भारत-अमेरिका संबंधों में बढ़ती खटास : क्या ट्रंप की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं कूटनीति पर पड़ रही हैं भारी?

वाशिंगटन (एजेंसी)। पिछले छह महीनों के दौरान भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक संबंधों में अप्रत्याशित गिरावट देखी गई है। स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि स्वयं अमेरिका के भीतर ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों की तीखी आलोचना हो रही है। हाल ही में प्रसिद्ध भू-राजनीतिक विशेषज्ञ और लेखक प्रोफेसर फ्रांसिस फुकुयामा ने ट्रंप प्रशासन पर कड़े प्रहार किए हैं।
व्यक्तिगत लाभ बनाम राष्ट्रीय हित
प्रोफेसर फुकुयामा का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीति किसी राष्ट्रीय विज़न के बजाय उनके व्यक्तिगत हितों और व्यवहार से प्रेरित है। एक साक्षात्कार में उन्होंने तर्क दिया कि पिछले तीन दशकों में अमेरिका की हर सरकार ने, चाहे वह किसी भी दल की हो, भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी है ताकि दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके।
फुकुयामा के अनुसार, ट्रंप ने इस दीर्घकालिक रणनीतिक हित को सिर्फ इसलिए दांव पर लगा दिया क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ के लिए सार्वजनिक समर्थन नहीं दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि जब व्यक्तिगत अहंकार कूटनीति का आधार बन जाए, तो देश के वैश्विक हितों का नुकसान होना तय है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और रिश्तों में आता बदलाव
साल की शुरुआत में ट्रंप के सत्ता संभालने पर भारत को एक मजबूत साझेदारी की उम्मीद थी, लेकिन मई के महीने में हालात बदल गए। पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान कूटनीतिक दरार स्पष्ट रूप से सामने आई।
असामयिक हस्तक्षेप: भारत सरकार द्वारा आधिकारिक घोषणा किए जाने से पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने सोशल मीडिया पर ‘सीजफायर’ (युद्धविराम) का दावा कर दिया।
श्रेय की राजनीति: ट्रंप लगातार यह प्रचार करते रहे कि यह युद्धविराम उनके हस्तक्षेप के कारण हुआ, जबकि भारत का स्टैंड था कि यह द्विपक्षीय सैन्य स्तर (DGMO) की बातचीत का परिणाम था।
पाकिस्तान का दांव: इस स्थिति का लाभ उठाते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने न केवल ट्रंप का आभार व्यक्त किया, बल्कि उनके नोबेल पुरस्कार के दावे का भी समर्थन कर दिया।
आर्थिक हमला और भारत का कड़ा रुख
पाकिस्तान के साथ बढ़ती नजदीकियों के बीच ट्रंप प्रशासन ने भारत पर ‘आर्थिक हमला’ करते हुए भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ (शुल्क) लगा दिया। अमेरिका की ओर से लगातार होती बयानबाजी के बावजूद, भारत ने अपने रुख में कोई नरमी नहीं दिखाई है।
भारत का स्पष्ट स्टैंड: कश्मीर और पाकिस्तान के मुद्दों पर भारत की नीति दशकों से स्पष्ट रही है—शिमला समझौते के तहत किसी भी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पीएम मोदी नोबेल के लिए ट्रंप का समर्थन करते, तो यह भारत की अंतरराष्ट्रीय साख और उसकी संप्रभुता के सिद्धांतों के विरुद्ध होता।
वर्तमान में, अमेरिकी नीति निर्माता भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ट्रंप का यह रवैया एक विश्वसनीय मित्र के रूप में अमेरिका की छवि को धूमिल कर रहा है।
















