आज का व्रत व त्यौहार : आज वाराह चतुर्दशी
न्युज डेस्क (एजेंसी)। आश्विन मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन वराह चतुर्दशी मनायी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्याक्ष नामक दैत्य का संहार करने हेतु भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतार लिया था। इसे भगवान विष्णु का तृतीय अवतार माना जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से भूत बाधा का नाश होता हैं।
वाराह चतुर्दशी कब हैं?
इस वर्ष वाराह चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन 27 अक्टूबर, 2023 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।
वाराह चतुर्दशी का महत्व
भगवान विष्णु के धरती को रसातल से निकालने और हिरणयाक्ष के वध के लिये वाराह अवतार (Varaha Avtaar) लिया था। हिन्दु मान्यता के अनुसार इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से
भूत-प्रेत का भय समाप्त होता हैं। जिन्हे ड़रावने सपने आते हो उन्हे इस दिन पूजन अवश्य करना चाहिये।
भूतबाधा-प्रेतबाधा नष्ट हो जाती हैं।
मनोकामना सिद्ध होती हैं।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती हैं।
किसी के तन्त्र-मंत्र या अभिचार का प्रभाव नष्ट होता हैं।
धन-समृद्धि व आयु में वृद्धि होती हैं।
इस जन्म और पूर्व जन्म के अर्जित पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।
वाराह चतुर्दशी के व्रत एवं पूजन की विधि
आश्विन मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन वाराह चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन करने का विधान हैं। इस दिन भगवान विष्णु के तृतीय अवतार भगवान वाराह की पूजा – अर्चना की जाती हैं।
- वाराह चतुर्दशी के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर पूजास्थान पर एक चौकी बिछाकर उसपर वस्त्र बिछायें और उसपर जल से भरा कलश रखें।
- कलश पर भगवान वाराह की प्रतिमा स्थापित करें।
- भगवान वाराह की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करायें।
- रोली-चावल चढ़ायें, धूप-दीप जलाकर फल-फूल अर्पित करें।
- भगवान को भोग अर्पित करें।
- फिर भगवान वाराह के अवतार की कथा कहें या सुनें।
- तत्पश्चात् वाराह कवच और वाराह स्त्रोत्र का पाठ करें।
- भगवान की आरती करें।
- ब्राह्मण को भोजन करायें और उसे यथाशक्ति दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
- इस दिन एक ही समय भोजन करें। और यथासम्भव भगवान का भजन कीर्तन करें।
- वाराह चतुर्दशी के दिन भगवान वाराह की पूजा इन मंत्र के साथ करें।
ॐ वराहाय नमः।
ॐ सूकराय नमः।
ॐ धृतसूकररूपकेशवाय नमः।
वाराह अवतार की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नी दिति ने हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम के दो पुत्रों को जन्म दिया। वो दोनों दैत्य थे और जन्म लेते ही उन्होने व्यस्क रूप ले लिया। उनके जन्म लेते ही सृष्टि मे अजीब सी हलचल होने लगी। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों बहुत ही शक्तिशाली थे। और उन्होने भगवान ब्रह्माजी की तपस्या करके उन्हे प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त कर लिये थे।
ब्रहमाजी से वरदान पाकर वो दोनों निरन्कुश हो गयें। अपनी शक्ति के अभिमान में उन्होने भगवान और देवताओं का अपमान करना आरम्भ कर दिया। हिरण्याक्ष ने देवलोक पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया। फिर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर रसातल में छिपा दिया। ऐसा करने से सृष्टि में उथल-पुथल मच गयी। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता माँगी।
तब भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण करके पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर रसातल से बाहर निकाला। और उसे अपनी कक्षा में स्थापित किया। यह देखकर हिरण्याक्ष क्रोध के मारे आग-बबूला हो उठा। उसने भगवान वाराह को युद्ध के लिये ललकारा। वाराह अवतार लिये भगवान विष्णु ने उस अहंकारी दैत्य को युद्ध में पराजित करके उसका वध कर दिया।
ऐसी मान्यता है कि हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों दैत्य भाई पूर्वजन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल थे, और एक ऋषि के शाप के कारण ही उन्हे दैत्य योनि मे जन्म लेना पड़ा। इसलिये उनके उद्धार के लिये भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया और उन्हे दानव योनि से मुक्त किया।