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बिहार चुनाव में सीएम उम्मीदवारी की रस्साकशी : तेजस्वी ने खुद संभाली कमान

नई दिल्ली (एजेंसी)। बिहार में महागठबंधन ने वोटर लिस्ट के संशोधन का विरोध करते हुए सड़क पर उतरकर एक आंदोलन शुरू किया। इस दौरान, राहुल गांधी की अगुवाई में 17 अगस्त को शुरू हुई वोटर अधिकार यात्रा में उम्मीद थी कि कांग्रेस महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर तेजस्वी यादव के नाम पर मुहर लगा देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

सासाराम से शुरू हुई यह यात्रा पटना पहुंचकर समाप्त हो गई, लेकिन सीएम चेहरे का सवाल वहीं का वहीं बना रहा। जब भी राहुल गांधी से यह सवाल पूछा गया, उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया और कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले।

राहुल गांधी की खामोशी को देखते हुए, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने खुद ही मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने यात्रा के आखिरी चरण में खुद ही मुख्यमंत्री पद के लिए माहौल बनाने की कोशिश की। इस तरह तेजस्वी और राहुल के बीच एक तरह का राजनीतिक शह-मात का खेल चलता रहा।

तेजस्वी ने खुद दी अपनी उम्मीदवारी को हवा

वोटर अधिकार यात्रा के समापन से पहले पटना के डाक बंगला चौराहे पर एक जनसभा में तेजस्वी यादव ने कहा, “आपको यह तय करना है कि आपको असली मुख्यमंत्री चाहिए या नकली मुख्यमंत्री।” उन्होंने यह भी कहा कि जब लालू यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवाया था, तो उनका बेटा तेजस्वी किसी एफआईआर से डरने वाला नहीं है।

इससे पहले भी वह अखिलेश यादव और राहुल गांधी की मौजूदगी में यह बात कह चुके थे। कांग्रेस के रुख को देखते हुए, तेजस्वी ने अपने समर्थकों को साधने के लिए खुद ही राजनीतिक दांव खेलना शुरू कर दिया।

यादव समुदाय को साधने की कोशिश

तेजस्वी ने अपने भाषण में भगवान कृष्ण का नाम लिए बिना कहा कि उनके भगवान का जन्म भी जेल में हुआ था। यह सब यादव मतदाताओं को आरजेडी के पाले में बनाए रखने की एक कोशिश मानी जा रही है। यादव समुदाय खुद को कृष्ण का वंशज मानता है।

यादव समुदाय यदु वंश से जुड़े होने के कारण यदुवंशी कहलाते हैं, और लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह जैसे नेता भी खुद को कृष्ण का वंशज बताते रहे हैं। कृष्ण का जिक्र करके तेजस्वी ने एक तरह से यादव समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की।

तेजस्वी के नाम पर कांग्रेस की चुप्पी

राहुल गांधी बिहार चुनाव में महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर हर सवाल से बचते रहे। तेजस्वी ने तो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की बात भी कह डाली, लेकिन इसके बावजूद राहुल गांधी सीएम चेहरे के लिए उनके नाम से बचते रहे। कांग्रेस इस चुनाव में तेजस्वी के नाम पर अपने पत्ते नहीं खोल रही है।

कांग्रेस का पूरा ध्यान गैर-यादव ओबीसी और दलितों को अपने साथ जोड़ने पर है। यह भी एक कारण था कि राहुल गांधी और कांग्रेस ने आखिरी समय में यात्रा के समापन का कार्यक्रम बदल दिया। यात्रा का समापन पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा के साथ होना था, लेकिन इसे रद्द कर दिया गया।

इसके बजाय, यह तय हुआ कि गांधी मैदान से अंबेडकर पार्क तक पैदल मार्च के बाद यात्रा समाप्त होगी। यात्रा जब सीवान पहुंची, तभी शायद तेजस्वी को यह समझ आ गया था कि उन्हें अपने लिए खुद ही माहौल बनाना होगा, और यात्रा के आखिरी चरण में ऐसा ही होता भी नजर आया।

तेजस्वी को क्यों खुद संभालनी पड़ी कमान?

सीवान में लेफ्ट के दीपांकर भट्टाचार्य का दिवंगत चंद्रशेखर का नाम लेना भी तेजस्वी के लिए असहज करने वाला हो सकता था। कांग्रेस ने इस वीडियो को अपने एक्स हैंडल से भी पोस्ट किया था। दरअसल, जेएनयू छात्रसंघ के दो बार अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर की 1997 में सीवान में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिसका आरोप शहाबुद्दीन पर लगा था, और उनके बेटे के आरजेडी से चुनाव लड़ने की चर्चा है।

सीवान से आगे बढ़ने के बाद शायद तेजस्वी यादव को यह समझ आ गया कि अगर उन्हें अपने लिए माहौल बनाना है, तो कमान खुद ही संभालनी पड़ेगी। सारण पहुंचने के बाद उन्होंने ऐसा ही किया। उन्हें यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव का भी पूरा साथ मिला, जिन्होंने राहुल गांधी और महागठबंधन के अन्य नेताओं की मौजूदगी में तेजस्वी का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे किया।

अखिलेश यादव ने यहां तक कह दिया कि तेजस्वी से बेहतर सीएम बिहार में कोई नहीं हो सकता।

तेजस्वी के चेहरे पर क्यों है कशमकश?

आरजेडी ने तेजस्वी यादव को सीएम का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, लेकिन कांग्रेस अभी तक इसके लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस का कहना है कि महागठबंधन में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी का नेता ही मुख्यमंत्री बनेगा।

कांग्रेस तेजस्वी के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती। उनका तर्क है कि ऐसा करने पर यादव वोटों को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियां उन्हें वोट नहीं देंगी। कांग्रेस ने यह बात दिल्ली की मीटिंग में तेजस्वी को भी सीधे तौर पर बता दी थी। उन्होंने यह आश्वासन जरूर दिया कि अगर सरकार बनाने का मौका मिलता है, तो तेजस्वी मुख्यमंत्री बन सकते हैं, लेकिन चुनाव में उनके नाम की घोषणा करके लड़ना जोखिम भरा कदम होगा।

कांग्रेस को यह भी लग रहा है कि अगर इंडिया गठबंधन तेजस्वी को आगे करके चुनावी मैदान में उतरता है, तो सवर्ण जाति के वोट उनसे छिटक सकते हैं। कांग्रेस के इस फॉर्मूले से तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी सहमत नहीं है, यही वजह है कि तेजस्वी ने खुद ही अपने चेहरे को पेश करके सियासी दांव खेलने शुरू कर दिए हैं।

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