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राम मंदिर पर 25 नवंबर को होगा भव्य ध्वजारोहण : जानें क्यों खास है सूर्य-कोविदार युक्त यह धर्म ध्वजा

नई दिल्ली (एजेंसी)। 25 नवंबर को पूरे देश में विवाह पंचमी का पावन पर्व मनाया जाएगा और इसी शुभ दिन राम मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा फहराई जाएगी। इस ऐतिहासिक अवसर के लिए देश-दुनिया की निगाहें एक बार फिर रामनगरी अयोध्या पर टिकी हुई हैं, क्योंकि 25 नवंबर को मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर केसरिया धर्म ध्वजा स्थापित की जाएगी।

हिंदू धर्म में ध्वजारोहण का महत्व

सनातन परंपरा में मंदिर के शिखर पर ध्वजा फहराने का विधान अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण रहा है।

गरुड़ पुराण के अनुसार, मंदिर पर फहराया गया ध्वज देवता की उपस्थिति को दर्शाता है।

जिस दिशा में यह ध्वजा लहराती है, वह संपूर्ण क्षेत्र पवित्र माना जाता है।

शास्त्रों में मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज देवता की महिमा, शक्ति और संरक्षण का प्रतीक माना गया है।

राम मंदिर के ध्वजारोहण का विशेष महत्व

25 नवंबर को राम मंदिर पर फहराया जाने वाला यह ध्वज न केवल भगवान श्री राम के प्रति भक्तों की अटूट आस्था का प्रतीक होगा, बल्कि यह अयोध्या के सूर्यवंश और रघुकुल की महान परंपराओं को भी जीवंत करेगा।

वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में ध्वज, पताका और तोरणों का वर्णन बड़े ही वैभव के साथ मिलता है।

यह समारोह सतयुग के राम जन्म के उत्सव और कलियुग में उनके मंदिर निर्माण की पूर्णता की घोषणा है।

जब रघुकुल तिलक के मंदिर शिखर पर यह ध्वजा लहराएगी, तो यह संसार को संदेश देगी कि अयोध्या में रामराज की पुनर्स्थापना हो चुकी है।

ध्वज का रंग और उसका संदेश

राम मंदिर पर फहराया जाने वाला ध्वज केसरिया रंग का होगा। सनातन धर्म में, केसरिया रंग को:

त्याग, बलिदान और वीरता का प्रतीक माना जाता है।

यह रंग ज्ञान, पराक्रम और सत्य की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।

रघुवंश के शासनकाल में भी इस रंग को विशेष महत्व दिया जाता था।

यह ध्वजा उन रामभक्तों और साधु-संतों के सदियों के संघर्ष और बलिदान का भी प्रतीक है, जिन्होंने इस पवित्र परंपरा को जीवित रखा।

ध्वज पर अंकित पवित्र चिन्ह: कोविदार और ‘ॐ’

इस धर्म ध्वजा पर कोविदार वृक्ष और ‘ॐ’ की पवित्र छवि अंकित की गई है।

कोविदार वृक्ष:

इसका उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है और इसे पारिजात तथा मंदार के दिव्य संयोग से उत्पन्न वृक्ष माना जाता है।

आजकल इसे कचनार वृक्ष जैसा देखा जा सकता है।

यह वृक्ष रघुवंश की परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता था और सूर्यवंश के राजाओं के ध्वज पर सदियों से इसका प्रतीक अंकित होता आया है।

वाल्मीकि रामायण में भी भरत के ध्वज पर कोविदार का वर्णन मिलता है।

सभी मंत्रों का प्राण है और इसे ध्वजा पर अंकित करने से यह संपूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है।

अयोध्या एक बार फिर रचेगा इतिहास

ज्योतिषियों का मत है कि राम-सीता विवाह महोत्सव, धर्म ध्वजा का रोहण और अयोध्या की भव्य सजावट मिलकर ऐसा अलौकिक दृश्य रच रहे हैं, जैसा त्रेतायुग में हुआ करता था। इस समय अयोध्या किसी दुल्हन की तरह सजी हुई है और दुनियाभर के रामभक्त इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने के लिए उत्साहित हैं।

धर्म ध्वजा के शिखर पर लहराने के साथ ही यह क्षण सदियों की प्रतीक्षा का अंत और रामराज्य की पुनर्स्थापना का प्रतीक बनकर इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो जाएगा।

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