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नवरात्रि के 6वें दिन आज, मां कात्यायनी की होती है पूजा, पूजाविधि, महत्व और मंत्र

न्युज डेस्क (एजेंसी)। नवरात्रि में छठवें दिन मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है. मान्यता है कि इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है. वहीं लम्बी बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिल जाती है. मां कात्यायनी के पूजन से व्यक्ति में रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं. मां की पूजा करने से जन्मों के सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं.

मां कात्यायनी शोध कार्य की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए जो व्यक्ति अपने शोध कार्य में कोई शोध करके कुछ भी नया प्राप्त करना चाहते हैं, तो मां कात्यायनी का विधि विधान से पूजन करें तो उसे सफलता मिलती है. उन्होंने बताया कि जो लोग रोग और शोक से जूझ रहे होते हैं, तो उन्हें मां कात्यायनी का पूजन जरूर करना चाहिए. मां उन्हें संकट, बीमारी और भय से बचाती हैं.

मां कात्यायनी का प्रिय भोग

मां कात्यायनी को शहद बहुत ही प्रिय है, इसलिए पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं ऐसा करने से स्वयं के व्यक्तित्व में निखार आता है।

मां कात्यायनी को लाल रंग बहुत प्रिय

मां कात्यायनी को लाल रंग बहुत प्रिय है. पीले पुष्प भी उन्हें पसंद हैं. इस वजह से पूजा में आप मां कात्यायनी को लाल रंग के गुलाब के फूल और पीले रंग के गेंदे के फूल आप अर्पित कर सकते हैं. इससे मां कात्यायनी आप पर प्रसन्न होंगी. उनकी कृपा आप पर रहेगी. उन्होंने बताया कि मां कात्यायनी स्वयं नकारात्मक शक्तियों और बीमारियों का नाश करने वाली देवी हैं, जो आपको इन सभी संकटों से मुक्ति दिलाएंगी.

मां कात्यायनी की पूजा विधि

नवरात्रि के 6वें दिन सुबह स्नान के बाद व्रत और मां कात्यायनी की पूजा का संकल्प लें. उसके बाद मां कात्यायनी को स्मरण करके उनका गंगाजल से अभिषेक करें. इसके बाद उन्हें वस्त्र, लाल गुलाब का फूल या लाल फूल, पीले फूल, अक्षत, धूप, दीप, गंध, नैवेद्य आदि अर्पित करें. इस दौरान उनके मंत्रों का जाप करें. फिर उनको शहद का भोग लगाएं. इसके बाद दुर्गा चालीसा, मां कात्यायनी की कथा आदि का पाठ करें. फिर घी के दीपक से मां कात्यायनी की आरती करें.

पूजा मंत्र

1.या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

2.चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||

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