ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग

दिनांक – 04 जुलाई 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण (गुजरात, महाराष्ट्र में आषाढ़)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – प्रतिपदा दोपहर 01:38 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र – पूर्वाषाढ़ा सुबह 08:25 तक तत्पश्चात उत्तराषाढ़ा
योग – इन्द्र सुबह 11:50 तक तत्पश्चात वैधृति
राहु काल – शाम 04:07 से 05:48 तक
सूर्योदय – 05:59
सूर्यास्त – 07:29
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:35 से 05:17 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:23 से 01:05 तक

व्रत पर्व विवरण – श्रावण मासारम्भ, विद्यालाभ योग
विशेष – प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है ।द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

श्रावण में उपवास का महत्त्व
(श्रावण मास : 4 जुलाई से 31 अगस्त)

भारतीय संस्कृति में पर्व और त्यौहारों की बड़ी सुंदर व्यवस्था की गयी है । श्रावण मास में उपवास का महत्त्व अधिक है क्योंकि इस महीने में धरती पर सूर्य की किरणें कम पड़ती हैं जिससे पाचनतंत्र कमजोर होता है । अगर इन दिनों में अधिक भोजन किया जाय तो अपच और अजीर्ण हो सकता है, जिसके फलस्वरूप बुखार आने की संभावना रहती है । इसीलिए श्रावण मास में एक बार खाने का विधान किया गया है ।

अन्न में मादकता होती है । इसमें भी एक प्रकार का नशा होता है । भोजन के बाद आलस्य के रूप में इस नशे का प्रायः सभी लोग अनुभव करते हैं । पके हुए अन्न के नशे में एक प्रकार की पार्थिव शक्ति निहित होती है, जो पार्थिव शरीर का संयोग पाकर दुगनी हो जाती है । इस शक्ति को शास्त्रकारों ने ‘आधिभौतिक शक्ति’ कहा है ।

इस शक्ति की प्रबलता से वह ‘आध्यात्मिक शक्ति’ जो हम पूजा-उपासना के माध्यम से एकत्र करना चाहते हैं, नष्ट हो जाती है । अतः भारतीय महर्षियों ने सम्पूर्ण आध्यात्मिक अनुष्ठानों में उपवास का प्रथम स्थान रखा है ।

विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।

गीता के अनुसार उपवास विषय-वासना से निवृत्ति का अचूक साधन है । अतः शरीर, इन्द्रियों और मन पर विजय पाने के लिए ‘जितासन’ और ‘जिताहार’ होने की परम आवश्यकता है ।

‘अर्ध रोगहरि निद्रा सर्व रोगहरि क्षुधा’ के अनुसार आयुर्वेद तथा आज का विज्ञान – दोनों का एक ही निष्कर्ष है कि व्रत और उपवासों से जहाँ अनेक शारीरिक व्याधियाँ समूल नष्ट हो जाती हैं, वहीं मानसिक व्याधियों के शमन का भी यह एक अमोघ उपाय है । इसलिए भूख से थोड़ा कम खाने का और कभी-कभी उपवास करने का विधान है । उपवास अर्थात् पूरे दिन गुनगुने (न ठंडा न विशेष गर्म) पानी के सिवाय कुछ भी नहीं खायें-पियें ।

१५ दिन में १ दिन एकादशीको व्रत रखना ही चाहिए । इससे आमाशय, यकृत और पाचनतंत्र को विश्राम मिलता है तथा उनकी स्वतः ही सफाई हो जाती है । इस प्रक्रिया से पाचनतंत्र मजबूत हो जाता है तथा व्यक्ति की आन्तरिक शक्ति, मानसिक शक्ति के साथ-साथ उसकी आयु भी बढ़ती है ।

 विद्यालाभ योग – 04 जुलाई 2023 

विद्यालाभ के लिए मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वाग्वादिनि सरस्वति मम जिह्वाग्रे वद वद ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा ।’

महाराष्ट्र, गुजरात आदि जहाँ अमावस्या को माह का अंत माना जाता है वहाँ ४ जुलाई को सुबह ८:२५ से रात्रि ११:४५ बजे तक १०८ बार मंत्र जप लें और रात्रि ११ से १२ बजे के बीच जीभ पर लाल चंदन से ‘ह्रीं’ मंत्र लिख दें ।

जिसकी जीभ पर यह मंत्र इस विधि से लिखा जायेगा उसे विद्यालाभ व अद्भुत विद्वत्ता की प्राप्ति होगी ।

श्रावण मास में वरदानस्वरूप बेलपत्र

श्रावण मास भगवान शिवजी की पूजाउपासना के लिए महत्त्वपूर्ण मास है । इन दिनों में शिवजी को बेल के पत्ते चढ़ाने का विधान हमारे शास्त्रों में है । इसके पीछे ऋषियों की बहुत बड़ी दूरदर्शिता है । इस ऋतु में शरीर में वायु का प्रकोप तथा वातावरण में जल-वायु का प्रदूषण बढ़ जाता है । आकाश बादलों से ढका रहने से जीवनीशक्ति भी मंद पड़ जाती है । इन सबके फलस्वरूप संक्रामक रोग तेज गति से फैलते हैं ।

इन दिनों में शिवजी की पूजा के उद्देश्य से घर में बेल के पत्ते लाने से उसके वायु शुद्धिकारक, पवित्रतावर्धक गुणों का तथा सेवन से वात व अजीर्ण नाशक गुणों का भी लाभ जाने-अनजाने में मिल जाता है । उनके सेवन से शरीर में आहार अधिकाधिकरूप में आत्मसात् होने लगता है । मन एकाग्र रहता है, ध्यान केन्द्रित करने में भी सहायता मिलती है । परीक्षणों से पता चला है कि बेल के पत्तों का सेवन करने से शारीरिक वृद्धि होती है । बेल के पत्तों को उबालकर बनाया गया काढ़ा पिलाने से हृदय मजबूत बनता है ।

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