वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ‘सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल’ रमन की हो या हो भूपेश सरकार बेईमान, भ्रष्टाचारियों के आगे सभी हैं लाचार
‘‘एक भरे-पूरे परिवार में दादा होता है, बाप होता है, मां होती है और बच्चे होते हैं। आम तौर पर बच्चे बुरी चीजों की तरफ लालायित होते हैं। उन्हें चाॅकलेट चाहिये, आईसक्रीम चाहिये जिससे उन्हें मजा तो आता है पर स्वास्थ्य खराब होता है। वे खाना न खाकर मिठाई खाना पसंद करते हैं। बच्चों की कोई बात न मानो तो बत्तमीजी भी करते हैं। ऐसे में मां-बाप बच्चे की अनुचित जिद को अस्वीकार करते हैं, उसे रोने देेते हैं। बच्चे की भलाई के लिये कभी उसकी पिटाई भी कर देते हैं। लेकिन बच्चे का दादा उसे हमेशा लाड़ करता है। बच्चे को अपनी अनुचित बात मनानी हो तो वो तत्काल दादा का सहारा लेता है। जाहिर है दादा के लाड़-प्यार से बच्चा बिगड़ता ही है। आप भी प्रदेश के दादा हैं, पितामह हैं और ब्यूरोक्रेटस् हमारे प्रदेश परिवार के बच्चों की तरह हैं। और ये बच्चे आपके लाड़ से बिगड़ रहे हैं। मनमानी कर रहे हैं।’’ तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ रमनसिंह के मुख्य आतिथ्य में संपन्न एक कार्यक्रम में संचालन के दौरान मैने मंच पर उनसे ये बातें कही थीं। जिस पर उपस्थित पत्रकार मित्रों ने बधाई और दाद दी।
भाजपा के उपस्थित अन्य नेताओं को ये नागवार गुजरी लेकिन उपरी तौर पर उन्होंने बधाई दी। पत्रकारों का कहना था कि ऐसा आईना दिखाने के लिये साहस चाहिये।
सरकार बदली व्यवस्था नहीं
ऐसा सच कोई विरला ही बोल सकता है जिसे सरकारी विज्ञापन बंद होने का खतरा न हो या पार्टी में पद पाने की कोई लालसा न हो। बहरहाल एकाध बार ऐसा बोलने से कोई सुधार हो जाएगा ये सोचना दिवास्वप्न जैसा है। लिहाजा बेईमान नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों की मनमानी जारी रही। आम आदमी का शोषण और प्रताड़ना जारी रही। अन्याय जारी रहा। नतीजा भाजपा सरकार चुनाव हार गयी। हार तो उससे पहले वाले चुनाव में ही जाती पर मैनेजमेन्ट में बाजी मार गयी थी और जीत गयी थी। तो इस बार जनता को मिलते रहे सरकारी तिरस्कार और समर्थ लोगों की दादागिरी झेलने के कारण भाजपा सरकार को जाना पड़ा और कांग्रेस आ गयी। अब क्या…
माहौल बदल गया क्या ? आम आदमी को अन्याय से मुक्ति मिल गयी क्या ? ऐसा तो कुछ हुआ नहीं बल्कि कांग्रेसी नेता और कांग्रेस परस्त अधिकारी पहले से अधिक आक्रामक होकर खाने मे लग गये कि क्या पता अब फिर से सत्ता वापस आएं या न आएं ? टक्कर कांटे की है। और फिर मोदीजी का कहर बेईमानों पर टूट रहा है क्या पता आगे खाने के रास्ते बंद हो जाएं ?
मतलब ये कि पहले भी तंत्र पैसे के ईंधन से चलता था और अब भी पैसे से ही चलता है। लोग त्रस्त थे पहले भी और त्रस्त हैं अभी भी।
रिश्वतखोरी मुद्दा नहीं
अब सवाल है कि इस बार जनता किसे चुनेगी। गौरतलब है कि जनता के सामने अब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं रहा। इसे जनता ने स्वीकार कर लिया है। जीवन का हिस्सा मान लिया है। दोनों ही सरकारंे इस मामले में कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर पाई हैं। तो फिर मुद्दे होंगे विकास, राष्ट्रधर्म और हिंदुरक्षा। देश के चुनाव हांे या प्रदेश के जनता इन्हीं को तरजीह देगी। छत्तीसगढ़ में विकास भी दिख रहा है और हिंदुत्व भी। हिंदुत्व का परचम थामने में कांग्रेस भी अब पीछे नहीं है इस बार। तो टक्कर कांटे की होगी।
दूसरी ओर जनता की समझ मे ंये आ गया है कि उपरी स्तर पर सबकुछ एकदम परफेक्ट नहीं है। सौ प्रतिशत ईमानदारी नहीं है। लेकिन ये भी सच है कि सौ प्रतिशत शुद्ध सोने से गहना नहीं बनता थोड़ा सा खोट डालना होता है। यदि मोदीजी भी सौ प्रतिशत ईमान से काम लेंगे और सौ प्रतिशत आदर्श पर कायम रहेंगे तो आगे चलना कठिन हो जाएगा। थोड़ा तिकड़म, थोड़ा पक्षपात्, थोड़ा उलटफेर कहीं भी जमे रहने के लिये जरूरी होता है। जनता को ये यकीन हो गया है कि मोदीजी की कार्यप्रणाली मे जनता की भलाई ही है। वे जो भी कर रहे हैं उसमें आम आदमी का भला छिपा है। यहां भगवान कृष्ण का महाभारत का एक डायलाॅग का उल्लेख करना उचित होगा कि ‘छल का अभिप्राय यदि धर्म है तो छल स्वीकार है’। और मोदीजी कदाचित् इसी सिद्धान्त पर काम कर रहे हैं।
केन्द्र सरकार ने लिया है
बेईमानों को निपटाने का संकल्प
कुल मिलाकर जनता के सामने दो विकल्प हैं। एक बुरी नीयत के साथ लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी दूसरा अच्छी नीेयत के साथ पूरे देश ही नहीं विश्व में छाई पार्टी। निश्चित ही भाजपा भी किसी-किसी मुद्दे पर हिचकोले खा रही है, पर ये तो स्वाभाविक है। परफेक्शन तो कहीं नहीं होता। रहा सवाल भ्रष्टाचार का तो इस पर कंेद्र स्तर पर काम हो रहा है और दिख भी रहा है लेकिन स्थानीय स्तर पर जनता दुखी है और इसका इलाज करने में फिलहाल किसी की रूचि नहीं दिख रही है।
जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
mo. 9522170700