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धमतरी की बिलाई माता : बिल्लियों से जुड़ी है स्थापना की कथा

धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित बिलाई माता मंदिर न केवल आस्था का प्रमुख केंद्र है बल्कि अपनी अद्भुत कथा और रहस्यमय परंपराओं के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र भी बना हुआ है। इसे प्रदेश के पांच प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मंदिर का नाम और उसकी स्थापना की कथा विशेष रूप से बिल्लियों से जुड़ी है, जो इसे अन्य धार्मिक स्थलों से अलग पहचान दिलाती है।

स्थापना से जुड़ी कथा

जनश्रुति के अनुसार, जहां आज मंदिर स्थित है वहां पहले घना जंगल हुआ करता था। उस समय के राजा जब यहां से गुजरे तो उन्होंने देखा कि एक विशेष पत्थर के पास कई जंगली बिल्लियाँ लगातार बैठी रहती हैं। राजा ने पत्थर को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वह हिल नहीं सका। प्रयास जारी रहे और अचानक उस स्थान से जल प्रवाह शुरू हो गया। उसी रात राजा के स्वप्न में देवी मां प्रकट हुईं और संदेश दिया कि पत्थर को उसी स्थान पर रहने दिया जाए और उसकी पूजा की जाए। इसके बाद राजा ने देवी की स्थापना करवाई और तभी से यहां पूजा-अर्चना का सिलसिला शुरू हुआ।

स्वयंभू मूर्ति का चमत्कार

यहां की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। लोकविश्वास है कि यह मूर्ति धीरे-धीरे जमीन से ऊपर आई और आज भी इसे प्रकृति की अनूठी देन माना जाता है। मूर्ति का काला रंग और आसपास बिल्लियों की उपस्थिति के कारण इसे “बिलाई माता” कहा जाने लगा। यह मूर्ति मां विंध्यवासिनी देवी जैसी मानी जाती है और लगभग 500–600 वर्ष पुरानी मानी जाती है।

परंपराएँ और बदलती मान्यताएँ

प्राचीन काल में नवरात्रि पर यहां बलि प्रथा प्रचलित थी, जिसमें 108 बकरों की बलि दी जाती थी। समय के साथ यह प्रथा समाप्त हो गई और आज यहां भक्त केवल प्रसाद और पूजन सामग्री अर्पित करते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और देवी की आराधना करते हैं। लोक विश्वास है कि माता की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

आस्था का केंद्र

आज बिलाई माता मंदिर केवल धमतरी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश और देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। हर साल यहां ज्योत प्रज्जवलन की रस्म बड़े हर्षोल्लास से की जाती है। भक्त देवी के दर्शन और पूजा के लिए दूर-दूर से आते हैं और इस मंदिर को अपनी आस्था का प्रमुख केंद्र मानते हैं।

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