आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग
दिनांक – 08 अगस्त 2023
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत् – 2080
शक संवत् – 1945
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – अधिक श्रावण
पक्ष – कृष्ण
तिथि – अष्टमी 09 अगस्त प्रातः 03:52 तक तत्पश्चात नवमी
नक्षत्र – भरणी रात्रि 01:32 तक तत्पश्चात कृतिका
योग – गण्ड शाम 04:42 तक तत्पश्चात वृद्धि
राहु काल – शाम 04:01 से 05:39 तक
सूर्योदय – 06:13
सूर्यास्त – 07:17
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:46 से 05:29 तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:24 से 01:07 तक
व्रत पर्व विवरण –
विशेष – अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
कलश मांगलिकता का प्रतिक क्यों ?
सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व कलश-स्थापना की परम्परा है । विवाह आदि शुभ प्रसंगों, उत्सवों तथा पूजा-पाठ, गृह-प्रवेश, यात्रारम्भ आदि अवसरों पर घर में भरे हुए कलश पर आम के पत्ते रखकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है और कलश की पूजा की जाती है । जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त कलश का उपयोग किसी-न-किसी रूप में होता रहता है । दाह-संस्कार के समय व्यक्ति के जीवन की समाप्ति के सूचकरूप में उसके शव की परिक्रमा करके जल से भरा मटका छेदकर खाली किया जाता है और उसे फोड़ दिया जाता है ।
कलश में सभी देवताओं का वास माना गया है । हमारे शास्त्र में आता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिपुटी एवं अन्य सभी देवी-देवता, पृथ्वी माता और उसके सप्तद्वीप, चारों वेदों का ज्ञान एवं इस संसार में जो-जो है वह सब इस कलश-जल में समाया हुआ है ।
समुद्र – मंथन के समय अमृत-कलश प्राप्त हुआ था । माना जाता है कि माँ सीताजी का आविर्भाव भी कलश से हुआ था । लंकाविजय के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे तब उनके राज्याभिषेक के समय भी अयोध्यावासियों ने अपने घरों के दरवाजे पर कलश रखे थे ।
भरा हुआ कलश मांगलिकता का प्रतिक है । मनुष्य – शरीर भी मिटटी के कलश अथवा घड़े के जैसा ही है । जिस शरीर में जीवनरूपी जल न हो वह मृर्दा शरीर अशुभ माना जाता है । इसी तरह खाली कलश भी अशुभ माना जाता है । इसी तरह खाली कलश भी अशुभ माना जाता है । शरीर में मात्र श्वास चलते है, वह वास्तविक जीवन नहीं है । परंतु जीवन में प्रभु-प्रेम का सत्संग, श्रद्धा, भगवत्प्रेम, उत्साह, त्याग, उद्धम, उच्च चरित्र, साहस आदि गुण हों तभी कलश भी अगर दूध, पानी अथवा अनाज से भरा हुआ हो तभी वह कल्याणकारी कहलाता है ।
हींग के औषधीय प्रयोग
मंदाग्नि : घी में भुनी हुई २ चुटकी हींग में १ चम्मच नींबू का रस मिलाकर भोजन के प्रथम कौर के साथ लेने से पेट में पाचक रस स्रावित होने लगते हैं, जिससे जठराग्नि तीव्र हो जाती है ।
अजीर्ण : १ गिलास पानी में चौथाई छोटा चम्मच (२ से ३ चुटकी) हींग, १ चम्मच जीरा, चौथाई चम्मच सेंधा नमक मिला के भोजन के पीने से आँतों को बल मिलता है । अजीर्ण होने की प्रवृत्ति नष्ट होती है ।
अरुचि : अदरक के टुकड़ों पर हींग बुरककर भोजन से पूर्व खाने से लाभ होता है ।
आमवात : जोड़ों या पैरों के दर्द में मूँग की दाल के बराबर हींग व आधा चम्मच सोंठ १ गिलास पानी में डालकर उबालें । आधा पानी रहने पर गुनगुना पीना बहुत लाभकारी है ।
अफरा : चौथाई ग्राम हींग, आधा ग्राम काला नमक तथा १ ग्राम अजवायन के चूर्ण को पानी के साथ लें ।
हृदयदौर्बल्य व हृदय-दर्द : १०-१० ग्राम हींग व दालचीनी, १०-१० दाने बीजरहित मुनक्के व छोटी इलायची, गुठलीरहित १० छुहारे – सभीको पीसकर एक शीशी में भर लें । चुटकीभर चूर्ण जिह्वा पर रखकर मुँह में घुलने दें । यह रस ज्यों-ज्यों शरीर में प्रवेश करता जायेगा, हृदय की धमनियों में रक्त- संचार बढ़ जायेगा, जिससे हृदय दर्द में बहुत लाभ पहुँचेगा । इसे आवश्यकतानुसार दिन में १ से ४ बार ले सकते हैं ।
जोड़ों का दर्द: ५ ग्राम हींग, लहसुन की दो कलियाँ व २-३ ग्राम सेंधा नमक सरसों के तेल में भूनकर उस तेल को जोड़ों पर मलें ।
कष्टार्तव (मासिक धर्म कष्ट के साथ होना) : सुबह-शाम १- १ चुटकी हींग गुनगुने पानी में घोल के लेने से बिना कष्ट के खुलकर मासिक धर्म होता है ।
सावधानियाँ : उच्च रक्तचाप तथा मासिक धर्म के समय अधिक रक्तस्राव में हींग का उपयोग नहीं करना चाहिए । गर्भवती स्त्रियों को तथा गर्म प्रकृतिवाले लोगों को हींग का उपयोग कम करना चाहिए ।