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इलेक्ट्रिक वाहनों पर लागू नहीं होगा EoL नियम! 15 साल के बाद भी सड़क पर चल सकेंगे

नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ाने और उनके इस्तेमाल को आम बनाने के लिए सरकार कुछ अहम फैसले करने जा रही है। इनमें सबसे बड़ी खबर यह है कि जल्द ही सरकार यह स्पष्ट कर सकती है कि पुराने वाहनों को 15 साल बाद खत्म करने का नियम इलेक्ट्रिक वाहनों पर लागू नहीं होगा। इसका मतलब है कि इलेक्ट्रिक बसें, कारें और ट्रक 15 साल के बाद भी सड़क पर चल सकेंगी।

बड़े वाहनों पर सख्त नियम, EVs को छूट

एक खबर के मुताबिक बिजली मंत्रालय जल्द ही CAFE नियमों को भी शहरी माल ढोने वाले वाहनों, ट्रकों और बसों तक बढ़ाने की तैयारी कर रहा है। CAFE नियम वे नियम हैं, जिनका मकसद ईंधन की खपत और CO2 उत्सर्जन को कम करना है। ये कदम नीति आयोग के सदस्य राजीव गौबा की अध्यक्षता में हुई एक उच्चस्तरीय बैठक में तय किए गए।

इस बैठक में देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के धीमे प्रसार पर चिंता जताई गई। 2024 में EVs की हिस्सेदारी महज 7.6% थी, जबकि 2030 तक 30% का लक्ष्य रखा गया है। दोपहिया, तिपहिया और बसों में EVs का प्रसार बेहतर है, लेकिन चार पहिया वाहनों (कारों) में यह धीमा है और इलेक्ट्रिक ट्रक तो अभी शुरू भी नहीं हुए हैं।

पुरानी बसों से मिली सीख

सड़क परिवहन सचिव वी उमाशंकर ने बैठक में बताया कि ज्यादातर 15 साल से ज्यादा पुरानी बसें निजी मालिकों की हैं। इस पर नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने सुझाव दिया कि अगर 15 साल के EoL नियम को इलेक्ट्रिक वाहनों पर लागू नहीं किया जाए, तो इससे उनकी बिक्री बढ़ सकती है।

उमाशंकर ने यह भी कहा कि ईवी अपनाने का अनिवार्य आदेश (मैंडेट) उन जगहों पर सबसे अच्छा काम करता है जहां कुछ हद तक ईवी का प्रसार और उनके लिए जरूरी ढांचा (इकोसिस्टम) पहले से मौजूद हो।

प्रोत्साहन से आगे बढ़कर अनिवार्यता की ओर

सूत्रों के मुताबिक, तेजी से ईवी अपनाने के लिए प्रोत्साहन (इंसेंटिव) देने की नीति से आगे बढ़कर अनिवार्यता (मैंडेट) लागू करने और जो ईवी नहीं अपनाएंगे उनके लिए नुकसान (डिसइंसेंटिव) पैदा करने पर सहमति बनी। इसके अलावा, पांच शहरों में बसों, पैरा-ट्रांजिट (ऑटो, ई-रिक्शा जैसे) और शहरी माल ढोने वाले वाहनों को पूरी तरह इलेक्ट्रिक (सैचुरेशन) करने की रणनीति पर भी चर्चा हुई।

चार्जिंग, बैटरी और पैसे की चुनौती का समाधान जरूरी

एक सूत्र ने बताया कि चार्जिंग ढांचे का तेजी से विस्तार करने, फास्ट चार्जर लगाने, आयात पर निर्भरता कम करने के लिए नई बैटरी तकनीक विकसित करने और इलेक्ट्रिक बसों व ट्रकों के लिए आसान वित्त (कर्ज) उपलब्ध कराने की जरूरत पर सभी एकमत थे। इस बैठक के कुछ दिन बाद, वित्त मंत्रालय ने बैंकों के साथ बातचीत की।

बैंक ईवी को कर्ज देने में हिचकिचा रहे हैं और उन पर ब्याज दरें भी ज्यादा हैं। वित्तीय सेवा सचिव एम नागराजू की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में बैंकों ने सरकार से बैटरियों को मानक बनाने, वाहनों की लागत कम करने और नई बैटरी खरीदने के लिए कुछ प्रोत्साहन देने का आग्रह किया। उनका तर्क था कि बैटरी आमतौर पर 6-7 साल में बदलनी पड़ती है और यह ईवी की कुल लागत का 40-50% हिस्सा होती है।

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