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मास्टर स्ट्रोक ही मास्टर स्ट्रोक! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

फटाफट क्रिकेट के आइपीएल सीजन का मोदी जी पर खूब रंग चढ़ा लगता है। तभी तो मास्टर स्ट्रोक पर मास्टर स्ट्रोक लगाए जा रहे हैं। बताइए, जापान-आस्ट्रेेलिया वगैरह की यात्रा पर मुश्किल से पांच छ: दिन के लिए गए होंगे। फिर भी जाते-जाते मास्टर स्ट्रोक पर मास्टर स्ट्रोक लगाते गए। एक नहीं, दो नहीं, कम से कम तीन-तीन मास्टर स्ट्रोक। और तीनों मास्टर स्ट्रोक, एक से बढक़र एक। बेशक, पब्लिक से पूछो तो शायद सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक नोटबंदी-2 को ही बताएगी। पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार से और संविधान के जानकारों से पूछो तो, दिल्ली के प्रशासन के मामलों से संबंधित अध्यादेश भी मोदी जी के दूसरे किसी मास्टर स्ट्रोक से घटकर नहीं है। और किरण रिजिजू को अगर कभी मुंह खोलने का मौका मिल गया, तो पक्का जानिए कि बंदा असली मास्टर स्ट्रोक अपने हाथ से कानून मंत्रालय छुड़ाए जाने और पृथ्वी का मंत्रालय थमाए जाने को ही कहेगा। कानून के आसमान से बंदे को पृथ्वी पर उतारा सो उतारा, पर चार दर्जन मंत्रियों में से एक बंदे के पर कतरने को भी क्या कोई मंत्रिमंडल मेें फेरबदल कहकर गिनवाता है। और ये तो वो मास्टर स्ट्रोक हुए, जो बिना याददाश्त पर जरा सा डोर डाले हमें याद आ रहे हैं। जो जरा सी छान-बीन करवाएंगे, मई के महीने के ही मोदी जी के दो-चार मास्टर स्ट्रोक तो खोज ही लाएंगे।

पर जैसे रिजिजू पर गाज बनकर गिरे मास्टर स्ट्रोक का असली कमाल रिजिजू को धरती दिखाने में ही नहीं, उसे मंत्रिमंडल में फेरबदल कहलवाने में है, उसी तरह नोटबंदी-2 में असली मास्टर स्ट्रोक, सात साल में दूसरी बार नोटबंदी किए जाने में ही नहीं, एक बार फिर नोटबंदी कर के भी उसे नोटबंदी नहीं, कुछ और मनवाना चाहने में है। यह सुपर-डुपर मास्टर स्ट्रोक नहीं तो और क्या है कि गोदी मीडिया बहसों पर बहसें करा रहा है कि ये जिसे नोटबंदी-2 कहा जा रहा है, यह नोटबंदी जैसी चीज दीखती जरूर है, पर है कुछ और। यह नोटबंदी की नकल से लेकर फेक नोटबंदी तक कुछ भी हो सकती है। यह ठीक-ठीक है क्या, यह भांति-भांति के विद्वानों के बीच विस्तृत छानबीन का विषय है। पर इतना पक्का है कि यह नोटबंदी नहीं है। और जब नोटबंदी ही नहीं है तो, पब्लिक की चिंताएं, परेशानियां, सब की बात करना ही बेमानी है। और तो और दो हजार का नोट तक बंद नहीं किया जा रहा है, उसे सिर्फ चलन से हटाया जा रहा है। यानी दो हजार का नोट बाकायदा नोट रहेगा, बस एक खास तारीख के बाद से बैंक, बाजार, लेन-देन वगैरह में चलेगा नहीं। इस बार मोदी जी ने नोटबंदी का नाम ही बदल दिया है। अब करते रहें लोग नोटबंदी का विरोध। नोटबंदी तो है ही नहीं।

दिल्ली के प्रशासन से संबंधित अध्यादेश वाला मास्टर स्ट्रोक भी, नोटबंदी वाले से किसी तरह पीछे नहीं है। अध्यादेश एकदम चमत्कारी है, जिसमें एक बार भी नहीं कहा गया है कि दिल्ली का बॉस लैफ्टीनेंट गवर्नर को बनाया जा रहा है, फिर भी उसी को दिल्ली का बॉस बनाया गया है। और वह भी कोई चोरी-छिपे नहीं, खुल्लम खुल्ला और सुप्रीम कोर्ट को अंगूठा दिखाते हुए, एलजी को जबर्दस्ती दिल्ली का बॉस बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट उखाड़ ले, जो उखाडऩा हो। पब्लिक किसी को भी चुनती रहे, बॉस तो वही बनेगा जिसे मोदी जी बनाएंगे। और अदालत का डर उन्हें कोई न दिखाए, न पब्लिक की अदालत का और न जजों वाली अदालत का। दिल्ली की चुनी हुई सरकार जब सात साल मुकद्दमा लडक़र भी उनसे जीत नहीं पायी, तो और चौहद-पंद्रह साल में भी क्या कर लेगी।

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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