लघु वनोपजों से आत्मनिर्भरता की राह : हरित विकास का रोडमैप

रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने लघु वनोपजों के माध्यम से राज्य के हरित विकास और ग्रामीणों की आत्मनिर्भरता के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया है।
वन प्रबंधन और संग्राहक हित
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में आयोजित कलेक्टर और डीएफओ (District Forest Officer) की संयुक्त कॉन्फ्रेंस में वन प्रबंधन, तेंदूपत्ता संग्राहकों के कल्याण, वनोपज के मूल्य संवर्द्धन (Value Addition), ईको-टूरिज्म, औषधीय पौधों की खेती और वन आधारित आजीविका के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई।
तेंदूपत्ता संग्राहकों की सफलता: मुख्यमंत्री ने बताया कि तेंदूपत्ता संग्राहकों की संख्या 12 लाख से अधिक हो चुकी है, जिसे उन्होंने सामूहिक प्रयासों की सफलता का प्रमाण बताया। उन्होंने सभी अधिकारियों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी।
पारदर्शिता और कंप्यूटरीकरण: जिला अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए कि तेंदूपत्ता संग्राहकों का भुगतान 7 से 15 दिनों के भीतर सुनिश्चित किया जाए। भुगतान की जानकारी सीधे एसएमएस के माध्यम से संग्राहकों को भेजी जाएगी ताकि पारदर्शिता बनी रहे। लगभग 15.60 लाख संग्राहकों की जानकारी ऑनलाइन दर्ज हो चुकी है और सभी भुगतान बैंक खातों के माध्यम से किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने तेंदूपत्ता संग्रहण प्रक्रिया के पूर्ण कंप्यूटरीकरण की पहल को गति देने के निर्देश दिए।
वन आवरण में वृद्धि: श्री साय ने बताया कि प्रदेश का वन आवरण अब 46 प्रतिशत हो गया है, जो लगभग दो प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। उन्होंने इस उपलब्धि के लिए कैम्पा योजना और ‘एक पेड़ मां के नाम’ जैसी नवाचारी पहलों के योगदान को रेखांकित किया।
आगामी सीजन की तैयारी: बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर जिलों में पिछले सीजन के तेंदूपत्ता संग्रहण की समीक्षा की गई और आगामी सीजन के लिए पूर्व-कार्ययोजना समय पर तैयार करने के निर्देश दिए गए।
लघु वनोपज का मूल्य संवर्द्धन और आजीविका
मुख्यमंत्री श्री साय ने जोर देकर कहा कि वनोपज का अधिकतम मूल्य संवर्द्धन करना समय की मांग है।
वन धन केंद्र: उन्होंने ग्रामीणों की आय बढ़ाने और उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर करने के लिए राज्य में वन धन केंद्रों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।
स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन: बैठक में लघु वनोपज आधारित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने और वन धन केंद्रों को मजबूत बनाने पर विचार-विमर्श हुआ, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल सके।
स्थानीय उत्पादों का प्रचार: ‘छत्तीसगढ़ हर्बल’ और ‘संजीवनी ब्रांड’ के उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर विशेष ध्यान दिया गया। निर्देश दिए गए कि इन उत्पादों की बिक्री ग्रामीण और शहरी दोनों बाजारों में बढ़ाई जाए, जिससे स्थानीय उत्पादों के लिए एक मजबूत मार्केट नेटवर्क बने। उत्पादों के जैविक प्रमाणीकरण (Organic Certification) की प्रक्रिया को भी जल्द पूरा करने पर जोर दिया गया।
अधिक वनोपजों की खरीदी: वन मंत्री श्री केदार कश्यप ने बताया कि राज्य सरकार अब 75 प्रकार की लघु वनोपजों की खरीदी करने जा रही है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मजबूती मिलेगी।
लाख उत्पादन में प्रथम स्थान का लक्ष्य: मंत्री ने यह भी बताया कि लाख उत्पादन में छत्तीसगढ़ देश में दूसरे स्थान पर है, और यदि ठोस कार्ययोजना के साथ काम किया जाए तो प्रदेश जल्द ही प्रथम स्थान प्राप्त कर सकता है।
औषधीय पौधों की खेती और ईको-टूरिज्म
खेती का विस्तार: औषधीय पौधों की खेती के विस्तार के लिए प्रचार-प्रसार गतिविधियों को बढ़ाने और इसके लिए कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के मैदानी अमले की सहायता लेने पर भी चर्चा हुई।
नई पहल: औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए। बताया गया कि यह खेती न केवल आजीविका बढ़ाएगी, बल्कि पारंपरिक उपचार पद्धतियों के ज्ञान को भी आगे बढ़ाएगी। धमतरी, मुंगेली और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (जीपीएम) जिलों के डीएफओ को इससे संबंधित विस्तृत जानकारी दी गई।
ईको-टूरिज्म: वन मंत्री श्री कश्यप ने कहा कि बस्तर और सरगुजा संभागों में ईको-टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसे आजीविका से जोड़ने के लिए एक ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
वन मंत्री श्री कश्यप ने पहली बार ऐसी संयुक्त बैठक आयोजित करने के लिए मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय का आभार व्यक्त किया और कहा कि सभी कलेक्टर और वन अधिकारी समन्वय से कार्य करें तो इसके उत्कृष्ट परिणाम सामने आएंगे।
















