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हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए 18 जुलाई को ओरछा से विश्व हिंदू महासंघ निकालेगा राम राज्य संकल्प यात्रा

, राजा के व्यंग्य से आहत रानी, राम को अयोध्या से ओरछा लायीं:: भिखारी प्रजापति

प्रयागराज (एजेंसी). ओरछा का रामराजा सरकार मंदिर , बुंदेली व नागरा शैली का अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर ग्वालियर से 120 किलोमीटर तथा झांसी से 17 किलोमीटर की दूरी पर मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है। बुंदेलखंड की अयोध्या कही जाने वाली यह नगरी बुंदेला राजाओं की राजधानी रही है। बुंदेलखंड की गंगा कही जाने वाली नदी बेतवा के तट पर आल्हा उदल की जीवंत गाथाएं आज भी लोगों के पौरुष व पराक्रम को झंकृत करती रहती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार यहां संवत् 1631 में महाराजा मधुकर शाह जू देव शासन करते थे। राजा कृष्ण भक्त थे तो रानी राम की भक्ति में लीन रहती थीं। एक बार महाराजा मधुकर शाह ने महारानी कुंवरि गणेश को वृंदावन चलने का आग्रह किया । राजा – रानी में कृष्ण व राम को लेकर खूब संवाद चला। राजा के बार-बार वृंदावन चलने से कहने पर रानी की आस्था पर चोट पहुंचने लगी। रानी, राजा से अयोध्या जाने की जिद कर बैठीं। राजा के बार-बार मना करने पर भी रानी राम पर अटल आस्था के नाते टस से मस नहीं हुईं। अंततः राजा ने व्यंग्य बाण छोड़ते हुए कहा कि, यदि राम में तुम्हारी सच्ची भक्ति है, तो अपने राम को ओरछा लाकर दिखाओ। महाराज के व्यंग बाण से आहत महारानी कुंवरि गणेश, राम को अयोध्या से ओरछा लाने के लिए राजमहल से निकल पड़ीं।
अयोध्या पहुंचकर रानी सरयू मैया के तट पर 21 दिनों तक भूखे प्यासे रहकर भगवान राम को पाने की घोर तपस्या कीं , किंतु राम के दर्शन नहीं हुए। रानी को लगा कि भूखे प्यासे अब प्राण निकल जाएगा। बिना राम को साथ लिए मैं ओरछा वापस भी नहीं जा सकती। जग हंसाई की डर से रानी आत्महत्या हेतु सरयू में छलांग लगा दीं। सरयू मैया ने उन्हें डूबने नहीं दिया। दो बार ऐसा ही हुआ । तीसरी बार आत्महत्या हेतु रानी गहरे जल में प्रवेश कर गईं। अचानक उन्हें लगा कि मेरी गोद में कुछ है, और भय के नाते जल्दी जल्दी भागने लगीं। बाहर निकल कर देखती हैं , बालरूप में राम उनकी गोद में पड़े हुए हैं। भक्ति व ममत्व के अद्भुत संयोग से रानी मारे खुशी के उछल पड़ीं। कहीं कि, तुझे ओरछा चलना है । राम ने कहा , मां ! जहां कहो वहां चलूंगा, पर मेरी तीन शर्ते हैं। मां, मेरी पहली शर्त है कि, मैं पुष्य नक्षत्र में आपकी गोदी में चलूंगा और आपको पैदल ही चलना होगा । दूसरी शर्त है, जहां आप मुझे गोद से उतार देंगी ,मैं वहीं रहूंगा, वहां से हटूंगा नहीं। तीसरी शर्त है , ओरछा में मैं राजा के रूप में रहूंगा । मेरे विराजमान होने के बाद ओरछा का कोई राजा नहीं होगा। रानी कुंवरि गणेश बाल रूप भगवान की तीनों शर्ते मान गईं।
पुष्य नक्षत्र में राम को गोद में लेकर रानी अयोध्या से पैदल चल पड़ीं । 8 महीने 27 दिन में ओरछा राज्य पहुंचीं। राम के ओरछा आगमन की बात सुनते ही महाराजा मधुकर शाह ने राम के निवास के लिए भव्य चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर को भव्य रुप देना बाकी था। इसलिए महारानी ने तब तक के लिए भगवान राम को अपनी रसोई के बगल में ही ठहराया। भव्य मंदिर बन जाने के बाद अपनी शर्त के अनुसार भगवान चतुर्भुज मंदिर में नहीं गए। मंदिर सूना रहा। यहां पर भगवान विष्णु का चतुर्भुज रूप विराजमान हुआ । शर्त के अनुसार अंग्रेजी शासन में भी ओरछा राज्य में रामराजा सरकार का ही शासन चलता रहा और तब से अब तक उन्हीं की सरकार चल रही है। दुनिया का एकमात्र यह ऐसा मंदिर है जहां आज भी राम को राजा मानकर चार बार आरती की जाती है। सशस्त्र सैनिकों द्वारा उन्हें नित्य प्रति चार बार गॉड ऑफ आनर दिया जाता है। मंदिर के चौखट पर 444 साल का इतिहास लिखा है । एक शिलालेख पर यह भी लिखा है कि,
* मधुकर शाह महाराज की, महरानी कुंवरि गणेश।
अवधपुरी से ओरछा ,
लायीं कुंवरि गणेश *
रामराजा सरकार के समक्ष डीएम , सीएम, पीएम या देसी विदेशी कोई कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो, अपने को उनसे बड़ा नहीं मानता, इसीलिए वह लाल बत्ती गाड़ी से यहां नहीं आता । यहां बेल्ट कसकर अर्थात राजा के सामने कोई अकड़बाजी नहीं दिखा सकता। यह राजा का अपमान है। इसलिए पुलिस यहां बहुत सख्त रहती है। रामराजा सरकार में चोरी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, अन्याय ,अत्याचार दूर-दूर तक नहीं सुनाई देते।
लोक प्रचलित है कि,भगवान राम के दो खास निवास स्थान हैं। एक अयोध्या दूसरा ओरछा।राजाराम दिन भर ओरछा में रहते हैं। सोने के लिए रात अयोध्या चले जाते हैं । प्रतिदिन रात्रि में संध्या आरती के बाद ज्योति निकलती है,जो कीर्तन भजन गायक मंडली, साधु संतों व भक्तों के साथ पास ही पाताली हनुमान मंदिर ले जाई जाती है। जहां से राम भक्त हनुमान, राम ज्योति को शयन के लिए अयोध्या ले जाते हैं। यह हनुमान जी का प्रतिदिन का कार्य है । इसीलिए लोग कहते हैं कि,
* दिवस ओरछा रहत हैं,
शयन अयोध्या वास।*
लोग कहते हैं कि,इतिहास अपने को दुहराता भी है । ओरछा को ओरछा धाम बनाने वाली महारानी कुंवरि गणेश की निष्ठा, आस्था, त्याग व सर्वस्व न्योछावर करने की भावना पर अब तक किसी की नजर नहीं गयी। इस पर पहली बार किसी की नजर गई तो वह हैं, श्री सिद्धेश्वर सिद्धपीठ झांसी के श्री महंत 1008 डॉ हरिओम पाठक । विश्व हिंदू महासंघ उत्तर प्रदेश के धर्माचार्य प्रदेश अध्यक्ष श्री महंत डॉ पाठक जी के नेतृत्व में 18 जुलाई को सायंकाल ओरछा धाम से निकलने वाली रामराज्य संकल्प यात्रा 21 जुलाई को अयोध्या में सम्पन्न होगी।
इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य हिंदुत्व पुनर्जागरण अभियान के महानायक, लोक सन्यासी योगी आदित्यनाथ जी महाराज को वह शक्ति प्रदान करना है , जिससे उन्हें भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने व रामराज्य के संकल्प को पूरा करने में मद मिल सके । चार दिवसीय इस पहली ऐतिहासिक यात्रा में आपको आपका सौभाग्य खींच कर लाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
धन्यवाद ।

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