हरियाली तीज आज, जानें शुभ मुहूर्त व पूजा विधि
न्युज डेस्क (एजेंसी)। हिन्दू धर्म में तीज का बहुत महत्व है। इसी कड़ी में सुहागिनों के लिए सावन की हरियाली तीज खास मानी जाती है। ऐसे में आइये जानते हैं हरियाली तीज की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में विस्तार से।
हिन्दू धर्म में सुहागिनों के लिए तीज बहुत खास होती है। वहीं सावन में आने वाली तीज हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है।
हरियाली तीज 2023 तिथि
सावन हरियाली तीज तिथि आरंभ: 18 अगस्त, दिन शुक्रवार, रात 8 बजकर 2 मिनट
सावन हरियाली तीज तिथि समापन: 19 अगस्त, दिन शनिवार (शनिवार के उपाय), रात 10 बजकर 19 मिनट
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, हरियाली तीज का व्रत 19 अगस्त को मनाई जाएगी।
हरियाली तीज 2023 शुभ मुहूर्त
हरियाली तीज की पूजा के लिए सुबह का मुहूर्त आरंभ: 7 बजकर 47 मिनट
हरियाली तीज की पूजा के लिए सुबह का मुहूर्त समापन: 9 बजकर 22 मिनट
हरियाली तीज की पूजा के लिए दोपहर का मुहूर्त आरंभ: 12 बजकर 32 मिनट
हरियाली तीज की पूजा के लिए दोपहर का मुहूर्त समापन: 2 बजकर 7 मिनट
हरियाली तीज की पूजा के लिए शाम का मुहूर्त आरंभ: 6 बजकर 52 मिनट
हरियाली तीज की पूजा के लिए शाम का मुहूर्त समापन: 7 बजकर 45 मिनट
हरियाली तीज 2023 पूजा विधि
हरियाली तीज के दिन सुबह उठकर स्नान करें। नए वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। इस दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखना है। पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। महादेव और मां पार्वती की मिट्टी से मूर्ति बनाएं। लाल कपड़े पर उन मूर्तियों को स्थापित करें। पूजा की थाली में सुहाग की सभी चीजें रखें। महादेव और मां पार्वती को वह चीजें अर्पित करें। महादेव और मां पार्वती (मां पार्वती के मंत्र) का ध्यान करें। तीज कथा पढ़ें और अंत में आरती उतारें। शाम के समय भी यही विधि दोहरायें। फिर अगले दिन व्रत का पारण करें।
हरतालिका तीज पूजन सामग्री
भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति रखने के लिए एक धातु की थाली, एक चौकी (देवताओं की मूर्तियां रखने के लिए लकड़ी का मंच), चौकी को ढकने के लिए एक साफ कपड़ा, अधिमानतः पीला/नारंगी या लाल। भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियाँ बनाने के लिए प्राकृतिक मिट्टी या रेत। छिलके सहित एक पूरा नारियल, एक कलश जल सहित, कलश के लिए आम या पान के पत्ते। घी, चिराग, अगरबत्ती और धूप, दीपक जलाने के लिए तेल, रुई की बत्ती, कपूर (कपूर), छिलके सहित दो साबुत नारियल (माता पार्वती और भगवान शिव के लिए एक-एक), भगवान शिव और पार्वती के लिए 2 या 5 पान के पत्ते। माता पार्वती और भगवान शिव के लिए सुपारी 2-2 टुकड़े, केला (भगवान शिव और माता पार्वती के लिए दो-दो टुकड़े), दक्षिणा (माता पार्वती और भगवान शिव दोनों के लिए कुछ मुद्रा सिक्के या नकद प्रसाद), भगवान गणेश के लिए फल, पान, सुपारी, नारियल और दक्षिणा का एक सेट, लाल गुड़हल के फूल, दूर्वा घास।
भगवान शिव के लिए आपको निम्नलिखित की आवश्यकता होगी:
विल्व या बेल के पत्ते, केले का पत्ता, धतूरा के फल और फूल, सफेद मुकुट फूल, शमी, सफ़ेद कपड़े का एक ताज़ा टुकड़ा, चंदन, जनेऊ, फल, साबुत नारियल, उसकी भूसी सहित, एक भालू, चंदन। सभी वस्तुओं को एक साथ रखने के लिए एक ट्रे। मेहंदी, काजल, सिन्दूर, बिंदी, कुमकुम, चूड़ियाँ, पैर की अंगुली की अंगूठी (बिछियां). कंघा, आभूषण, कपड़े और अन्य सामान।
तीज पूजन विधि
हरतालिका तीज प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल को सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों को कहा जाता है। यह उस समय को दर्शाता है जब दिन और रात एक साथ होते हैं। भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की हाथ से बनी मूर्तियां रेत और काली मिट्टी से बनानी चाहिए। पूजा स्थल को फूलों से सजाएं और वहां वेदी रखें। इसके बाद वेदी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित करते हुए आपको भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान शिव की षोडशोपचार पूजा शुरू करनी होगी। एक पवित्र घेरे में सजाई गई विवाहित महिलाओं के शुभ प्रतीकों को देवी दुर्गा को अर्पित करना इस पूजा की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा है।
इस पूजा में भगवान शिव को पुरुषों की पारंपरिक पोशाक (धोती और अंगोछा) अर्पित की जाती है। विवाह के इन सभी पवित्र चिन्हों को अपनी सास का आशीर्वाद लेने के बाद ब्राह्मणों को दान कर देना चाहिए।
पूजा के बाद पवित्र कथाएं सुननी चाहिए और रात्रि में जागरण करना चाहिए। अगली सुबह आरती के बाद माता पार्वती को सिन्दूर और खीरे की मिठाई का भोग लगाएं और फिर अपना व्रत समाप्त करें।
माता पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में पाना चाहती थीं ओर इसके लिए वह कठोर तप करने लगीं। मां पार्वती ने कई वर्षों तक निराहार और निर्जल व्रत किया। एक दिन महर्षि नारद आए मां पार्वती के पिता हिमालय के घर पहुंचे और कहा कि आपकी बेटी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं और उन्हीं का प्रस्ताव लेकर मैं आपके पास आया हूं। यह बात सुनकर हिमालय की खुशी का ठिकाना ना रहा और उन्होंने हां कर दिया।
नारद ने संदेश भगवान विष्णु को दे दिया और कहा कि महाराज हिमालय का यह प्रस्ताव अच्छा लगा और वह अपन पुत्री का विवाह आपसे कराने के लिए तैयार हो गए हैं। यह सूचना नारद ने माता पार्वती को भी जाकर सुनाया। यह सुनकर मां पार्वती बहुत दुखी हो गईं और उन्होंने कहा कि मैं विष्णु से नहीं भगवान शिव से शादी करना चाहती हूं। उन्होंने अपनी सखियों से कहा कि वह अपने घर से दूर जाना चाहती हैं और वहां जाकर तप करना चाहती हैं। इस पर उनकी सखियों ने महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर पार्वती को जंगल में एक गुफा में छोड़ दिया। यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। माता पार्वती ने जिस दिन शिवलिंग की स्थापना की वह हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का ही दिन था।
इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया। मां पार्वती की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने मां पार्वती को मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया। अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से परेशान थे। वह पार्वती को ढूंढ़ते हुए उसी गुफा में पहुंच गए। मां पार्वती ने ऐसा करने की पूरी वजह बताई और कहा कि भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया है। इस पर महाराज हिमालय ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और कहा कि मेरी पुत्री को भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा है। इसके बाद ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
प्रेम, समर्पण और त्याग का प्रतीक
ये व्रत प्रेम, समर्पण और त्याग का प्रतीक है इसलिए इस व्रत का बड़ा मान है। जिस वक्त सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, वो दृश्य बहुत ही मार्मिक होता।