार का स्तर लगभग 1.3 अरब डॉलर है, जिसे अगले पांच वर्षों में दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है। यह समझौता न केवल व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की प्राप्ति में भी सहायक होगा।

“यह ऐतिहासिक समझौता 1.4 अरब उपभोक्ताओं वाले भारतीय बाजार के द्वार खोलेगा, जिससे हमारे देश में अधिक रोजगार और निर्यात के अवसर पैदा होंगे।” — क्रिस्टोफर लक्सन, प्रधानमंत्री (न्यूजीलैंड)

कुछ चुनौतियां और आगामी कदम

हालांकि इस समझौते का व्यापक स्वागत हुआ है, लेकिन न्यूजीलैंड की गठबंधन सरकार के भीतर कुछ मतभेद भी उभरे हैं। विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने डेयरी उत्पादों को पूरी तरह शामिल न किए जाने पर असंतोष जताया है। इसके बावजूद, दोनों राष्ट्र प्रमुख इसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और विकास का प्रतीक मान रहे हैं।

इस महत्वपूर्ण समझौते पर औपचारिक हस्ताक्षर 2026 की पहली तिमाही में होने की संभावना है, जिसके बाद इसे पूर्ण रूप से लागू कर दिया जाएगा।

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