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रात की नींद में रंगीन या तेज़ लाइटें : स्वास्थ्य पर बुरा असर, शोध में खुलासा

हेल्थ न्युज (एजेंसी)। आजकल बहुत से लोग रात में अपने बेडरूम में तरह-तरह की रंगीन या तेज़ आर्टिफिशियल लाइटें जलाकर सोना पसंद करते हैं। इस ट्रेंड के कारण बाज़ार में ऐसी लाइट्स की मांग काफी बढ़ गई है। लेकिन, अगर आप भी उन्हीं लोगों में से हैं जो रात को रोशनी में सोते हैं, तो यह आदत आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।

हाल ही में हुए एक वैज्ञानिक अध्ययन से पता चला है कि रात में कृत्रिम रोशनी (artificial light) में सोने से हमारे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह रिसर्च अमेरिका में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है। उन्होंने विशेष रूप से सोते समय विभिन्न प्रकार की लाइट्स से होने वाले संभावित खतरों पर अध्ययन किया है।

रिसर्च के मुख्य निष्कर्ष

शोध में सामने आया कि यदि कोई व्यक्ति सिर्फ एक रात भी कृत्रिम रोशनी में सोता है, तो इससे उसके शरीर में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने लगता है। यह स्थिति मेटाबॉलिज्म को बिगाड़ सकती है और हृदय रोग, डायबिटीज (मधुमेह), और मेटाबॉलिक सिंड्रोम जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे को बढ़ा सकती है।

वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि रात की नींद के दौरान आर्टिफिशिअल लाइट का संपर्क शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस को बढ़ा सकता है और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को सामान्य से अधिक सक्रिय कर सकता है। इस अध्ययन ने कृत्रिम रोशनी और मेटाबॉलिक विकारों के बीच सीधा संबंध स्थापित किया है।

अध्ययन की प्रक्रिया

इस शोध में 20 स्वस्थ वयस्कों को शामिल किया गया था। उन्हें दो समूहों में बांटा गया:

तेज़/कृत्रिम रोशनी वाला कमरा: 10 लोगों को एक रात के लिए इस कमरे में सुलाया गया।

धीमी रोशनी वाला कमरा: बाकी 10 लोगों को एक रात के लिए इस कमरे में सुलाया गया।

दोनों समूहों का एक रात के बाद आकलन किया गया।

परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन

इंसुलिन प्रतिरोध : तेज़ रोशनी वाले कमरे में सोने वाले लोगों के इंसुलिन प्रतिरोध में 15% की वृद्धि देखी गई (इंसुलिन रेजिस्टेंस का बढ़ना अच्छा नहीं माना जाता), जबकि कम रोशनी वाले कमरे में सोने वालों में यह वृद्धि केवल 4% थी।

इंसुलिन संवेदनशीलता: तेज़ रोशनी वाले कमरे में सोने वालों की इंसुलिन संवेदनशीलता में 16% की कमी दर्ज की गई, जबकि धीमी रोशनी वाले कमरे में सोने वालों में 3% की मामूली बढ़त देखी गई।

इंसुलिन स्तर: हालांकि दोनों समूहों के ब्लड शुगर लेवल में बड़ा अंतर नहीं था, लेकिन तेज़ रोशनी में सोने वाले लोगों के इंसुलिन के समग्र स्तर में वृद्धि पाई गई।

नींद की गुणवत्ता पर असर

शोध के एक सप्ताह बाद नींद की गुणवत्ता का भी विश्लेषण किया गया। यह पाया गया कि सोने की अवधि या समय में कोई खास अंतर नहीं था। हालांकि, स्लीप मैक्रोस्ट्रक्चर के विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि तेज़ रोशनी वाले कमरे में सोने वाले प्रतिभागियों की नींद की गुणवत्ता (Quality of Sleep) कम रोशनी वाले कमरे में सोने वालों की तुलना में खराब थी।

निष्कर्ष और सुझाव

इस शोध का निष्कर्ष है कि रात में सोते समय कृत्रिम रोशनी न्यूरोलॉजिकल सिस्टम को उत्तेजित करके कार्डियोमेटाबॉलिक (हृदय और मेटाबॉलिज्म से संबंधित) कार्यों को बदल देती है। यह निष्कर्ष उन शहरी आबादी के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां इनडोर और आउटडोर दोनों तरह की रोशनी में लगातार वृद्धि हो रही है।

शोधकर्ता सलाह देते हैं कि अगर लोग रात में सोते समय रोशनी को कम करते हैं या बिल्कुल बंद रखते हैं, तो इससे उनकी नींद की गुणवत्ता सुधर सकती है और उन्हें बेहतर स्वास्थ्य लाभ मिल सकता है।

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